चाहे गंभीर बातों को मनोरंजक तरीके से कहना हो या फिर गाढ़ी शब्दावली अथवा गंभीर विचारों को मनमाफिक तरीके से समझाना, इन मामलों में राजू हीरानी बेजोड़ है.
मुन्ना-सर्किट के माध्यम से गांधीवाद की सरल और मनोरंजक व्याख्या ने दर्शकों को खूब लुभाया. हालांकि इससे काफी समय पहले फणीश्वर नाथ रेणु ने ‘मैला आंचल’ में इस प्रयोग को बखूबी आजमाया. गांधीवाद के श्रेष्ठ मूल्य, आमजन तक पहुँचते-पहुँचते किस स्वरूप को प्राप्त हो जाते हैं, वे उन सिद्धांतों को कैसे लेते हैं, उपन्यास में यह विसंगति बालदेव के माध्यम से दिखाई गई है.
बहरहाल इस युग की विषमताओं, दुरूह समस्याओं और द्वंद्व से व्यक्ति वैसे ही बुरी तरह से हैरान-परेशान है, लेकिन फिल्म ने ठेठ सैद्धांतिक विषय गांधीगिरी को जिस उमंग और उत्साह के साथ दर्शकों को परोसा, गांधीजी के विचारों से उन समस्याओं का जो भी समाधान दिया, दर्शकों ने उसका बाकायदा जायका लिया. इतना ही नहीं उससे सीधे कनेक्ट भी किया. मुन्ना भाई एमबीबीएस ने दुनिया को जीना सिखा दिया
हालांकि इन गांधीवादी प्रयोगों में सर्किट की शंका अंत तक बनी रहती है. वह कहता है, “बापू, अपने धंधे की वाट लगाने वाले हैं.”
वह हवालात के सींखचों के पीछे, मुन्ना से अपनी शंका व्यक्त करता है, “भाई… भाई! तेरे को श्योर है ना, अपुन के रोज-रोज इधर आने से रेपुटेशन बढ़ेगा.”
मजे की बात यह है कि, फिल्म में सब कुछ स्वदेशी है. उससे बढ़कर विशुद्ध देशी भी है. गीतों की रचना तो विशुद्ध देशज शब्दों के संयोजन से की गई है- ‘बंदे में था दम. वंदे मातरम्…’ बासु चटर्जी की फिल्म दिल्लगी: सूक्ष्म मनोविज्ञान की गहरी पकड़
मुन्ना, ‘रघुपति राघव राजा राम…’ गाकर बापू का आह्वान करता है. फिर उनसे रिक्वेस्ट करता है, “कोई आइडिया निकालकर बचा लो बापू.”
बापू उसकी रंगत पहचानकर कहते हैं, “मेरे रास्ते पर तो तुम चलोगे नहीं. बोलकर क्या फायदा.”
इससे मुन्ना के अहंकार को चोट पहुँचती है, तो वह कॉन्फिडेंस दिखाते हुए कहता है, “बहुत डेरिंग है अपुन में.”
बापू उसे गांधीवादी रास्ते की दुश्वारियां जताते हुए कहते हैं, “मेरा रास्ता आसान नहीं है, पर जीत पक्की.”
यह सुनकर मुन्ना चौंक उठता है, “तुमको इतना कॉन्फिडेंस है.”
इस पर बापू कहते हैं, “माफी माँगने के लिए हिम्मत चाहिए. यह कायरों का काम नहीं…”
जब मुन्ना, जेट्टी के ऊपर सर्किट से माफी माँगता है, तो उसके मन का सारा कलुष धुल जाता है. वह वहीं से चिल्ला उठता है, “दिल हल्का हो गया बापू..”
