प्रेम कविता में दरवाजा
- हेमंत कुकरेती
उसने तय किया भूख मिट जाए
वह प्रेम की कविता लिखेगा
जिसमें प्रेम नामक शब्द कहीं नहीं होगा
अद्भुत प्रेम कविता होगी वह
इसके लिए नफ़रत और युद्ध
युद्ध और विनाश जैसे शब्द ज़रूरी थे
उसे बसों में भूल गए
रूमालों की बात नहीं करनी थी
उन चिठ्ठियों के बारे में भी
उसने नहीं सोचा
जो पीली पड़ती जा रही थीं
बच्चों को वह भूल गया
मिलने आए लोगों से मिलना
उसने ज़रूरी नहीं समझा
अब तक उसे सूझ नहीं रहा था
कि शुरू कैसे करे?
उसे दरवाज़े का ख़याल आया
यही है मुसीबतों की जड़
इसी रास्ते आते हैं कविता में ख़लल …
उसकी प्रेम कविता में दरवाज़ा बन्द था
बन्द थे झरोखे
लिख-लिख कर वह शब्दों को
फेंक रहा था बियावान में
13 मार्च 1965 को जन्मे उत्तराखंड मूल के हेमंत कुकरेती वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन करते हैं. हिन्दी के युवा कवियों की जमात में उनका नाम काफी सम्मान से लिया जाता है. प्रतिष्ठित भारत भूषण पुरूस्कार और केदार सम्मान प्राप्त कर चुके हेमंत के चार कविता संग्रह छपे हैं – चलने से पहले, नया बस्ता, चाँद पर नाव और कभी जल कभी जाल.
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