शहरों में आकर अपना भाग्य आजमाने वाले हममें से ज्यादातर लोगों की कहानी एक जैसी है. गरीबी से अमीरी की कहानी या यूं कहें कि हमारी नजर में जो गरीबी है, वहां से हमारी नजर में जो अमीर होना है, वहां तक पहुंचने की कहानी. हम सभी ने ही गांव-देहात से अपनी यात्रा शुरू की. मेरा जन्म एक गांव में हुआ – खड़कू भल्या. यह गांव पिथौरागढ़ में गंगोलीहाट के पास एक पहाड़ के आधार पर बसा है. गांव की सरहद से लगकर दौड़ती हुई रामगंगा नदी है, जो आगे जाकर रामेश्वर में सरयू नदी से मिल जाती है. गांव की बहुत स्मृतियां हैं.
(Mind Fit 18 Column)
जब हमारे खेतों में बंदर फसल खाने आते थे, खासकर मक्के की फसल, तो मैं कुत्ते लेकर उनके पीछे भागता था. गांव के लड़के नदी में तैरने जाते थे. खुद मैंने गांव की इसी नदी में तैराना सीखा. बाद में गांव से शहर में आकर पढ़ाई की. पिथौरागढ़ से दिल्ली आया और अब पिछले दस सालों से कंक्रीट के जंगल मुंबई में रह रहा हूं. आप लोग भी जहां कहीं रहते हैं, ज्यादातर इसी तरह गांव छोड़कर आए होंगे. आप नहीं, तो आपके पिता या दादा. हममें से कइयों ने आलीशान घर बना लिए, गाड़ियां खरीद लीं, नौकर-चाकर रख लिए. जी हां, हम अमीर हो गए.
मेरे गांव का घर जाने कितने सालों से सूना पड़ा है. उत्तराखंड के हजारों गांवों का यही हाल है. वहां लोग नहीं हैं, घर सूने पड़े हैं. पर जल्दी ही इन घरों में लोग लौटने लगेंगे. क्योंकि नई पीढ़ी अमीर बनना चाहती है. लेकिन उस तरह नहीं, जैसे हम बनें- अपने गांव-कस्बों से शहरों में पलायन करके. बल्कि अब वह अमीर बनना चाहती है वापस गांव की ओर लौट के. इसी के बारे में एक छोटी सी कहानी सुना रहा हूं-
एक बार की बात है. एक बहुत धनी परिवार का लड़का था. एक दिन उसके पिता उसे गांव-देहात की ओर ले गए, ताकि वह उसे गरीबों का जीवन दिखा सकें कि वे कैसे रहते हैं. वे गांव में एक गरीब परिवार के घर पहुंचे, जिसकी आजीविका खेती थी. पिता और पुत्र उस परिवार के साथ कुछ दिन रुके. वापस लौटते हुए पिता ने बेटे से पूछा –
‘कैसा लगा तुम्हें इस परिवार का जीवन?’
‘बहुत ही बढ़िया पापा, बेटे ने जवाब दिया.’
‘तुमने देखा कि गरीब लोग कैसे रहते हैं?’, पिता ने पूछा.
‘जी पापा, देखा मैंने,’ लड़का बोला.
‘ठीक से बताओ तुमने किन बातों पर गौर किया और क्या नया देखा-समझा,’ पिता ने उत्सुकता से बेटे की ओर देखते हुए पूछा .
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‘सबसे पहले तो पापा मैंने यह गौर किया कि हमारे पास एक कुत्ता है, लेकिन इनके पास चार कुत्ते हैं. हमारे गार्डन में एक छोटा-सा स्विमिंग पूल है, जबकि इनके पास बिना ओर-छोर की एक नदी है. हमारे पास डिजाइनदार महंगी लालटेनें और झूमर हैं, जबकि इनके पास सिर के ऊपर टिमटिमाते तारे हैं. हमारे पास बालकनी है, जबकि उनके पास पूरा क्षितिज है. हमारे पास जमीन का जरा-सा टुकड़ा है, जबकि इनके पास अंतहीन खेत हैं. हम लोग सब्जियां, फल और अनाज खरीदतें हैं, जबकि ये लोग उन्हें उगाते हैं. हमारे पास सुरक्षा के लिए बड़ी दीवार है, सुरक्षा गार्ड हैं, जबकि इनके दोस्त ही इनकी सुरक्षा करते हैं.’
बच्चे की बातें सुनकर पिता नि:शब्द था.
और तब लड़का फिर बोला – आपका बहुत शुक्रिया पापा कि आपने मुझे दिखाया कि असली अमीर कौन है. इनकी तुलना में हम कितने गरीब हैं.
यह छोटी-सी कहानी कितनी बड़ी बात बोलती है, बशर्ते कि हम इसे समझें और अपनी रूढ़िगत सोच से बाहर निकल जीवन को नई नजर से देखने की कोशिश करने को तैयार हों. हमें तुरंत जागने की जरूरत है. हम जिसे अपनी समृद्धि समझ रहे हैं, जिस पैसे से हम अपने लिए एक से बढ़कर एक सुविधाएं खरीद रहे हैं, कहीं ऐसा तो नहीं कि वही सब अपने में जकड़कर हमें असली जीवन से दूर लिए जा रहे हों. सच्ची दौलत और सच्ची खुशी सांसारिक चीजों में नहीं.
प्रेम, रिश्ते और हमें मिली आजादी कहीं ज्यादा मूल्यवान हैं. अगर आप चाहते हैं कि आपके पास सच्चा प्रेम रहे, सच्ची दोस्ती रहे और आप स्वछंद जीवन जिएं, तो इसके लिए आपको अपनी सुरक्षा और संपत्ति के छोटे-छोटे टापुओं की कैद से निकलकर खुली बांहों से चारों ओर फैली दुनिया को गले लगाना होगा. इस तरह आप दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बनोगे, धड़कते दिल के साथ जीवन को भरपूर जीने वाले.
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-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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