जब ‘सेकंड इनिंग’ के बुजुर्ग लोग, जाह्नवी के साथ वकील से मिलने जाते हैं, तो वकील उन्हें कहता है कि वह छह महीने में रिलीफ दिला देगा. इस पर मुन्ना उससे लिखित गारंटी मांगता है. जब वकील टालामटोली करता है, तो मुन्ना उसे डपट देता है, “छै महीना बोलता है, और छै साल का गारंटी भी नहीं दे सकता.”
वह अपनी बात जारी रखते हुए कहता है, “अपुन एक वकील से मिलके आया है.” “कौन वकील?”
“बहुत बड़ा वकील है.”
दीवार पर बापू की बड़ी सी तस्वीर टंगी रहती है.
“लंडन में पढ़ाई किएला है और साउथ एफ्रिका में प्रैक्टिस.”
वकील की निगाहें खुद-ब-खुद धनुष भाई पटेल उर्फ गुज्जू के बस्ते की तरफ मुड़ जाती है. वह मन-ही-मन कहता है, “गुज्जू!”
वह बार के वकीलों से उसकी शिकायत करता है, “ये साला गुज्जू, गेट पे खड़ा रहके मेरे क्लाएंट बिगड़ता है.”
इधर गांधीवाद पर मुन्ना की तकरीर जारी रहती है, “दुश्मन तुमको गाली दे, तो उसको स्माइल देने का.” “ऐसा गुज्जू बोला.”
“एक दिन उसकी नफरत कमती होएगी और अपुन के लिए इज्जत बढ़ेगी.”
“वो ये भी बोला, दुश्मन का दिल जीतने का है, तो ये वकील लोगों की जरूरत नहीं.”
यह सुनते ही बार में हंगामा मच जाता है. तभी गुज्जू अंदर आ पहुँचता है. सारे वकील उस पर टूट पड़ते हैं. गांधीजी के चित्र के ठीक नीचे, अच्छी-खासी हिंसा हो जाती है.
वह जाह्नवी को बताता है कि वह अब दादागिरी का अपोजिट गांधीगिरी अपनाएगा.
वह लखबीर सिंह उर्फ लक्की सिंह को ‘गेट वेल सून कार्ड’ के साथ फूल भेजता है. लक्की सिंह को भेजे संदेश में लिखा रहता है, “अपना वकील बोला, बेईमानी एक बीमारी है, जिसको लगी, उसकी लगी. तेरे को आईडिया नहीं कि तू इतना बीमार है. अपुन तेरी बीमारी मिटाएगा. जब तक तू गेट वेल सून नहीं होता, तब तक तेरे साथ ही रहेगा.”
लकी सिंह को सैद्धांतिक बात समझ में नहीं आती, तो वह पूछता है, “इ की ड्रामा है मुन्ना?”
“सत्याग्रह बोलते हैं, इसको.” पड़ोसन: ऑल टाइम क्लासिक रोमांटिक कॉमेडी
“जब तक आप को ये एहसास नहीं हो जाता कि ठीक हो गए.. ऐसा करने से दुश्मन के स्वभाव में परिवर्तन आता है.”
गेट के पास सत्याग्रहियों की गार्ड्स के साथ गहमागहमी हो जाती है. मुन्ना सर्किट से गार्ड से जबरदस्ती सॉरी बोलने को कहता है. इस चक्कर में दोनों को पुलिस पकड़ ले जाती है.
सर्किट को इस बात पर गहरा अफसोस होता है. वह हवालात में मुन्ना से कहता है, “कम-से-कम किडनैपिंग का चार्ज तो लगाना था. अपुन कितने घर खाली करवाया. बावन किडनैपिंग किएला है.. कम-से-कम ढाई सौ हड्डी तो तोड़ा ही होएंगा…कभी अंदर नहीं आया. फर्स्ट टाइम फर्स्ट..फर्स्ट टाइम… किसी को सॉरी बोला.. डायरेक्ट अंदर. पब्लिक हँसेंगा हम पर… भाई! अपना रेपुटेशन एकदम फिनिश हो गया.”
