इन दिनों उत्तराखंड में कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति अपने ऊलजलूल बयानों के कारण चर्चा में हैं. हाल ही में उनके द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र विवादों में रहा था जिसमें उन्होंने उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश के तीन मैदानी जिलों को शीघ्र शामिल किये जाने की मांग की थी. अब उन्होंने रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ में कुमाऊं यूनिवर्सिटी के अध्यापक द्वारा व्यावसायिक विषयों को पढ़ाने का एक नया तुगलकी फरमान जारी किया है. कुलपति के इस बेतुके फैसले पर वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मण सिंह ‘बटरोही’ की टिप्पणी : संपादक
2004 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने प्रख्यात भारतीय कवयित्री महादेवी वर्मा के रामगढ़ स्थित घर को एक सृजन पीठ बनाने के लिए डेढ़ करोड़ रुपये की धनराशि आबंटित की थी ताकि उत्तराखंड और देश भर की कला-प्रतिभाओं को अपनी प्रतिभा निखारने का मौका मिल सके. अनुदान की राशि भारतीय रिजर्व बैंक में जमा है जिसका ब्याज, जो एक लाख रुपए प्रति माह है, विश्वविद्यालय हर महीने प्राप्त करता है.
हाल ही में आये एक कुलपति ने इस सृजन पीठ का मुआयना करने के बाद तुगलकी घोषणा कर दी है कि कवयित्री के इस घर में अब कुमाऊँ यूनिवर्सिटी के विद्वान अध्यापक व्यावसायिक विषयों को पढ़ाएंगे.
साहित्य और कलाओं के प्रति उनमें यह औरंगजेबी नाराजी क्यों है यह शोध का विषय है; जब कि सुना है, मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा इस परिसर में साहित्यकार अमृत लाल नागर के नाम से करोड़ों का एक राईटर्स होम तैयार हो रहा है. स्वर्गीय शैलेश मटियानी की स्मृति में स्थापित एक भव्य पुस्तकालय यहाँ पहले से मौजूद है.
खास बात यह है कि यह संस्थान फ़िलहाल अनाथ हालत में पड़ा है, पिछले लम्बे समय से यहाँ न कोई गतिविधि है और न कोई इसका रखवाला है. किसी को नहीं मालूम कि करोड़ों के बजट का क्या हाल है?
लक्ष्मण सिह बिष्ट ‘बटरोही‘ हिन्दी के जाने-माने उपन्यासकार-कहानीकार हैं. कुमाऊँ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके बटरोही रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ के संस्थापक और भूतपूर्व निदेशक हैं. उनकी मुख्य कृतियों में ‘थोकदार किसी की नहीं सुनता’ ‘सड़क का भूगोल, ‘अनाथ मुहल्ले के ठुल दा’ और ‘महर ठाकुरों का गांव’ शामिल हैं. काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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