अभी कुछ दिनों पहले की बात है सीताबनी मार्ग पर विचरण करने के दौरान मुझे एक नाले से मोर के बोलने की आवाज़ आयी, जो एक अलार्म कॉल थी. इसका मतलब था कि उसे कोई ऐसा मांसाहारी जीव नज़र आ गया था जो उनके लिए ख़तरा हो जैसे कि बाघ, तेदुआं, साँप, बाज या भेड़िया. उत्सुकतावश में उस नाले में उतर गया. (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar)
थोड़ी दूर ही पहुँचा था तभी मुझे बाघ के पंजे दिखायी दिये और मैं चौकन्ना हो गया, यह सोचकर कि बाघ कहीं आस-पास तो मौजूद नहीं है. लेकिन हैरानी की बात ये थी कि एक पंजे के ऊपर दूसरा पंजा लगा हुआ था. इसका मतलब या तो दो बाघ एक साथ थे या फिर दो अलग बाघ अलग-अलग समय पर वहाँ से निकले थे.
तभी मेरी नज़र झाड़ी पर पड़ी और मुझे वहां हिरन का सींग नज़र आया पास जाकर देखा तो वहां हिरन का शव पड़ा था, जो बाघ द्वारा लगभग पूरा खा लिया गया था बस अवशेष ही बचे थे.
अब मैं और भी चौकन्ना हो गया था. हालाँकि हिरन का शव कुछ दिन पुराना प्रतीत हो रहा था लेकिन फिर भी मोर की अलार्म कॉल और ये मंजर कोई अच्छा संकेत तो था नहीं. इसे भी पढ़ें : एक दर्द भरी दास्ताँ
तभी अचानक मेरे सामने पेड़ पर बैठा बंदर चिल्लाया (अलार्म कॉल) मानो उसे बाघ नज़र आ गया हो और उसकी चेतावनी भरी आवाज़ सुनकर मेरा कलेजा ज़ोर से धक-धक करने लगा. बदन में जैसे सिहरन सी कांप उठी और हद तो तब हो गई जब कुछ मिनट बाद ही बाघ ने दहाड़ सुने दी.
दहाड़ सुनकर कुछ समय के लिए मैं सुन्न सा हो गया था — काटो तो खून नहीं. समझ नहीं आ रहा था क्या करूँ, आगे जाऊँ या पीछे?
मैंने खुद को सम्भाला, गहरी साँस ली और धीरे-धीरे पत्थरों पर पैर रखते हुए पीछे हटने लगा. दहाड़ उसी तरफ़ से आयी थी जिस रास्ते से मैं आया था और मैं एक सुरक्षित दूरी तक जाना चाहता था ताकि आमना-सामान न हो और सीधी मुठभेड़ से बच सकूँ.
पतझड़ की वजह से पूरा रास्ता सूखे पत्तों से भरा हुआ था. ऐसे में मुझे अपना पैर बड़ी सावधानी से पीछे रखना पड़ रहा था ताकि आवाज़ न हो. मैं नहीं चाहता था कि उसे मेरी उपस्थिति महसूस हो इसलिए आहिस्त- आहिस्ता अपने कदम पीछे खींच रहा था. लेकिन कहते हैं न ऐसी स्थिति में कुछ न कुछ गड़बड़ हो ही जाती है और वही हुआ. मेरा पैर पत्थर में फिसल कर सूखे पत्तों पर पड़ा और जो आवाज़ हुई उसे सुनकर मैं और ज्यादा डर गया.
खैर जल्दी से पीछे हटकर मैने बंदर को देखना शुरू किया. वह ऊँची डाल पर बैठकर नीचे को मुँह किये चिल्ला रहा था, मानो बाघ वहीं कहीं आस पास मौजूद हो.
ऐसी स्थिति में ख़ुद की संयमित रखना ज़रूरी है हालाँकि यह बिल्कुल भी आसान नहीं होता. जितना आप खुद को शांत रखोगे उतना ऐसी स्थिति से निकलने में आसानी होगी.
