कुछ फीट की दूरी पर दो डंडे लगा उनमें रस्सी बांधना और फिर उस रस्सी पर किताबें लटका कर उस जगह को सजाने की कोशिश करना, नानकमत्ता पब्लिक स्कूल के बच्चे अलग-अलग गांव में करते रहे हैं. पुस्तक मेला के द्वारा वहां गांव के बच्चों को इकठ्ठा कर एक खुशनुमा वातावरण बनाते रहे हैं. किताबों के साथ-साथ बच्चों के साथ मिलकर किसी गांव में मूवी देखना, कहीं मिठाई बांटना और कहीं खेल खेलना भी लगा रहता था. अब सिर्फ एक गांव के बच्चों की जगह अनेक स्कूलों के बच्चे और बड़े-बूढ़े लोग भी एक जगह आ पुस्तक मेले का आनंद उठाने लगे. कब एक छोटी सी रस्सी पर टंगी 50 किताबों से बड़े-बड़े स्टॉल पर लगीं 50,000 से अधिक किताबों में तब्दील हो गई. इसके पीछे भी एक अनोखी सी यात्रा रही है जिसे इन बच्चों के सामूहिक प्रयास अलग-अलग पड़ाव पर सफल बनाते आए हैं.
(Kitab Kautik Nanakmatta)
नानकमत्ता किताब कौतिक 1 दिसंबर से 3 दिसंबर को नानकमत्ता डिग्री कॉलेज में आयोजित हुआ. नानकमत्ता किताब कौतिक ने नानकमत्ता के कई स्कूलों के साथ-साथ करीब 30-40 किलोमीटर दूर के कुछ स्कूलों के बच्चों को भी किताबों से जुड़ने का मौका दिया. नानकमत्ता किताब कौतिक को आयोजित करने में हेम पंत का बहुत बड़ा योगदान रहा. इससे पहले भी वह उत्तराखंड के कई जनपदों में ऐसे मेले आयोजित कर चुके हैं. इस किताब कौतिक के मेज़बान नानकमत्ता पब्लिक स्कूल के लर्नर्स ने इस कौतिक में वॉलंटियर का रोल अदा किया और साथ ही डिग्री कॉलेज के साथियों ने भी वॉलंटियर का किरदार निभाकर इस किताब कौतिक को सफल बनाने में अपना योगदान दिया.
उधम सिंह नगर के एक छोटे से कस्बे नानकमत्ता में पढ़ने-लिखने की संस्कृति को लेकर एक शानदार पहल थी जिसके दिन कुछ इस तरह बंटे थे – पहले दिन अलग-अलग स्कूलों में करियर काउंसलिंग के सत्र हुए और अगले दो दिन डिग्री कॉलेज के मैदान में पुस्तकों से सजा मेला लगा. जिसमें न सिर्फ पुस्तकें थी बल्कि उनके साथ-साथ हाथों से बनाई कला का रंग-बिरंगा जादू, विज्ञान की जिज्ञासा, रचनात्मकता की चमक और खाने की महक ने भी अलग-अलग कोने थामे हुए थे. इसके साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों के गानों की धुन उस वातावरण में घुल रही थी.
(Kitab Kautik Nanakmatta)
पिथौरागढ़ से आए आरंभ स्टडी सर्कल ने एक लंबा सा स्टॉल लगाकर बड़ी सहजता से बड़ों और बच्चों की किताबों को बांटा हुआ था. सुंदर किताबों के साथ स्टॉल में खड़े दीदी-भैया का बच्चों के प्रति सदाचार और प्यारा व्यवहार उनकी एक बेहतर छवि हम सब के मन मस्तिष्क में छोड़ रहा था. उनके साथ ही नवारुण प्रकाशन, बुक ट्री, साइंस मॉडल के अलग-अलग स्कूलों के बच्चों के अलग-अलग स्टॉल, ऐपण कला, स्केच, बुनाई-कड़ाई, अन्य कला आदि के स्टॉल भी लगे हुए थे.
इन सभी स्टॉल को संभाल रहे दूर-दूर से आए लोगों के रहने का प्रबंध गुरुद्वारा द्वारा किया गया. साथ ही वहां आए लोगों के खाने का इंतजाम भी सिख धर्म के तीसरे स्तंभ ‘वांड्ड छको’ यानी ‘मिलकर खाओ’ को ध्यान में रखते हुए गुरुद्वारा लंगर ने ही किया. 2 दिसंबर की सुबह को डिग्री कॉलेज की क्लासों से नानकमत्ता के वालंटियर ने सभी बेंच बाहर निकल स्टॉल सजाने में मदद की और 3 दिसंबर की शाम को फिर से उन्हीं वालंटियर ने उन बेंच और टेबलों को वापिस कक्षाओं में रखकर कुछ ही मिनटों में उस जगह की काया पलट कर उसे फिर से डिग्री कॉलेज में तब्दील कर दिया. परंतु इस समय उस जगह के साथ कई नए यादगार पल जुड़ चुके थे और वालंटियर्स के साथ अनेक नए अनुभव और अनुभवों में छिपी नई सीख.
(Kitab Kautik Nanakmatta)
नानकमत्ता पब्लिक स्कूल से 12वी कक्षा की छात्रा गुरप्रीत कौर की रपट
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