मुन्ना उसे ज्ञान देता है, “तेरे को मालूम! बापू ने सिर्फ नमक बनाया… और उसको डायरेक्ट अंदर कर दिया.” इस पर सर्किट हैरत जताता है, “बापू की इज्जत की तो वाट लग गई होगी.”
“अरे! नई रे! जितना टाइम बापू अंदर रहा ना… उतनाई उनका इज्जत बढ़ा… क्योंकि वो राइट था.”
यह सुनकर सर्किट को भाई का भविष्य, काफी उज्ज्वल दिखाई पड़ता है. वह भविष्य की ओर देखते हुए कहता है, “अपुन भी राइट काम करके आठ-दस बार अंदर रहा ना..”
“अपुन के नाम का पार्क में पुतला लगेंगा.. अपना फोटो होगा हर नोट पर… अपनाइच नाम का रोड..मुन्ना भाई मार्ग..स्कूल की किताबों में अपनी दोस्ती के किस्से… चैप्टर सिक्स… मुन्ना और सर्किट… नेताओं के भाषण में अपने ही चर्चे… अपुन के बर्थडे में मुन्ना जयंती.. बोले तो, बैंक होलीडे..”
जाह्नवी के रेडियो स्टेशन पर नया शो लॉन्च होता हैं- बापू का मैजिक. मुन्ना उसमें गांधीवादी विशेषज्ञ की हैसियत से शामिल होता है. शो का सीधा प्रसारण चलता है, “बोले तो.. सौ साल पहले अपुन की कंट्री में एक मस्त आदमी आया था- एम के गांधी.. तुम्हारी लाइफ में कोई भी लोचा हो, अपुन को बोलो.. अपुन गांधीगिरी से सॉल्व करेगा..” लकी सिंह के लिए उसकी एक्सपर्ट राय रहती है, “बहुत बीमार है. फुल आईसीयू केस है. इलाज कराने को तैयार नहीं है.”
वह फर्स्ट कॉलर डिसूजा को सच बोलने को प्रोत्साहित करता है, “पिताजी को निडर होके सच-सच बता दो… डेरिंग करके अपने बाप को सच-सच बोल…”
आरंभ में गांधीजी और गांधीवाद से मुन्ना-सर्किट एकदम अनजान से रहते हैं. उन्हें जो भी जानकारियाँ मिलती हैं, वे उनके लिए एकदम चौंकाने वाली साबित होती है.
शुरू में छवि चमकाने के उद्देश्य से वे गांधीवाद के संपर्क में आते हैं, जब शुरुआती नतीजे स्थाई और तसल्लीबख्श निकलते हैं, तब जाकर उन्हें गांधीगिरी आकर्षित करने लगती है. मुन्ना, एक रेडियो उद्घोषिका जाह्नवी (विद्या बालन) से मिलने और उस पर प्रभाव जमाने के इरादे से पहली बार गांधीजी और गांधी- दर्शन के संपर्क में आता है. वह बिल्डिंग, प्रॉपर्टी को खाली कराने, कब्जे कराने जैसे काम करता है. रेडियो पर दो अक्टूबर के उपलक्ष्य में होने वाले क्विज़ से पहले उसे गांधीवाद के बारे में जानकारी जुटानी पड़ती है. वह सर्किट से पूछता है, “दो अक्टूबर को क्या है?” सर्किट सहजता से जवाब देता है, “ड्राइ डे है भाई.”
मुन्ना उसे बताता है, “बापू बोले तो महात्मा गांधी.इनके बारे में क्या जानता है?”
“जास्ती नहीं मालूम.. बॉडी-वॉडी कुछ खास नहीं था.. लेकिन डेरिंग भौत था.”
“आर्मी में था क्या?” “यूनिफॉर्म में तो देखा नहीं भाई और नोट पर क्लोजअप रहता है ना.” बहरहाल जानकारों- प्रोफेसरों को बंधक बनाकर, भय-प्रलोभन देकर मुन्ना कंटेस्ट जीत लेता है. वह जाह्नवी को मिलने को आतुर सा दिखता है.
