नैनीताल जिले का मुक्तेश्वर कभी अपनी रामलीला को लेकर भी खासा जाना जाता था. आसपास के गांवों से लोग हाथ में मशाल लेकर रात की रामलीला देखने आते थे.
सभी धर्मों के लोग इस रामलीला में प्रतिभाग करते थे. मगर समय बीतता गया, पात्रों की कमी होने लगी और इस तरह रामलीला का आकर्षण भी कम हो चला.
एक बार रामलीला मंचन के दौरान एक ऐसी घटना घट गई जिससे सभी हतप्रभ रह गए, लक्ष्मण शक्ति के दिन लक्ष्मण का पात्र निभा रहे पात्र सदा के लिए भगवान श्रीराम के चरणों में विलीन हो गए.
मेघनाद का तीर लक्ष्मण को लगता है वो अचेत हो कर स्टेज में गिर जाते हैं. राम जी की सेना में हलचल मच जाती है. मगर यह क्या, लक्ष्मण का पात्र निभा रहा व्यक्ति शून्य अवस्था में है. दर्शकों को लगता है कि पात्र मजाक कर रहा है मगर ऐसा नहीं था उस व्यक्ति की आत्मा तो अनंत की यात्रा पर प्रभु श्री राम से मिलने निकल चुकी थी बस शरीर ही रामलीला स्टेज पर पड़ा था.
क्षेत्रवासी बुजुर्ग गणेश बोरा , सुधीर कर्नाटक, दया किशन पाण्डेय पुरानी यादें ताजा करते हुए बताते हैं की मुक्तेश्वर में रामलीला का मंचन सन 1954 से शुरू हुआ.
उस रोज हुई घटना कभी भूली नहीं जाती जब लक्ष्मण का पात्र निभा रहे गोपाल कर्नाटक को 1956 की रामलीला में लक्ष्मण शक्ति असल में लग गयी. लोगों ने सोचा कि शायद बेहोश है. पर जब काफी देर हो गयी तो उन्हें हिलाया-डुलाया गया. तब तक वे प्राण त्याग चुके थे
तभी से बाजार क्षेत्र में आयोजित होने वाली रामलीला का मंचन मुक्तेश्वर स्थित आईवीआरआई के परिसर में किया जाने लगा. तब से लगभग साठ सालों तक इसी जगह पर रामलीला का मंचन होता रहा जिसकी अब बस यादें शेष हैं.
पहले जब रामलीला मंचन होता था तो आईवीआरआई (भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान) के अन्तर्गत आने वाले समस्त विभाग जैसे वैज्ञानिक वर्ग, तकनीशियन वर्ग, काष्ठ -कला अनुभाग, अभियांत्रिक अनुभाग से जुडे तमाम लोग भी अपने-अपने तरीके से रामलीला करवाने में अपना योगदान देते थे. कई देशी-विदेशी पर्यटक भी रामलीला देखने पहुँचते थे.
रामलीला स्टेज के समीप सजी दुकानों पर गरमा-गरम जलेबी और पान खाने को भी लोगों का हुजूम लगा रहता था.
हल्द्वानी में रहने वाले भूपेश कन्नौजिया बेहतरीन फोटोग्राफर और तेजतर्रार पत्रकार के तौर पर जाने जाते हैं.
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