भारत छोड़ो आंदोलन की पहली तारीख को ही कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. जिसके कारण आंदोलन के नेतृत्वहीन हो चुका था. इसके बाद आंदोलन एक स्वतः-स्फूर्त आंदोलन था जिसमें प्रत्येक व्यक्ति ही नेता था.
इस स्वतः स्फूर्त भारत छोड़ो आन्दोलन की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता आन्दोलन में कार्यरत भूमिगत आन्दोलनकारी की भूमिका है. भूमिगत रहते हुए इन आन्दोलनकारियों ने आंदोलन को लगातार गति दी. भूमिगत आंदोलनकारियों के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान किये कार्यों में एक महत्वपूर्ण कार्य बंबई से एक रेडियो प्रसारण का किया जाना था. अरुणा आसफ अली, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण के अतिरिक्त उत्तराखण्ड से एक महत्त्वपूर्ण नाम मदनमोहन उपाध्याय इस रेडियो प्रसारण के संबंध में आता है. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भूमिगत आन्दोलनकारियों द्वारा अपना नाम बदलकर भाग लिया था. मदनमोहन उपाध्याय की पहचान सच्चिदानन्द शर्मा के रूप में की गई.
इलाहाबाद की एक प्रिंटिंग प्रेस से छपा यह इश्तहार कुमाऊंनी भाषा में छपा था. इश्तहार के मुताबिक़ मदनमोहन उपाध्याय का हुलिया कुछ इस तरह लिखा गया
गेहूंआं रंग गोल चेहरा चौड़ा माथा नाक नोकीली मुंह की तरफ, दुहराजिस्म दाढ़ी मोछ मुड़ाई हुई बाल घुंघराले काले, बात करना में मुस्करांछौ ऊँचाई ५ फ़ीट ६ इंच उमर करीब ३०, ३५ साल जवाहरकट वास्कट व् खद्दर की धोती व कुर्ता अक्सर पहनछौ और नंगा सिर रौंछी अकेला में तेजी का साथ हाथ हिलाई बेर चलछौ.
इस इश्तहार में मदन मोहन उपाध्याय को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ वाने वाले व्यक्ति को एक हजार का ईनाम दिया जाना तय किया गया. मदन मोहन उपाध्याय को पकड़वाने के नाम पर रखी यह ईनाम राशि संभवतः इस दौर में सर्वाधिक थी.इस इश्तहार में दलीपसिंह कप्तान पर 750 रुपये, जैदत्त पर १०० रुपये, दानसिंह, इश्वरीदत्त, मथुरादत्त, रामसिंह और रेवाधर पांडे पर 50 रुपये, का ईनाम भी छपा है.
मदनमोहन उपाध्याय के पुत्र हिमांशु उपाध्याय के अनुसार खुमाण गोली काण्ड के विरोध में मजखाली में टाल को आग के हवाले करने की घटना का नेतृत्व भी मदनमोहन उपाध्याय द्वारा ही किया गया था. इसके बाद मदन मोहन उपाध्याय के भाई को पुणे में पूछताछ के लिये हिरासत में भी लिया गया.
समाजवादी विचारधारा के पक्षधर मदनमोहन उपाध्याय चन्द्रशेखर आजाद से प्रभावित थे. जवाहर लाल नेहरु के साथ इलाहाबाद की नैनी जेल में रहे थे. वे पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के साथ अल्मोड़ा जेल में रहे. मदनमोहन उपाध्याय भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भूमिगत रहे और भूमिगत रहते हुए ही भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी. मदनमोहन उपाध्याय को बम्बई से गिरफ्तार किया गया.
15 अगस्त 1947 में रानीखेत में मदनमोहन उपाध्याय ने झंडारोहण किया. आजादी के बाद भी मदनमोहन समाजसेवा करते हुए देश को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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