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दुनिया में सिर्फ दो और जगहों पर है कसारदेवी जैसी ऊर्जा

क्या है वान एलेन रेडियेशन बेल्ट

एक अमेरिकी वैज्ञानिक हुए जेम्स अल्फ्रेड वान एलेन. 7 सितम्बर 1914 को जन्मे वान एलेन यूनिवर्सिटी ऑफ़ आयोवा के अन्तरिक्ष विज्ञान विभाग में काम करते थे. 1958 में उन्होंने अन्तरिक्ष में भेजे गए उपग्रहों एक्स्प्लोरर 1, एक्स्प्लोरर 3 और पायनियर 3 में भेजे गए गीगर-म्यूलर ट्यूब उपकरणों के सर्वेक्षणों की मदद से धरती पर चुम्बकीय पट्टियों की खोज की थी. जेम्स अल्फ्रेड वान एलेन ने अंतरिक्ष अभियानों में वैज्ञानिक शोध के उपकरणों का प्रयोग करने वाले वैज्ञानिकों का नेतृत्व किया था.

वान एलेन द्वारा खोजी गए इन चुम्बकीय पट्टियों को उन्हीं के नाम पर वान एलेन रेडियेशन बेल्ट कहा गया. इन पट्टियों का उद्गम सौर-पवन (Solar Wind) से निकले ऊर्जा से आवेशित कणों से होता है. इन कणों को धरती की चुम्बकीय शक्ति अपने नज़दीक खींचे रहती है. वैज्ञानिक साक्ष्य हैं कि ये स्थान विशिष्ट शक्तियों से परिपूर्ण होते हैं.

माचू पिच्चू

तीन विशिष्ट जगहें

अमेरिकी एजेंसी नासा ने दुनिया में केवल तीन स्थानों की पहचान की है जहाँ इन चुम्बकीय पट्टियों में सबसे अधिक ऊर्जा है. पहला स्थान है दक्षिण अमेरिका के पेरू के दक्षिण में स्थित माचू पिच्चू. यह पहाड़ विख्यात इन्का सभ्यता का केंद्र रहा था जिसके शानदार अवशेष आज भी वहां देखे जा सकते हैं.

स्टोनहेन्ज

दूसरी जगह है इंग्लैण्ड का स्टोनहेन्ज. विल्टशायर में एम्सबरी से तीन किलोमीटर दूर स्थित स्टोनहेन्ज ईसा से दो से तीन हज़ार वर्ष पुराने खड़े पत्थरों के लिए जाना जाता है. एक गोले के आकार में खड़े किये गए ये पत्थर संख्या में कोई दो दर्ज़न हैं प्रत्येक पत्थर करीब तेरह फुट ऊंचा और सात फुट चौड़ा है. हर पत्थर का वज़न करीब पच्चीस टन है. मानक सभ्यता के इतिहास के अनेक रहस्य इस पुरातन स्थान पर दफ़न हैं.

कसारदेवी का मन्दिर

तीसरा स्थान है उत्तराखण्ड के कुमाऊँ में स्थित कसारदेवी. अल्मोड़ा नगर से छः किलोमीटर दूर कसारदेवी के मंदिर के पास यह वान एलेन मैग्नेटिक रेडियेशन बेल्ट पाई गयी है.

कसारदेवी की ख्याति

इस क्षेत्र को दुनिया भर में क्रैंक्स रिज के नाम से ख्याति मिली है.

यह बेल्ट कश्यप पर्वत पर पाई गयी जिसके ऊपर कसार देवी का पुराना मंदिर अवस्थित है. माना जाता है कि यह मंदिर दूसरी शताब्दी में बनाया गया था. एक अनुमान यह भी है कि ईसा से नौ सौ वर्ष पूर्व पश्चिमी एशिया से आये प्राचीन कासाइट सम्प्रदाय के अनुयायियों ने इस मंदिर की स्थापना की थी.

इसी समुदाय के नाम पर कसारदेवी का नाम पड़ा बताया जाता है.

कसारदेवी मंदिर के पास अनेक गुफाएं और शरणस्थालियाँ हैं जहाँ संभवतः ज्ञानार्थी और तपस्वी रहा करते होंगे. 1880 के दशक में स्वामी विवेकानंद भी यहाँ ध्यान करने आये थे.

कसारदेवी उन्नीस सौ साठ के दशक से पश्चिमी देशों के शोधार्थियों, कलाकारों, दार्शनिकों, गायकों और लेखकों के बीच आश्चर्यजनक रूप से लोकप्रिय होता चला गया है. आश्चर्य नहीं कि यहाँ बीटल्स के गायक भी आकर रहे, मशहूर लेखक डी. एच. लॉरेन्स भी और हिप्पी आन्दोलन के जनक माने जाने वाले टिमोथी लियरी भी. इस इलाके में लंबा समय बिताने वाले विख्यात लोगों की सूची बहुत लम्बी चौड़ी है.

कसारदेवी का मोहन्स – हौसला हो तो पहाड़ में रहकर क्या नहीं हो सकता

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