25 अक्टूबर 1910 को को मथुरा दत्त उपाध्याय का जन्म ग्राम बमनपुरी द्वाराहाट जनपद अल्मोड़ा में हुआ. हमारा बचपन पंडित जीवानंद उपाध्याय के सातवें पुत्र मथुरा दत्त उपाध्याय के चातुर्य और अदम्य साहस के साथ उनके स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी के किस्सों के साथ ही बड़ा हुआ. एक किस्सा यह है कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वह जनपद अल्मोड़ा को दिशा दे रहे थे, तब सुबह सवेरे घर पर ही पुलिस द्वारा पकड़े गए. पुलिस को आता देख तत्काल उन्होंने धोती पहन कर एक ग्रामीण महिला का रूप धारण कर पुलिस की गिरफ्त से भागने में कामयाब हो गए. ऐसे दर्जनों किस्से हमें बचपन से रोमांचित करते रहे हैं.
(Madan Mohan Upadhyay Freedom Fighter)
मथुरा दत्त उपाध्याय की प्रारंभिक शिक्षा द्वाराहाट फिर जीआईसी नैनीताल में संपन्न हुई. मात्र 12 वर्ष की अवस्था में आप अपने बड़े भाई केशव दत उपाध्याय जो कि श्री मोतीलाल नेहरू के निजी सचिव थे, के साथ इलाहाबाद आनंद भवन पहुंच गए. उन दिनों आनंद भवन आजादी के आंदोलन का एक तीर्थ स्थल ही था.
आनंद भवन में जवाहरलाल नेहरू, पंडित मदन मोहन मालवीय, सरदार पटेल, महात्मा गांधी सरीखे दर्जनों आजादी के नायकों से छोटी उम्र में ही मथुरा दत्त उपाध्याय का मिलना हुआ. यहां मदन मोहन मालवीय के व्यक्तित्व ने मथुरा दत्त उपाध्याय को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने अपना नाम मथुरा दत्त उपाध्याय से बदल कर मदन मोहन उपाध्याय कर दिया, नाम बदलते ही इस नाम की प्रेरणा और देश की आजादी के लिए कुछकर गुजरने की तमन्ना ने उनकी छोटी उम्र की सारे अवरोधों को समाप्त कर दिया. उनकी सक्रियता आजादी के आंदोलन में ऐसी बड़ी की मात्र 16 वर्ष की आयु में वह 1 वर्ष के लिए जेल गए. जेल में आजादी के प्रति उनका समर्पण और विचार का विस्तार हुआ हालांकि प्रारंभ में वह मदन मोहन मालवीय से प्रभावित हुए लेकिन धीरे-धीरे समाजवादी विचार उनके भीतर गहरा होता गया.
![](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2021/10/Madan-Mohan-Upadhyay-Freedom-Fighter-1.jpg)
मदन मोहन उपाध्याय की परवरिश का बड़ा हिस्सा आनंद भवन में बीता लेकिन प्रगतिशील समाजवादी विचार ने उनके भीतर गहरा असर प्रारंभ किया. 1936 में जब वह वकालत की पढ़ाई पूरी कर चुके थे तब ही 1937 में रानीखेत कंटोनमेंट बोर्ड के उपाध्यक्ष चुने गए. उन दिनों कांग्रेस के भीतर समाजवादी धारा की प्रगतिशील राजनीति आकार ले रही थी जिसको उपाध्याय ने ताकत देना प्रारंभ किया. इसके लिए उन्होंने कांग्रेस में मौजूद प्रगतिशील समाजवादियों की धड़ा बंदी प्रारंभ कर दी. मथुरा दत्त उपाध्याय 1937 में प्रांतीय कांग्रेस के लिए चुने गए थे.
