“लंबी देहर माइंस” उत्तराखंड के मसूरी में स्थित एक ऐसी भूतिया जगह है जिसका इतिहास बहुत डरावना व काला है. इस जगह के नाम के बारे में बहुत ज्यादा भ्रम भी हैं. कुछ लोग इसे लंबी धार माइंस कहते हैं तो कुछ लांबी देहर माइंस और कुछ लंबी देहरा माइंस. मसूरी से लगभग पाँच किलोमीटर पहले जॉर्ज एवरेस्ट रोड की तरफ बढ़ते हुए सड़क के पास ही कुछ खंडहरनुमा भवन दिखाई पड़ते हैं जहाँ से शुरूआत होती है माइंस के इतिहास को जानने व समझने की.
(Lambi Dehar Mines Photos)
लंबी देहर माइंस एक समय में चूना पत्थर के प्राकृतिक स्त्रोतों से भरी हुई थी. माइंस के आस-पास की पहाड़ियों में जहाँ तक नजर जाती सिर्फ चूना पत्थर ही नजर आता. सबसे पहले अंग्रेजों ने लंबी देहर के इस पूरे क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा के दोहन का काम शुरू किया और आजादी के बाद भी भारतीयों के द्वारा खनन का काम बदस्तूर जारी रखा गया. माइंस की भौगोलिक स्थिति का जायजा लेने से साफ पता चलता है कि लंबे समय तक खनन किये जाने को ध्यान में रखकर इसे तैयार किया गया था. मुख्य सड़क के पास निर्मित भवनों में खनन से जुड़े ऑफिस बनाए गए जहाँ पर संभवतया चूना पत्थर की नाप तौल होती थी और दिन भर खदानों से निकाले गए पत्थर का लेखा-जोखा किया जाता था.
मुख्य ऑफिस से तकरीबन 4 किलोमीटर की दूरी पर खनन को अंजाम दिया जाता था. माइनिंग साइट तक जाने के लिए बकायदा डामरयुक्त सड़क बनाई गई थी जिस पर ट्रकों के माध्यम से चूना पत्थर ढोया जाता था. माइनिंग साइट पर आज भी उस फ़ैक्ट्री के अवशेष हैं जिसमें चूना पत्थर को संभवतया परिष्कृत कर छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता रहा होगा. आखिर ऐसा क्या हुआ लंबी देहर माइंस में कि जो हजारों मजदूरों की रोज़ी रोटी चला रहा था अचानक भूतिया जगह में बदल गया! माइंस के इतिहास और इसके हॉन्टेड प्लेस में बदल जाने को लेकर कोई लिखित प्रमाण नहीं हैं लेकिन बहुत सी किंवदंतियाँ आज भी माइंस की हवाओं में तैर रही हैं.
आस-पास के लोग बताते हैं कि 1990 में माइंस में एक बड़ा हादसा हुआ जिसकी चपेट में आकर लगभग 50,000 मजदूरों की जान चली गई. कुछ लोगों का मानना है कि लगातार चूना पत्थर की खदानों में काम करने की वजह से मजदूरों के फेफड़े खराब होने लगे और खून की उल्टियाँ होने की वजह से उनकी मौत होने लगी. लोगों का यह भी मानना है कि 50,000 मजदूरों की मौत का आँकड़ा बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है जबकि खदान में काम करने वाले कुछ सौ मजदूरों की मौत एक साथ नहीं बल्कि अलग-अलग समय अंतराल में हुई. असल में लंबी देहर माइंस में मजदूरों की मौत का सच क्या था यह किसी को मालूम नहीं है लेकिन कहा जाता है कि लगातार होती मौतों की वजह से माइंस के आस-पास कुछ ऐसी भूतिया गतिविधियाँ होने लगी जिस वजह से डर का ऐसा माहौल बन गया कि 1996 में इन खदानों को बंद करना पड़ा. (Lambi Dehar Mines Photos)
स्थानीय लोगों का मानना है कि आज भी रात के वक्त खदानों के आस-पास से चीखने चिल्लाने की आवाजें आती हैं. खदान के ऑफिस के पास ही मुख्य सड़क से गुजरने वाले कई वाहन हादसे का शिकार हो चुके हैं. खदान के ऊपर से गुजरता एक हैलीकाप्टर भी क्रैश हो चुका है. दिन के वक्त भी अकेले खदान की तरफ जाना खतरे से खाली नहीं है. लोगों की सख़्त हिदायत है कि दिन के वक्त लंबी देहर माइंस जितनी शांत दिखायी पड़ती है रात में उतनी ही हलचल लिये होती है इसलिए शाम ढल जाने के बाद यहाँ जाना मतलब जान जोखिम में डालने जैसा है.
जॉर्ज एवरेस्ट की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही पर्यटक लंबी देहर माइंस पर भी बड़ी संख्या में रुकने लगे हैं. हॉन्टेड टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में ये जगह काफी लोकप्रिय हो रही है. मौसम के लिहाज से भी यह गंतव्य सुकून देय है. दिन के वक्त दोस्तों के साथ यहाँ जाना कुछ खास डरावना तो नहीं है लेकिन माइंस तक का ट्रैक एक अच्छा एडवेंचर जरूर है. माइंस के ठीक पीछे बाँज/देवदार के हरे जंगल दिलोदिमाग को सुकून देते हैं. किस्मत अच्छी रही तो मौसम के तमाम रंग भी आपको देखने को मिल सकते हैं. पहाड़ के एक तरफ धूप, दूसरी तरफ छॉंव, ठंडी बयार, अचानक बदलता मौसम, घाटी में तैरते बादल और फिर बारिश.
(Lambi Dehar Mines Photos)
लंबी देहर माइंस की कुछ तस्वीरें –
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–कमलेश जोशी
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नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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