अशोक पाण्डे

अल्मोड़ा के ‘फूलों वाले पेड़’ की याद में

उसे फूलों वाला पेड़ कहा जाता था. पेड़ देवदार का था और उस पर लदे रहने वाले फूल बोगनवेलिया के. खिलने के मौसम में उसकी लकदक शब्दों के बयान से परे की चीज हुआ करती. 
(Almora Mall Road Bougainvillea)

फूलों वाला पेड़ एक प्रेम कहानी था जिसे अल्मोड़ा नगर के बाशिंदों ने दशकों तक बनते-बढ़ते देखा. ठीक-ठीक तो कोई भी नहीं बता सकता देवदार के उस पेड़ पर बोगनवेलिया की उस बेल ने किस दिन चढ़ना शुरू किया होगा. फूलों के खिलने के मौसम के एक दिन शहर ने देखा सबसे ऊंची टहनी तक चढ़ आई बेल ने समूचे दरख्त को अपने फूलों की मैजेंटा रंगत से ढंक लिया था.

उसके बाद उन दोनों को फूलों वाला पेड़ ही कहा गया. यही उनकी साझी पहचान बनी. नामुमकिन था कि माल रोड पर टहल रहा कोई भी इंसान उसे देखते ही ठिठक कर न रह जाए. पिछले पचास-साठ सालों में कितने नागरिकों, पर्यटकों, आने-जाने वालों ने उसकी छाँह में अपनी तस्वीर खिंचाई होगी कोई हिसाब नहीं. उसे देखने भर से आदमी में आदमी बनने की तमीज आती थी.  

अल्मोड़ा के रहने वाला हर इंसान उसे अपना मानता और बताता था. घर आये मेहमान को फूलों वाला पेड़ दिखाया जाना सामाजिक बरताव का हिस्सा था. कितनी ही जगहों से, कितने ही कोणों से दिखाई देने वाला और साल में तीन-चार दफा खिलने वाला वह पेड़ अल्मोड़ा नगर के अवचेतन में स्थापित था.

वसंत के भरपूर में यह पेड़ कितनी ही युवा प्रेम-कथाओं को विरह झेलने की ताकत देता था. प्रेमियों के दरम्यान इस पेड़ की कसमें खाने की रिवायत थी. पता ही नहीं चलता था उसका कौन सा हिस्सा देवदार है कौन सा बोगनवेलिया. दोनों मिल कर गुनगुनाते थे –

बोल रहा था कल वो मुझ से हाथ में मेरा हाथ लिए  
चलते रहेंगे दुःख सुख के हम सारे मौसम साथ लिए

बहुत कम पेड़ों को इतनी मोहब्बत नसीब होती है. और बहुत कम मोहब्बतों को ऐसा पेड़ नसीब होता है.

फोटो: जयमित्र सिंह बिष्ट

सात-आठ जुलाई 2020 की रात को अल्मोड़ा में रात भर मेंह बरसा. बारिश की झड़ी लगी रही. मैं उस रात वहीं था. सुबह छः बजे एक दोस्त का फोन आया – “फूलों वाला पेड़ ढह गया.”
(Almora Mall Road Bougainvillea)

बदहवास वहां पहुंचा तो पाया असंख्य फूल-पत्तियों और अनगिनत परिंदों का आशियाना सड़क पर विध्वंस की सूरत में बिखरा हुआ था. देवदार जड़ से टूट गया था. बोगनवेलिया की जड़ें भी दचक गयी थीं. सैकड़ों लोग अविश्वास में खड़े अनहोनी को देख रहे थे. दिन भर अपनी शरारतों से आसपास के घरों की गृहिणियों को हलकान किये रखने वाले कोई बीसेक बन्दर भी वैसी ही सदमे की हालत में निश्चेष्ट बैठे सामने बिखरी हुई प्रेम कहानी के हरे-बैंगनी मलबे को देख रहे थे. जाहिर था वे अपनी रातें उसी फूलों वाले पेड़ की महफूज टहनियों में बिताते होंगे. जिस जगह जड़ थी वहां एक नन्हे गढ्ढे के भीतर से लाखों काली चींटियां न जाने कहाँ के लिए पलायन कर रही थीं. नम आँखों वाले कितने ही ग़मज़दा लोगों को मैंने बोगनवेलिया की टूटी टहनियां अपने घर ले जाते देखा. उम्मीद है अल्मोड़ा के कई घरों में उसकी सन्ततियों ने जड़ पकड़ ली होगी. यह सब दिल को तहस-नहस कर देने वाले दृश्य थे जिन्होंने स्मृति पर गाढ़े छप जाना था.

देर दोपहर तक बुलडोज़र, आरियाँ और कुल्हाड़े वगैरह घटनास्थल पर पहुँच गए. दुनिया का काम चलते रहना चाहिए. यही दस्तूर है. राजमार्ग का ट्रैफिक किसी पेड़ की वजह से लम्बे समय तक बाधित नहीं रखा जा सकता. जब तक सड़क पूरी तरह साफ़ नहीं हो गयी सैकड़ों लोग घंटों तक चुपचाप वहीं खड़े रहे. जिस-जिस को खबर मिली आँखों में अविश्वास और दुःख लिए दौड़ा चला आया. एक आख़िरी दीदार बस!

मुझे नहीं लगता दुनिया में कहीं भी किसी पेड़ को यूँ विदा किया गया होगा. एक पीढ़ी की स्मृति में अनंत के लिए दर्ज हो चुके उस फूलों वाले पेड़ की आज पहली बरसी है और मैं उसे अपने किसी जरुरी पुरखे की तरह याद कर रहा हूँ.
(Almora Mall Road Bougainvillea)

अशोक पाण्डे

इसे भी पढ़ें: अल्मोड़ा के दो पेड़ों का खूबसूरत मोहब्बतनामा

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  • 'फूलों वाला पेड़ 'देखौ होय देखौ किलैकि आनन्द देखणै कै छियो। नानछना १९६४ तक तैकें देखियैकि याद नहा फिर अल्माड़ छुटिगो। बाद में १९९० दशक में अल्माड़ प्रवेश करते ही, जीआई सी गेट पुजते ही, अद्भुत पेड़ देखी जाछी । अनदेखी क्वे करि नि सकछी। तीन साल बठीअल्माड़ नि जै सक्यूं ।करोना लै आपणी खोर फोड़ि राखौ। लेकिन उ जाग कतुक उजाड़ लागलि कल्पना नि करि सकीन। भौत समय बाद सौजन्य काफल ट्री कुमाउनी में लेखणौंक प्रयास करौ शायद ठीक ठाकै लेखी सक्यूं।
    भुवन चन्द्र पाण्डे adinanoo15@gmail.com.

  • आह.. कितनी खूबसूरत लेखनी.. अल्मोड़ा से जुड़ी मेरी याद में भी ये पेड़ बहुत खास था.. जिस दिन ढह गया उस दिन मन भी कुछ टूट सा गया था..
    कुछ यादें तरोताज़ा हो गई, शुक्रिया

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