एक सुरक्षित जगह पर आने के बाद मैंने अपना दिमाग़ लगाना और कड़ियाँ जोड़ना शुरू किया—
हिरन का शव और बाघ के पंजे पुराने प्रतीत हो रहे थे और कोई ताज़ा पंजा भी नज़र नहीं आया था. क्या पता मेरे आने के बाद यह बाघ मेरे पीछे से आया हो. तभी मेरे दिमाग़ में कुछ ठनका और वह था बाघ की दहाड़. जिसे मैं दहाड़ समझ बैठा था वह दहाड़ नहीं थी. वह एक खास आवाज़ थी जो मैंने पहले भी कई बार सुनी थी. लेकिन इस बार नज़दीकी मामला होने की वजह से उस पर ध्यान ही नहीं गया था. यह खास आवाज़ बाघ/बाघिन या तो मिलन के समय निकालते है या अपने शावकों को बुलाने के लिए. तो क्या यहाँ दो बाघ थे यानि कि बाघ और बाघिन या बाघिन अपने शावकों के साथ थी.
रास्ते में दो अलग-अलग प्रकार के पंजे थे तो बाघ और बाघिन होने की सम्भावना मुझे ज़्यादा नज़र आ रही थी और यह सोचकर मेरी चिंता बढ़ने लगी थी कि दो बाघ मेरे आस-पास थे.
इसी ऊहापोह में तक़रीबन 15 मिनट गुजर चुके थे. शांत जंगल में बंदर के चिल्लाने की आवाज़ बड़ी ही डरावनी लग रही थी. तभी सूखे पत्तों पर किसी के चलने की आवाज़ सुने दी और मेरे कलेजा फटने को तैयार.
आवाज़ ठीक मेरे सामने झाड़ियों के पीछे से आ रही थी. क्या ये बाघ के चलने की आवाज़ थी, सोचकर मेरी साँस अटकने लगी. हाथ में पकड़ा हुआ कैमरा आज मुझे बहुत भारी लग रहा था. बंदर के चिल्लाने की आवाज़, ऊपर से सूखे पत्तों पर किसी जानवर के चलने की आवाज़ मेरे रोंगटे खड़े कर रही थी. आवाज़ नज़दीक आने लगी, मानो बाघ अब निकला तब निकला. मुझे अपनी दिल के धड़कनों की आवाज़ साफ़ सुनायी दे रही थी जो बेतहाशा किसी बुलेट ट्रेन की तरह भागे ही जा रही थी. हलक सूखा जा रहा था और कैमरे से पकड़ ढीली होती जा रही थी.
तभी झाड़ी हिली और एक जंगली मुर्ग़ा उड़ता हुआ बाहर निकला जो सूखे पत्तों को हटाकर बीजों को खा रहा था और उड़ कर पेड़ पर बैठ गया. मैंने राहत कि साँस ली और मन ही मन बोला उफ़्फ़्फ इसने तो डरा ही दिया था. इस सन्नाटे में जान ही निकाल दी थी.
तक़रीबन आधा घंटा हो चुका था पर न तो बाघ आया और न ही बाघ की आवाज़. बंदर का चिल्लाना भी कम हो गया था. अब वह रुक-रुक कर चिल्ला रहा था.
क्या बाघ निकल गया था या वो कहीं छुप के बैठ गया था? यही प्रश्न मेरे दिमाग़ में चल रहे थे. उस समय और मैने थोड़ी देर और इंतज़ार करना उचित समझा.
क़रीबन 10 मिनट और इंतज़ार करने के बाद मैंने वापस जाने के बारे में सोचा. क्योंकि बंदर अब पेड़ से उतरकर नीचे आ गया था, जिसका मतलब बाघ जा चुका था. फिर भी सावधानी बरतते हुए मैं आहिस्ता-आहिस्ता सूखे पत्तों से पैरों को बचाते हुए वापस जाने लगा.
अचानक मेरी नज़र ज़मीन पर गीले पंजों के निशानों पर पड़ी, निशान नीचे की तरफ़ लगे हुए थे, मतलब जिस रास्ते में आया उसी तरफ़. थोड़ा दूर तक ही पंजे के निशान थे फिर नहीं. इसका मतलब वह ऊपर चढ़ गया था. पर ये तो एक ही बाघ का पंजा था तो दूसरा कहाँ था और क्या ये पहाड़ी से उतर कर आया था?
कुछ समझ नहीं आ रहा था. खैर, जो भी था मैं सकुशल बाहर आ गया था और ख़ुद को काफ़ी हल्का महसूस कर रहा था. पहेली अब भी जस की तस थी कि आखिरकार बाघ गया कहाँ? शायद ऊपर कहीं चढ़ गया हो. अगर ऊपर चढ़ा होता तो कोई अलार्म कॉल होती— चाहे वो हिरन, मोर या बंदर की. इसे भी पढ़ें : एक थी शर्मीली
सवाल वाजिब था और इसका हल केवल समय के पास था. मैंने वहीं मुख्य मार्ग पर समय बिताने का सोचा. अगर हलचल हुई तो कहीं अलार्म कॉल ज़रूर होगी.