क्विज कंटेस्ट विजेता के रूप में वह रेडियो स्टेशन पहुँचता है, लेकिन कुछ ऐसा वाकया घटित होता है कि, वह जाह्नवी से मिलने से पहले ही नर्वस हो जाता है. वॉशरूम में सर्किट से कहता है, “वो जो बाल ऐसे गाल पर आकर गिरता है, उसको क्या बोलते हैं.”
सर्किट बड़ी मशक्कत करता है. फिर कुछ सोचकर बोलता है, “सेंडी.”
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तभी सर्किट को स्मरण हो आता है, “लट! लट बोलते हैं, भाई.”
“हाँ, तो फिर उसने अपनी उंगली से उस लट को उठाकर अपने कान के पिच्छू कर लिया… मैं तो उधरीच बैठ गया.”
सर्किट उसकी हौसलाअफजाई करते हुए कहता है, “क्या भाई! तू कम है किसी से. तुम भी किसी के कान के नीचे एक हाथ धर लेते हो, तो वो भी बैठ जाता है ना.”
वह मुन्ना का आत्मविश्वास बढ़ाते हुए कहता है, “भाई! टेंशन नहीं लेने का. फुल कॉन्फिडेंस.. वो क्या है ना.. विनम्र के साथ बात करने का…”
“ये साला विनम्र कौन है?” “विनम्र.. हिंदी में बोले तो पोलाइट.. वो प्रोफेसर मेरे को बताया…”
वॉशरूम में दोनों के बीच जोरदार हिंदी-विमर्श चलता है. सर्किट उसे सचेत करते हुए कहता है, “हिंदी थोड़ा संभाल के बोलना भाई… हम बोलते हैं, अपने देश की वाट लग गई… तो ऐसा मत बोलना.”
फिर दिमाग पर जोर डालकर कहता है, “बोलना दुर्गति हो गैली है.. भारी- भारी शब्द फेंकने का… जैसे हृदय परिवर्तन.. आत्मा संतुलन.”
तभी मुरली प्रसाद शर्मा का का बुलावा आ जाता है.
जाह्नवी उससे सवाल करती है, “क्या आपको नहीं लगता, लोग उनको भूलते जा रहे हैं.”
यहाँ पर यह सवाल एक सार्वभौमिक किस्म का सा सवाल बन जाता है. मानों वह यह सवाल मात्र मुन्ना ही से ही नहीं पूछ रही हो वरन् समस्त समुदाय से पूछ रही हो. यही फिल्म का संदेश भी है.
खैर मुन्ना अपनी अधिकतम जानकारी के हिसाब से जवाब देता है, “बिल्कुल नहीं. आज भी उनके ऑनर में दो अक्टूबर को ड्राई डे रखा जाता है.”
“क्या आप उनके बताए हुए रास्ते पर चलते हैं?”
वह बिना रुके, जवाब में कहता है, “अपुन तीन किलोमीटर रोज चलता है, महात्मा गांधी रोड पर.”
वह जब उसकी भाषा और बातचीत के तौर-तरीके पर सवाल खड़ा करती है, तो मुन्ना सफाई में कहता है, “अक्खी कंट्री की भाषा की वाट लगेली है.”
तभी उसे सर्किट की समझाइश याद हो आती है, तो वह संभलकर कहता है, “भाषा की दुर्गति हो गैली हैं.”
