अपने बचपन में गर्मियों की छुट्टियों के दौरान गांव प्रवास में कई चीजों से सहज परिचय हो जाया करता था. उन दिनों उत्तराखण्ड के गांवों तक ताजा हरी सब्जियों की पहुंच न के बराबर ही हुआ करती थी, आज भी सुदूर पहाड़ में ऐसा ही है. इन सब्जियों के जल्द ख़राब हो जाने का खतरा बना रहता है तो दुकानदार इसे रखने से बचते हैं. ऐसी स्थिति में खेतों में उगने वाली ताजा हरी सब्जियों के अलावा जंगली साग-सब्जियों का ही आसरा हुआ करता था.
सिसूण, मशरूम, मछैया जैसी कई सब्जियों से मेरा परिचय इसी दौरान हुआ. जब खेतों में हरा साग न हो या उससे एक ऊब सी हो जाए तो इन जंगली सागों का सहारा लिया जाता था. मैं इन सब्जियों में मौजूद पौष्टिक तत्वों के बारे में तो नहीं जानता था लेकिन इनके स्वाद का कायल जरूर था.
इन्हीं सब्जियों में एक थी लिंगुड़. यह भी दिखने में मशरूम की तरह ही खूबसूरत हुआ करती थी. जैसे किसी ने पौधे में फुर्सत के साथ नक्काशी कर दी हो. गर्मियों और बरसात के मौसम में गधेरों-जंगलों में यूं ही उग आने वाली फर्न को जंगल से लौटते हुए महिलाएं साथ लेती आतीं. मशरूम की तरह लिंगुड़ के भी जहरीले होने का खतरा रहता है. पहाड़ की महिलाओं को सहज ज्ञान से खाए जाने योग्य मशरूम और लिंगुड़ की खूब पहचान होती है.
लिंगुड़ की सब्जी कटहल की तरह बहुत स्वादिष्ट होती है और इसे बनाना बहुत आसान. इसे बिना झंझट के बिलकुल उसी तरह छौंका जाता है जैसे हरी बीन्स. इसे बनाने में कटहल या मांस-मछली की तरह बहुत तेल-मसाले और मेहनत नहीं लगती, लेकिन स्वाद में ये इनसे मुकाबला कर लेती है.
लिंगुड़ को खेत, बाजार की सब्जियों का विकल्प मात्र मानना बड़ी भूल होगी. इसमें स्वाद के साथ पौष्टिक तत्वों की भरमार है.
लिंगड़ा, लिंगुड़ा, लिंगुड़ या ल्यूड़ का वानस्पतिक नाम डिप्लाजियम ऐस्कुलेंटम (Diplazium esculentum) है. यह एथाइरिएसी (Athyriaceae) कुल का खाने योग्य फर्न है. यह समूचे एशिया, ओसियानिया के पर्वतीय इलाकों में नमी वाली जगहों पर पाया जाता है. मलेशिया में इसे पुचुक पाकू (Pucuk Paku) और पाकू तांजुंग (Paku Tanjung) कहा जाता है तो फिलिपीन्स में ढेकिया (Dhekiya,) थाईलैंड में इसे फाक खुट (Phak Khut) कहते हैं. असम में धेंकिर शाक, सिक्किम में निंगरु, हिमाचल में लिंगरी, बंगाली में पलोई साग और उत्तर भारत में लिंगुड़ा कहा जाता है.
यह गाड़-गधेरों के पास नमी वाली जगहों में प्राकृतिक रूप से उगता है. इसके अलावा बेहद नमी वाले जंगलों में इसकी अच्छी पैदावार होती है.
लिंगुड़ा का उपयोग भारत में सामान्यतः सब्जी बनाने के लिए किया जाता है. लेकिन विदेशों में इसका सलाद व अचार भी बनाया जाता है. जापान और मलेशिया में इसे तलकर पोल्ट्री उत्पादों के साथ मिलाकर व्यंजन तैयार किये जाते हैं, ऐसा करने से इन उत्पादों में मौजूद सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा होने वाली बीमारियों का अंदेशा कम हो जाता है.
लिंगुड़ा विटामिन, आयरन और कैल्शियम अच्छा स्रोत है.
आज लिंगुड़ा जंगल से बाहर निकलकर कस्बों-शहरों में अपनी जगह बना चुका है. उत्तराखण्ड के मैदानी हाट-बाजारों में यह अच्छे दामों में बिका करता है. लेकिन इसका उत्पादन अभी प्राकृतिक ही है. विदेशों की तर्ज पर उत्तराखण्ड में भी लिंगुड़ा की खेती कर इसका व्यावसायिक उत्पादन किया जा सकता है.
-सुधीर कुमार
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