समय बीतने के साथ इंतज़ार लम्बा होता गया. आखिरकार उसने हलचल की और ऊपर पहाड़ी से हिरन ने अलार्म कॉल देना शुरू कर दिया. जंगल फिर से जी उठा था. जंगल का ड्रामा शुरू हो चुका था. कॉल लगातार हो रही थी, जिसका मतलब हिरन बाघ को साफ़ देख रह था. मैं भी इसका हिस्सा बनना चाहता था और हिरन की ही तरह बाघ को देखना चाहता था. पर कैसे ? क्या वह नीचे उतरेगा या ऊपर को ही चढ़ जाएगा? खैर, मैंने आवाज़ का अनुसरण करना शुरू किया. ऐसा करने के अलावा मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था. अचानक भगदड़ सी हुई और सारे हिरन भागने लगे, मानो बाघ ने इन पर हमला बोल दिया हो. वे भागकर नीचे सड़क की ओर आने लगे. मैंने गाड़ी एक ऐसी जगह पर लगा दी जहाँ से वह रास्ता नज़र आता था जिससे अक्सर बाघ आया जाया करता था. इसे भी पढ़ें : कॉर्बेट पार्क में जब बाघिन मां दुर्गा की भक्ति में डूबी दिखी
तभी मुझे किसी जानवर के दौड़ने की आवाज़ सुनायी दी, मानो कोई दौड़ लगाकर नीचे को उतर रहा हो. पतझड़ की वजह से पूरा जंगल सूखे पत्तों से भरा हुआ था उन पत्तों पर दौड़ते हुए जानवर की आवाज़ साफ़ सुनायी दे रही थी. क्या ये बाघ था? अगर हाँ तो ऐसे क्यों उतर रहा था. बाघ तो अमूमन बिना आवाज़ किए हुए चलते हैं पर यहाँ तो माजरा उल्टा था. ये बाघ ही था क्योंकि हिरन दूसरी तरफ़ को भाग गए थे. लेकिन यह भाग क्यों रहा था ये समझ से परे था. धीरे-धीरे दौड़ने की आवाज़ नज़दीक आती जा रही थी. किसी भी पल बाघ सड़क पर उतर सकता था. दिल थामकर मैं उसके उतरने का इंतज़ार कर रहा था. आखिरकार मेरा सोचना सही साबित हुआ और उतरते हुए मुझे उसकी पहली झलक नज़र आयी. मुँह से अचानक निकला— अरे ये तो वही है मेरी पसंदीदा बाघिन. पर अभी कुछ और भी देखना बाक़ी था, उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और वह रुकी. उसका वही पुराना, दांत दिखाकर हेलो करने का अनोखा अन्दाज़. तभी मेरी नज़र पत्थर के पीछे पड़ी मानो कोई छिपकर मुझे देख रहा हो. अनायास ही मुँह से निकला अरे! एक और बाघ. मुश्किल से 10-15 सेकेण्ड में उन्होंने सड़क पार कर ली और नीचे जंगल को उतर गये.
अब मुझे सारा माजरा समझ में आ चुका था. यह इस बाघिन का वयस्क नर शावक था जिसे बुलाने के लिए ये उस नाले पर आयी थी और इस बाघिन ने ही उसे आवाज़ लगाकर ऊपर बुलाया था. शायद इस बाघिन ने कोई शिकार मारा था जिसकी दावत उड़ाने के लिए ही वह इसे लेने आयी थी.
क्या दिन था — एक समय ऐसा था जब जान आफ़त में लग रही थी और अब दिल ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था. वन्य जीवन की यही तो दुनिया है, तभी इसे जंगल का ड्रामा कहते है जो चलता ही रहता है. मैं लगभग 6 महीने बाद इस शावक को देख रहा था, जो अब वयस्क हो चुका था और डीलडौल में मां के बराबर. उम्मीद है कि देर-सवेर यह अपना खुद का साम्राज्य स्थापित करेगा और यहाँ इस जंगल में राज करेगा. (Memoirs of Corbett Park by Deep Rajwar)
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रामनगर में रहने वाले दीप रजवार चर्चित वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और बेहतरीन म्यूजीशियन हैं. एक साथ कई साज बजाने में महारथ रखने वाले दीप ने हाल के सालों में अंतर्राष्ट्रीय वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर के तौर पर ख्याति अर्जित की है. यह तय करना मुश्किल है कि वे किस भूमिका में इक्कीस हैं.
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