“अब वो क्या बोलते हैं? हृदय-परिवर्तन होगैला है. ऐसा लगता माफिक ‘हार्ट अटैक’ आगेला है.” प्रकारांतर से वह भारी-भरकम गांधीवादी शब्दावली पर तंज कसता है. क्यों आमजन इससे दूर होता चला गया, क्यों यह दर्शन उन्हें दुरूह सा लगने लगा. बहरहाल उसके ठेठ अंदाज ए बयां से वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाती. वह फौरन उसे ‘सेकेंड इनिंग्स हाउस’ के बुजुर्गों को गांधी पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित कर डालती है, “क्या आप उन्हें गांधी जी पर लेक्चर दे सकते हैं?” सर्किट लाख बहाने बनाने की कोशिश करता है, लेकिन मुन्ना जाह्नवी को प्रभावित करने का कोई मौका नहीं चूकना चाहता. वह उसे रविवार के लिए ‘डन’ कर देता है.
गांधी और गांधीवाद के बारे में दोनों नितांत कोरे निकलते हैं. मरता क्या न करता. अंततः सर्किट उसे महात्मा गांधी ग्रंथालय का रास्ता दिखाता है, “पाँच दिन में जितना पढ़ सकता है, पढ़ ले.”
लाइब्रेरी में उसे हरिराम(सुरेंद्र राजन) मिलता है, “बापू के ऊपर कोई इंफॉर्मेशन मिल सकती है क्या?”
हरिराम, पलक-पाँवडे बिछा देता है, “बरसों बाद कोई यहाँ आया है. बड़ी खुशी हो रही है.”
इस संवाद में फिल्मकार की फिर वही चिंता सामने आती है, कि गांधीवादी मूल्यों से लोग कितने दूर होते जा रहे हैं. सुरेंद्र राजन गांधीवादी मूल्यों में विश्वास रखने वाले कलाकार रहे हैं, मजे की बात यह है कि, थिएटर से लेकर क्षेत्रीय भाषाओं में बनी फिल्मों में गांधी का अभिनय निभाने का उनका विस्तृत अनुभव रहा है.
खैर, रविवार को आने वाले संकट के चलते मुन्ना, गांधी पर कमरतोड़ पढ़ाई करता है. वह तीन दिनों तक बिना सोए, बिना रुके गांधी पर लगातार पढ़ता चला जाता है. तभी उसे लाइब्रेरी के अंदर बापू की सी छवि दिखाई पड़ती है. वह उसे ‘फैंसी ड्रेस’ समझकर धमाकाने की कोशिश करता है. घबराहट में उसके मुँह से निकल जाता है, “तुम आत्मा-आत्मा तो नहीं हो.” बापू, संयमित वाणी में कहते हैं, “आत्मा नहीं चेतना कर सकते हो.”
सर्किट उसे किसी जाने-माने साइकेट्रिक को दिखाता है. साइकेट्रिक लक्षण जानकर बताता है, “दिमागी थकान, केमिकल इंबैलेंस से कभी-कभी कभी ऐसा हो जाता है. अकेले में आवाजें सुनाई देती हैं. इसे हलुशनेशन कहते हैं.”
साइकेट्रिस्ट मुन्ना को निर्णायक निष्कर्ष सुनाता है, “आपका थका हुआ दिमाग आपको गांधीजी दिखा रहा है.”
मुन्ना को वहाँ पर भी गांधीजी दिखाई देने लगते हैं. इस बात को लेकर उनकी साइकेट्रिक से अच्छी-खासी झड़प हो जाती है. सर्किट, मुन्ना का मन रखने के लिए कहता है, “भाई! तुम्हारा विल पावर इतना सॉलिड है ना, कि वो बुक के बाहर आ गया.”
सेकंड इनिंग के बुजुर्गों के सामने व्याख्यान देने के लिए, मुन्ना को बापू की मदद की दरकार पड़ती है. वह बापू से गुजारिश करता है, “बापू मिस्टर इंडिया टाइप बन के मेरे साथ वहाँ पर रहना.”