1939 में मदन मोहन उपाध्याय ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने. कांग्रेस में वह प्रगतिशील विचार की पैरवी और उसकी गोलबंदी में जुटे रहे, अक्टूबर 1939 में उनके द्वारा कांग्रेस के समाजवादी विचारधारा के प्रतिनिधियों का उभ्याड़ी, बिमला नगर रानीखेत में सम्मेलन का आयोजन किया. जिसमें उस वक्त के महत्वपूर्ण समाजवादी नरेंद्र देव, सेठ दामोदर आदि तथा स्थानीय स्तर पर हरिदत्त मठपाल, पूर्णानंद उपाध्याय, देवी दत्त पंत हुडकिया आदि ने भाग लिया. इस सम्मेलन ने मदन मोहन उपाध्याय की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर बनाई. इसे भविष्य में कांग्रेस के समाजवादी विभाजन अर्थात प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के अंकुरण के रूप में भी देखा जाता है.
(Madan Mohan Upadhyay Freedom Fighter)
1940 में अल्मोड़ा जनपद के पहले सत्याग्रही के रूप में मदन मोहन उपाध्याय गिरफ्तार हुए. 1942 में जब 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन के आवाहन के साथ कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व गिरफ्तार कर लिया गया था तब कुमाऊं में आंदोलन को धार देने का कार्य मदन मोहन उपाध्याय ने किया. शुरुआत में ही वह पुलिस के हत्थे चढ़े लेकिन भेष बदलकर भागने में कामयाब रहे फिर मासी के पास पकड़े गए लेकिन वापस नैनीताल लाते हुए गेठिया के पास से भागने में कामयाब हुए और भूमिगत रहे.
मुंबई पहुंचकर जयप्रकाश नारायण, अरूणा आसफ अली, अच्युत पटवर्धन, राम मनोहर लोहिया आदि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ मिलकर आजाद रेडियो का संचालन किया जिसने आजादी की इस लड़ाई को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
मदन मोहन उपाध्याय के सिर पर ब्रिटिश सरकार ने ₹1000 का इनाम घोषित किया, ईनाम की इतनी बड़ी राशि देश के कुछ चुनिंदा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के ऊपर थी. घोषणा प्रभावी रहे इसके लिए उसे कुमाऊनी में भी प्रकाशित किया गया.
![](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2021/10/Madan-Mohan-Upadhyay-Freedom-Fighter-1-1-630x1024.jpg)
भारत छोड़ो आंदोलन के द्वारा मदन मोहन उपाध्याय की प्रभावी और निडर भूमिका के बाद उन्हें कुमाऊं टाइगर की उपाधि प्राप्त हुई. 1944 में उन्हें डिफेंस आफ इंडिया एक्ट में गैरहाजिर रहने पर 25 वर्ष की कठोर सजा हुई. देश के आजादी के साथ उपाध्याय भी आजाद हुए लेकिन आजादी के बाद कांग्रेस को जन उद्देश्यों से भटकता देखकर 1948 में जब जे .बी .कृपलानी ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की तो मदन मोहन उपाध्याय भी कांग्रेस छोड़कर उसमें शामिल हुए.
1952 में वह पहले विधानसभा चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से रानीखेत से विधायक चुने गए, उत्तर प्रदेश विधान मंडल के उपाध्यक्ष रहे, रानीखेत, द्वाराहाट क्षेत्र के आधारभूत विकास के लिए उनके द्वारा कई महत्वपूर्ण कार्य किए गए. जिनमें रानीखेत का प्रसिद्ध सिविल अस्पताल, रानीखेत का विद्युतीकरण और द्वाराहाट रानीखेत मोटर मार्ग जैसे निर्माण कार्य महत्वपूर्ण हैं. 1 अगस्त 1978 में रानीखेत में मदन मोहन उपाध्याय का देहावसान हुआ.
(Madan Mohan Upadhyay Freedom Fighter)
![](https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_103/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_103/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_103/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_103/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_103/https://cdn.shortpixel.ai/client/q_lossless,ret_img,w_103/https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2018/08/Pramod-sah-103x150.jpg)
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
इसे भी पढ़ें: कुमाऊं के पहले क्रांतिकारी जिनके सर पर हज़ार रुपये का इनाम रखा था अंग्रेजों ने
![](https://kafaltree.com/wp-content/uploads/2020/06/Logo.jpg)
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें