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1 Comments

  1. विकास नैनवाक

    सही बात कही है सर आपने। सबके अपनी ढफली और अपना राग है। मुझे आजतक यह समझ नहीं आया कि साहित्य को इतना कठिन बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? मेरी समझ से तो अच्छा साहित्यकार वो है जो किसी भी गूढ़ से गूढ़ बात को इस तरह से कह सके कि साधारण से साधारण शिक्षा प्रपात व्यक्ति भी उसे समझ सके। वही साहित्य में ऐसा देखा जाता है कि बात होती तो साधारण है लेकिन उसको इस गूढ़ रूप से कहा जाता है जैसे देवकीनंदन खत्री जी उपन्यास का कोई तिलस्म हो। ऐसे में पाठक दूर न हो तो क्या होगा। इससे होता यह है लेखक को पाठक तो मिलते नहीं है और इस कारण वो अलग अलग तरह की राजनीती करके अपना गुजारा चलाने की कोशिश करता है।खैर, अपन को क्या। अपन ठहरे पाठक।

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