जब रविवार को वहाँ पर उसका व्याख्यान शुरू होता है, तभी जाह्नवी के दादा मुन्ना को एक घटना का ब्योरा बताते हैं,कि कुछ दिन पहले पार्क में एक नौजवान ने पत्थर उठाया और बापू की प्रतिमा को खंडित कर दिया. वे मुन्ना को गांधीवादी विशेषज्ञ जानकर, इन बिगड़ती हुई स्थितियों के बारे में सवाल करते हैं. मुन्ना बापू की मदद से समाधान देता है, “उससे कहना चाहिए था, फुल पुतला गिरा दो. फुल कंट्री में बापू का जितना भी पुतला है, सब गिरा दो.” ऐसे विचार सुनकर सभी बुजुर्ग हैरत में पड़ जाते हैं. यहाँ तक कि, जाह्नवी भी.
वह अपनी तकरीर जारी रखते हुए कहता है, “जितनी भी तस्वीर लटकेली है, हटा दो. हर बिल्डिंग, रोड-वोड से बापू का नाम निकाल दो. अगर बापू को रखने काइच है, तो अपने दिल में रखो…” “आज अगर बापू होता तो कहता, देश अपना हो गया, लोग पराए हो गए.”
फिल्म का वह दृश्य भी बड़ा मजेदार है, जब मुन्ना सर्किट से कहता है, बापू को घर छोड़ दो.
नशे में चूर सर्किट, अनुमान के आधार पर बापू को देखने का दावा करता है. वह भाई का हुकुम बजाते हुए कहता है, “ऐ बापू! लेट्स गो! अकेले नहीं घूमने का. देर रात घूमने से आंखों के नीचे डार्क-डार्क सर्किल हो जाते हैं.”
फिल्म में उपेक्षित बुजुर्गों की समस्या को बड़ी गंभीरता से दिखाया गया है. मुन्ना अपने देशी तौर-तरीकों से आत्माराम का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाने का प्रबंध करता है. वह बॉबी अंकल का भी मददगार बनता है. सिमरन मांगलिक रहती है, लेकिन लकी बड़ी चालाकी से खुराना साहब (कुलभूषण खरबंदा) को यह आश्वस्त करने में कामयाब हो जाता है कि, उसकी बेटी की कुंडली निर्दोष है. विवाह से ऐन पहले जब सिमरन को सच्चाई का पता चलता है, तो उसे गहरा आघात पहुँचता है. वह शादी के ही जोड़े में आत्मघाती कदम उठाने की कोशिश करती है, तो मुन्ना विक्टर के मार्फत उसे कन्वींस कर लेता है. उसे सच बोलने का साहस देता है. विवाह मंडप में मुन्ना-सर्किट, बटुक महाराज को अपने तरीकों से सीधा करते हैं. खुराना की अनिच्छा के बावजूद, सिमरन-सन्नी विवाह-बंधन में बँध जाते हैं. इससे पहले मुन्ना बड़ी मार्मिक सी अपील करता है, “मुझे नहीं रहना इन समझदार लोगों के बीच…”
बोमन ईरानी, एक बार फिर सधे हुए आर्टिस्ट के रूप में नजर आए. धूर्त प्रॉपर्टी- कारोबारी की भूमिका को उन्होंने जीवंत करके रख दिया. हृदय-परिवर्तन के पश्चात वह भी ‘हल्लुशिनेशन’ का शिकार हो जाता है. उसे भी बापू दिखाई देने लगते हैं.
सर्किट का स्लैंग बोलना और स्वतः स्फूर्त अंदाज में संवाद अदायगी दर्शकों को खूब रास आई. गंभीर विषय होने के बावजूद, फिल्म मनोरंजन की दृष्टि से बेजोड़ रही, विचारोत्तेजक रही. यह राजू हीरानी-विधु विनोद चोपड़ा की उर्वर दृष्टि ही कही जाएगी, कि उन्होंने ऐसे मुद्दे को देश-काल से जोड़कर पेश करने की हिम्मत दिखाई. फिल्म दर्शकों पर वाजिब असर डालने में कामयाब रही.
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ललित मोहन रयाल
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दो अन्य पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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