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‘पलायन एक चिंतन’ समूह का पर्वतीय आजीविका उन्नयन कार्यक्रम

हर व्यक्ति का अपने मूल, विशेषकर जन्मस्थान के साथ बड़ा भावनात्मक जुड़ाव रहता है. मेरा जन्म उत्तराखंड के जनपद पौड़ी के मिरचौड़ा गांव में हुआ. मैंने अपनी प्राथमिक शिक्षा भी गांव से ही पूरी की है. और अभी भी गांव से मेरा हर प्रकार का जुड़ाव जारी है. Migration is a Grave Issue with Uttarakhand

शिक्षा और रोजगार के लिए पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन पहले भी होता रहा है, लेकिन विगत दो दशकों से इसने विकराल रूप ले लिया है. आधारभूत सुविधाओं और संसाधनों के साथ पर्वतीय जनपदों के विकास के साथ अच्छी शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं ,रोजगार के संसाधनों और विषम भौगोलिक परिस्थितियों के मद्दे-नज़र लम्बी लड़ाई और अनेक शहादतों के बाद उत्तराखंड राज्य का गठन तो हुआ, लेकिन सब कुछ राज्य के मैदानी जनपदों तक सिमट कर रह गया. Migration is a Grave Issue with Uttarakhand

आधारभूत सुविधाओं, वन्य जीवों से मानव के संघर्ष और आवारा पशुओं के आतंक से किसान धीरे-धीरे खेती से विमुख होता गया. नतीजा राज्य के युवा छोटे-छोटे रोजगारों की तलाश में पहाड़ों से मैदानी शहरों की ओर जाने लगे और गांव में बचे रह गए बुजुर्ग,बच्चे और अन्य जो अब मनरेगा और अंत्योदय जैसी स्कीमों के सहारे जीवन घसीटने को मजबूर है. Migration is a Grave Issue with Uttarakhand

ऐसा नही है कि पहाड़ों में कुछ नहीं हुआ. बहुत कुछ हुआ है सड़कों का जाल बिछाया गया, अपवाद छोड़ से तो ज्यादातर योजनाएं राजनीतिक रसूख वाले ठेकेदारों को लाभ पहुचाने के लिए. स्कूलों का उच्चीकरण सुगम दुर्गम के खेल से आगे नही बढ़ सका,नतीजा शिक्षा की गुणवत्ता पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा. स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में तो यही कहा जा सकता है कि पौ फटने से पहले बच गए तो सुबह 108 की गाड़ी किसी बिना डॉक्टर के अस्पताल तक पहुचा देगी जहां से मरीज को श्रीनगर ,हल्द्वानी और देहरादून रेफर कर दिए जाने का अब प्रचलन सा हो गया है. Migration is a Grave Issue with Uttarakhand

पलायन के कारणों और उसके समाधान पर कार्य करने की मंशा से चार वर्ष पूर्व पहाड़ प्रेमी हमख्याल साथियों के साथ पलायन एक चिंतन समूह का गठन किया गया. कारण तो पता चल गए, लेकिन समाधान सरकारों की फाइलों में एक टेबल से दूसरी टेबल टहलती रही. विभिन्न मंचों से सरकारों के कानों तक हमने पर्वतीय बिरादरी की बात पहुंचानी चाही, लेकिन कोई समाधान नही निकलता देख हमने स्थापित प्रवासी उत्तराखंडियों का मन टटोला तो पता चला कि मातृभूमि से बिछड़ने की टीस उन्हें भी है और खाली होते पहाड़ के लिए वे भी खासे चिंतित है. हमारे प्रयासों और पहाड़ की मौजूदा दशा को हमारी लघु फिल्मों के माध्यम से जानने के बाद बहुत से परिवारों ने अपने टूटे मकानों का जीर्णोद्धार किया और अब बार त्यौहारों में अपने मूल उनका आना जाना लगा रहता है. यह हमारे लिए बड़ी उपलब्धि और अधिक ऊर्जा के संचार जैसी औषधि के सामान था. Migration is a Grave Issue with Uttarakhand

वर्ष 2018 की 17 दिसम्बर के जनपद की नयार घाटी के सीला गांव की बंजर जमीन पर अपने युवा एवं हमख़याल साथियों श्री अनिल बहुगुणा,दलबीर सिंह रावत, अजय रावत, गणेश काला, अरविंद , राकेश बिजलवाण और सकारत्मक विचारों वाले गांव के उत्साही युवाओं को लेकर “पर्वतीय आजीविका उन्नयन” एक पहल के विचारों के साथ पलायन के न्यूनीकरण के एक मॉडल पर कार्य प्रारम्भ किया गया. जैविक खेती, औद्यानिकी, अच्छा मूल्य देनी वाली मशरूम का उत्पादन, मछली पालन, कुक्कुट पालन, मौन पालन,डेयरी के साथ साहासिक पर्यटन को जोड़ते हुए आतंक का पर्याय बन चुके वन्यजीवों से ही आजीविका के साधनों पर धरातलीय कार्य की रूपरेखा के साथ कार्य प्रारम्भ किया गया. Migration is a Grave Issue with Uttarakhand

“पर्वतीय आजीविका उन्नयन” पहल को चार चरणों मे पूरा करने के निर्णय के साथ औद्यानिकी और साहसिक को जोड़ते हुए आपके हमारे अभियान #पलायन_एक_चिंतन टीम के जोश और आपके स्नेह मार्गदर्शन एवं सहयोग से #Camp_golden_mahaseer को मूर्तरूप मे धरातल पर उकेर एक सफल प्रयोग के रूप में आपके सम्मुख रखने में कितनी खुशी महशूस कर रहे हैं इसको भी शब्दों मे व्यक्त करना हमारे लिए तो अभी कठिन ही है. आशा है आपका स्नेह मार्गदर्शन और सहयोग पलायन एक चिंतन अभियान से जुड़े जुनूनी साथियों को आगे भी मिलता रहेगा. Migration is a Grave Issue with Uttarakhand

– रतन सिंह असवाल

रतन सिंह असवाल संयोजक
पलायन एक चिंतन, एक पहल

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Kafal Tree

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  • बहुत सुंदर। कम से कम पलायन का मर्सिया पढ़ने की बजाय आपने सार्थक प्रयास किए , यही वास्तविक जरूरत है। बाते करने से कुछ नही होगा जमीन पर करना ही पड़ेगा ।

  • बहुत बढ़िया
    मेरे पास एक प्रभावशाली सुझाव है.

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