उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने फरवरी 13 तारीख को विधानसभा में अपना अभिभाषण दे दिया है.
अपनी सरकार की उपलब्धियों में गिनाते हुये उन्होंने कहा है -“मेरी सरकार राज्य में संस्कृत को बढ़ावा देने हेतु प्रतिबद्ध है!”
अपने अभिभाषण में उन्होंने बताया कि सरकार राज्य में संस्कृत भाषा को लोकभाषा बनाना चाहती है.
इसके लिये सरकार ने चमोली के किमोठा और बागेश्वर के भन्तोला नाम के गांव को संस्कृत ग्राम घोषित किया गया है. इसके साथ ही हरिद्वार एवं ऋषिकेश को संस्कृत नगरी घोषित किया गया है.
राज्यपाल ने अपने अभिभाषण में नहीं बताया कि इस घोषणा में संस्कृत गांव और संस्कृत नगर के तहत क्या-क्या करतब-कारनामे किये जाएँगे.
राज्यपाल ने यह जरुर कहा है कि संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये उत्तराखंड सरकार के सभी कार्यालयों, सार्वजनिक स्थानों और पर्यटन क्षेत्रों में बोर्डों और नामपट्टिकाओं पर हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत भाषा का भी प्रयोग किया जायेगा.
उत्तराखंड में अभी कुल 97 विद्यालय और महाविद्यालय संचालित हैं. उत्तराखंड की दूसरी राजभाषा संस्कृत है जिसे राज्य पर 2010 में थोपा गया था. एक राज्य जिसकी शून्य प्रतिशत आबादी भी सामान्य बोलचाल के लिये संस्कृत भाषा का प्रयोग नहीं करती है उसकी राजभाषा का संस्कृत होना हास्यास्पद है.
अपने ही अभिभाषण में राज्यपाल बेबीरानी मौर्य बताती हैं कि सरकार स्कूलों में बच्चों को शनिवार के दिन इंग्लिश डे के रूप में मना रही है. सरकारी कागजों में शनिवार के दिन बच्चों को स्कूल में अंग्रेजी में बात करते हैं. (ऐसा सरकार का दावा है )
सरकार स्कूल में अंग्रेजी को बढ़ावा दे रही है जबकि सरकारी कामकाजी भाषा संस्कृत में किये जाने की घोषणा कर रही है.
जिस लोकभाषा शब्द का प्रयोग राज्यपाल बेबी रानी मौर्य अपने अभिभाषण में कर रही हैं उसका अर्थ है लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा. उत्तराखंड में लोगों द्वारा बोली जाने वाली स्थानीय गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी, नेपाली, रं-ल्वू आदि भाषाओं के लिये राज्यपाल के अभिभाषण में शब्द ही नहीं हैं उनको बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता की उम्मीद करना दूर की कौड़ी है.
-काफल ट्री डेस्क
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