सिकंदर यानी अलेक्जेंडर तृतीय के बारे में तो हम सबने सुना ही है कि वह मेसीडोनिया यानी मकदूनिया, जो कि आज के जमाने का ग्रीस है, का सबसे ताकतवर सम्राट था. वह उस वक्त की जानकारी के मुताबिक जितनी दुनिया थी, उस पूरी दुनिया को जीतने निकला था और यह कारनामा लगभग पूरा करके दिखाने ही वाला था. उसे तब भारत के पंजाब, जम्मू-कश्मीर इलाके में राज कर रहे राजा पुरु से मुकाबला करना भारी पड़ा था. उसके सैनिक थकान से चूर थे और वापस लौट जाना चाहते थे. सिकंदर को अंतत: पुरु से समझौता कर लौटना पड़ा. लेकिन लौटते हुए मौजूदा इराक के शहर बेबीलोन में उसकी 32 साल की आयु में ही मृत्यु हो गई. विश्वविजेता बनने का ख्वाब देखने वाले इस सिकंदर के बारे में बहुत-सी कथाएं हैं, जिनमें से एक कथा बहुत प्रचलित है, जिसका जिक्र तत्कालीन इतिहासकार प्लूटार्क ने भी किया. Mind Fit 3 Column by Sundar Chand Thakur
इस कथा के मुताबिक सिकंदर जब भारतीय राज्यों को जीतने के लिए आ रहा था, तो रास्ते में वह एक दार्शनिक फकीर डायोजनीज से मिलने गया. डायोजनीज फकीरों वाली मस्ती में एक नदी के किनारे लेटा हुआ था. सिकंदर के पीछे उसकी सेना भी थी. डायोजनीज के सामने पहुंच सिकंदर ने ऐलान किया – महान सिकंदर आज आपसे मिलने आया है. डायोजनीज ने सिर उठाकर उसकी ओर देखते हुए बोला – जो स्वयं को महान कहता हो, उससे बड़ा कोई अज्ञानी नहीं हो सकता. मैंने तुम जैसा दीन-हीन और दरिद्र आज तक नहीं देखा. जो महान होने का दावा करते हैं, वे भीतर से खाली होते हैं. ये जो तुम्हारे पास इतनी बड़ी सेना है, ये जो इतने आभूषण और शस्त्र लिए तुम घूमते हो, यह सब उसी खालीपन को भरने की तुम्हारी नाकाम कोशिश के सिवाय कुछ नहीं. Mind Fit 3 Column by Sundar Chand Thakur
फकीर की बात सुन सिकंदर का सिर झुक गया. वह बोला – मानता हूं डायोजनीज. जो तुम कह रहे हो, वह झूठ नहीं है. तुम अकेले इंसान हो, जिसके सामने मैं अपनी दीनता महसूस कर रहा हूं. तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं. मेरे पास सब कुछ है. फिर मुझमें यह दीनता क्यों? डायोजनीज ने जवाब दिया, ‘क्योंकि मेरे पास कुछ न होते हुए भी मुझे और पाने की चाह नहीं है. तुम्हारे पास सबकुछ होते हुए भी तुम्हें और पाने की जबरदस्त चाह है. इसीलिए असल में तो सम्राट मैं हूं, क्योंकि मैं कुछ और नहीं पाना चाहता और तू एक भिखारी है, क्योंकि तेरे मन में और भी पाने की चाह है.’ डायोजनीज की बात सुनकर सिकंदर सिर झुकाए बोला, ‘डायोजनीज, मैं ईश्वर से मांगूगा कि मुझे अगले जन्म में सिकंदर नहीं, डायोजनीज बनाना.’ Mind Fit 3 Column by Sundar Chand Thakur
सिकंदर की बात सुन डायोजनीज हंसा और बोला, ‘अरे मूर्ख अगले जन्म की क्या बात करता है. अगला जन्म किसने देखा है. देख मैं यहां नदी के तट पर लेटा हूं, तू भी आ जा. अपनी फौज को यहीं से नमस्कार कर दो. कह दो बहुत युद्ध लड़ लिए, बहुत राज्य जीत लिए, अब आराम करो. इस विजय यात्रा का यहीं अंत करो.’ सिकंदर बोला, ‘नहीं डायोजनीज, आज यह मुश्किल है, अभी मुश्किल है. जरा यह वाला युद्ध जीतकर आ जाऊं, जरा दो-चार और राज्यों को अपने राज्य में मिला लूं, फिर आता हूं.’
डायोजनीज फिर हंसा, ‘जो भी मुश्किल है, वह सदा मुश्किल ही रहेगा सिकंदर. जो कल पर टालता है, वह सदा के लिए टल जाता है.’
सिकंदर बोला, ‘इसे मुझ पर छोड़ दो डायोजनीज. मैं तुम्हारी बातों से बहुत खुश हूं. यह बताओ कि एक सम्राट के तौर पर मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं. मुझसे तुम कुछ भी मांग सकते हो.’
डायोजनीज सिकंदर की बात सुनकर फिर हंसा. बोला, ‘ सिकंदर, होगे तुम अपने घर के सम्राट. मेरे लिए तुम कुछ नहीं कर सकते. तुमसे मैं क्या मांगूं. तुम दे ही क्या सकते हो. पर अगर मांगने को कह ही रहे हो, तो मांगता हूं. जरा सा हटकर खड़े हो जाओ. तुम मुझ तक धूप आने से रोक रहे हो.’
सिकंदर जब एक ओर हट गया और विदा लेते हुए बोला, ‘जब लौटकर आ जाऊंगा, तो इसी जीवन में तुम्हारे जैसा ही जीवन जिऊंगा.’
डायोजनीज फिर जोर से हंसते हुए बोला, ‘ऐसी यात्राओं से आज तक भला कौन वापस लौटकर आया है सिकंदर. ये वासना की लंबी यात्रा है, ये तृष्णा की लंबी यात्रा है, ये कभी खत्म न होगी.’
और सिकंदर सचमुच वापस न लौट सका. वह रास्ते में ही मर गया. इतिहासकार इसे अजब संयोग बताते हैं कि डायोजनीज और सिंकदर एक ही दिन मरे. 323 ईसा पूर्व. सिकंदर डायोजनीज से कुछ क्षण पहले. Mind Fit 3 Column by Sundar Chand Thakur
–सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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1 Comments
राघव
पाठकों के कमेंट्स तो शो करते नहीं हो, ऊपर से कहते हो- “पाठकों की सराहना मिली” ! अपने मुंह मियां मिट्ठू ?