जीवन रस्सी पर चलने वाले नट जैसा संतुलन मांगता है. हर नए क्षण में संतुलन. क्योंकि इस क्षण अगर इस ओर गिरते थे, तो अगले ही क्षण हम उस ओर गिरने को होते हैं. जीवन में हर क्षण चीजें बदलती हैं. नई घटनाएं घटती हैं, नए समीकरण बनते हैं. हमें सिर्फ इसका अहसास नहीं हो पाता, क्योंकि हम दिमाग की उलझनों में फंसे रहते हैं.
(Mind Fit 34 Column)
एक आदमी राजा होता है, प्रधानमंत्री होता है, एक दिन वह राजा नहीं रहता. एक दिन वह प्रधानमंत्री नहीं रहता. एक आदमी किसी कंपनी का सीईओ होता है. वह कंपनी दुनिया की नंबर वन कंपनी होती है. एक दिन वह आदमी सीईओ नहीं रहता. एक दिन वह कंपनी नंबर वन नहीं रहती. रहने और नहीं रहने या होने और नहीं होने के दरमियान एक सफर होता है. ऐसा नहीं होता कि कुछ अभी हो और अचानक अगले पल में वह नहीं हो. आदमी के होने और न होने के बीच भी एक सफर होता है. यह सफर हर पल घटित हो रहा होता है. पर हम इससे अनजान रहते हैं. चीजें जब हो रही होती हैं, तो हमें दिखाई नहीं देती, क्योंकि वे जरा-जरा सी हो रही होती हैं.
हमारी उम्र रोज एक-एक दिन करके बढ़ती है और एक-एक दिन करके कम होती है, इसलिए हमें न उम्र के बढ़ने का एहसास होता है और न उम्र के घटने का. यह जो घटित होते हुए भी हमें नहीं दिख पाता, यही हमारी तकलीफ की वजह बनता है. लेकिन जब हम प्रक्रिया के साथ-साथ जी रहे होते हैं, तब हम अनचाहे को रोकने का काम भी कर पाने की स्थिति में रहते हैं. कंपनी नंबर वन तो बनी हुई है, लेकिन प्रॉडक्ट की खपत कम हो रही है. क्या दिमाग की घंटी तब बजी?
यह जो सतर्क और चौकन्ना रहना है, इस क्षण में होते हुए बदलावों को लेकर, यह बिना सूक्ष्म दृष्टि के नहीं हो सकता क्योंकि सूक्ष्म परिवर्तनों को सूक्ष्म दृष्टि ही देख सकती है. इस सूक्ष्म दृष्टि की खासियत यह है कि यह आंख या नजर में नहीं, बल्कि दिमाग में पैदा होती है. दिमाग में यह दृष्टि पैदा हो, इसके लिए उसका शांत होना बहुत जरूरी है. अशांत दिमाग-घबराया हुआ दिमाग दृष्टिहीन हो जाता है. आपने कभी गौर किया कि अगर आप कोई परीक्षा देने बैठे हों और अचानक आपको जब लगता है कि समय बहुत कम बचा है, तो ऐसा लगते ही दिमाग को घबराहट पकड़ लेती है और इस घबराहट में हम आते हुए सवाल भी गलत कर आते हैं. हम सारी गलतियां ही घबराहट में करते हैं. पर दिमाग शांत बना रहे, उसके लिए करें क्या?
(Mind Fit 34 Column)
दिमाग की शांति के लिए पहली जरूरत तो मन में इस चाह का जन्म लेना है कि हम बाकी चीजों से पहले अपने दिमाग की शांति चाहते हैं. त्रुटि तो हमारी प्राथमिकताओं में ही है. हम बाकी सब कुछ पहले और अंत में दिमाग की शांति चाहते हैं. लेकिन इसका क्या कि हम जीवनभर बाकी सबसे छूट ही नहीं पाते.
दरअसल हम जिसकी भी चाह करते हैं, उसे पाने का जरिए भी स्वयं खोज लेते हैं. अगर आम खाने की चाह है, तो आप आम का पेड़ खोजोगे और उस पर चढ़ोगे. चढ़ न पाते हो, तो नीचे से ही पत्थर मारोगे. कहीं से कोई लंबा डंडा खोजकर लाओगे. लेकिन अगर आम खाने की चाह ही न हो, तो आप जो कर रहे हो, वही करते रहोगे. अपना काम छोड़कर थोड़े आम का पेड़ खोजने जाओगे. दिमाग की शांति अगर चाहोगे नहीं, तो ताउम्र वही सब करते रहोगे, जो कर रहे हो. अचानक एक दिन अहसास होगा कि अरे हमने तो घबराहट और बौखलाहट में जीवन गुजार दिया.
ताकतवर दिमाग समय के आरपार देख लेता है, उसका कनेक्शन ब्रह्मांड से हो जाता है. फिर वह पैसे और पद में सुख नहीं देखता, वह कर्म में सुख पाता है. जीवन का मूलभूत लक्ष्य कर्म ही है. अगर कर्म को पूरी एकाग्रता और समर्पण से किया जाए, तो प्रक्रिया में ही सुख मिल जाता है. सुख के लिए परिणामों की जरूरत नहीं होती. शांत दिमाग बहुत करिश्माई होता है. वह न सिर्फ हमें मौजूदा क्षण में डूबकर अपने कर्म में तल्लीन होने की सामर्थ्य देता है, बल्कि आसपास क्या हो रहा है, उसके प्रति भी चौकन्ना रखता है. एक शांत दिमाग हमें न सिर्फ अपने लिए, बल्कि बाकी दुनिया के लिए भी बहुत प्रासंगिक बनाए रखता है.
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-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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