अल्मोड़ा की मॉल रोड पर रोज़ सुबह, शाम चाहे गर्मी हो या बरसात, दो लोग एक बुजुर्ग और एक बहुत छोटा बच्चा जिसकी उम्र 4 साल रही होगी, रोज़ अपना बैडमिंटन किट कंधों में लादे हुए अल्मोड़ा स्टेडियम को जाते देखे जा सकते थे. यह बात आज से क़रीब 18 साल पहले की है जब लक्ष्य सेन अपने दादा स्वर्गीय सी. एल. सेन के साथ बैडमिंटन के गुर सीखने के लिए मैदान में जाता था.
(Lakshya Sen in Almora)
मैदान जहां उस वक़्त ढंग का बैडमिंटन कोर्ट तक नहीं था, पर इन दोनों लोगों में एक समानता थी और वो था बैडमिंटन के प्रति इन दोनों का जुनून और जोश. सुबह से लेकर शाम तक कभी कभी ये पूरा का पूरा दिन ही बैडमिंटन कोर्ट और मैदान में बिताते थे. एक तरह से बैडमिंटन को ही इन्होंने अपना घर अपनी ज़िंदगी बना लिया था. इस जुनून में इनके साथ पूरा परिवार शामिल था जिसमें लक्ष्य के पिता डी के सेन और लक्ष्य की माँ निर्मला सेन और भाई चिराग़ सेन हैं.
इस पूरे परिवार की ज़िंदगी और जुनून सिर्फ़ बैडमिंटन का रैकेट और शटल ही रहे और आज भी हैं. पता नहीं कितना कितना त्याग किया होगा पूरे परिवार ने बैडमिंटन के लिए. सी. एल. सेन के गुजर जाने के बाद लक्ष्य और चिराग़ दोनों की ही ज़िम्मेदारी अब उनके पिता डी. के. सेन के ऊपर थी. डी. के. सेन, सी. एल. सेन के सुपुत्र हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन ही बैडमिंटन को समर्पित कर दिया.
डी. के. सेन कहाँ पीछे रहते उन्होंने भी अपना पूरा जीवन बैडमिंटन को समर्पित कर दिया, स्वयं का ही नहीं अपने दोनों बेटों और पत्नी का जीवन भी. मैंने पूरे परिवार को देखा है कैसे उनकी अल्मोड़ा की दिनचर्या होती थी पूरा का पूरा परिवार पूरे साल मैदान और बैडमिंटन कोर्ट के लिये समर्पित रहता था. शायद ही ऐसा कोई दिन होता हो जब ये परिवार आपको मैदान में न दिखे.
लक्ष्य के पिता डी. के. सेन ने तो लक्ष्य ही नहीं, लक्ष्य जैसे कई प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को अल्मोड़ा से बहुत आगे तक इस खेल के माध्यम से पहुँचाया. उनका सुबह का ट्रेनिंग सेशन याद आता है जब वो अपने खिलाड़ियों की कड़ी परीक्षा लेते थे. उनका मॉर्निंग सेशन ही तक़रीबन 3 घंटे तक चलता था और उसके बाद दिन, शाम और रात के उनके सेशन की आग को जो पार कर गया वो फ़ौलाद बन कर अल्मोड़ा से निकला, लक्ष्य भी उनमें से एक है.
(Lakshya Sen in Almora)
हिमालय के सामने अल्मोड़ा का खेल का मैदान जिसके सामने खड़े हिमालय से ठंडी बयार और ऊर्जा आती हो उस हिमालय के साये में पला बड़ा है लक्ष्य. यहाँ पर यह बताना भी ज़रूरी है कि अल्मोड़ा में उस समय एक अदद राष्ट्रीय स्तर का कोर्ट तक नहीं था और बुनियादी सुविधाओं का भारी अभाव था पर उसके बावजूद सेन परिवार ने बैडमिंटन के खेल के प्रति अपने समर्पण में कोई कमी नहीं आने दी.
लक्ष्य और उनके परिवार ने अल्मोड़ा से पेरिस ओलंपिक तक का एक बहुत लंबा सफ़र तय किया है. जिसकी आज के दिन में भी अल्मोड़ा में रहकर कल्पना करना एक सपना लगता है. एक ऐसा सपना जो लक्ष्य ने पूरा किया अल्मोड़ा के लोगों के लिए, उत्तराखण्ड के लिए, देश के लिए.
लक्ष्य और उनके परिवार के बैडमिंटन और खेल के प्रति समर्पण को शब्दों में नहीं आंका जा सकता है. ओलंपिक का वह पायदान जहां तक पहुँचाना ही खिलाड़ी का सपना होता है महज़ 22 वर्ष की उम्र में वहाँ पहुँच कर अपने खेल से इतिहास रचना बहुत बड़ी बात है.
अल्मोड़ा से पेरिस ओलंपिक तक के इस सफ़र का सपना लक्ष्य सेन और उनके परिवार के साथ अल्मोडा के खेल प्रेमियों ने भी देखा था जिसे लक्ष्य ने बखूबी पूरा किया. अल्मोड़ा को गर्व है लक्ष्य के संघर्ष और सफलता की इस गाथा पर जिसे वह और आगे ऊँचाइयों तक लेकर जाएगा.
(Lakshya Sen in Almora)
लक्ष्य और उनकी तरह के दुनिया भर के खिलाड़ियों के त्याग, तपस्या और संघर्ष की इन गाथाओं को महज़ धातु के एक मैडल से नहीं तोला जाना चाहिए. उनका तप इससे कहीं ज़्यादा भारी है चमकीला है.
कल पेरिस ओलंपिक 2024 से अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ देने के बाद अपने घर अल्मोड़ा पहुँचने पर अल्मोड़ा के लोगों ने लक्ष्य को बड़े जोश के साथ गले लगाया उनका भव्य स्वागत किया गया उनके साथ इस खूबसूरत लम्हे में उनके माता-पिता भी थे. इस मौक़े पर उनका नागरिक अभिनंदन किया गया. मॉल रोड में हुए रोड शो में नगर के खिलाड़ियों ने ओलम्पियन लक्ष्य के सम्मान में बाइक रैली निकाल कर उनकी समारोह स्थल तक आगवानी की. ओलम्पियन लक्ष्य सेन के पेरिस ओलंपिक के बाद पहली बार कल अपने घर अल्मोड़ा आगमन के ताज़ा तस्वीरें :
(फोटो एवं विवरण काफल ट्री के अनन्य साथी जयमित्र सिंह बिष्ट, हिमालयन जेफर, की फेसबुक से लिया गया है.)
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
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