कुमाऊँ और गढ़वाल के पहाड़ों में प्रचलित जागर पूर्वजों की आत्माओं का आह्वान करने की पुरानी परम्परा है. आम तौर पर सुषुप्तावस्था में रहने वाले इन पूर्वज-लोकदेवताओं को संगीत और गायन के माध्यम से जगा कर उनसे परेशानियों का सबब पूछा जाता है और सहायता करने की याचना की जाती है. (Kalbisht Jagar Harda Surdas)
रमौल की जागर में जगाया जाता है इन सब का ध्यान
आमतौर पर जागर दो तरह की होती हैं. पहली श्रेणी की जागर में लोक देवताओं का आह्वान किया जाता है. इसे मोटे शब्दों में देव-जागर कहा जा सकता है. भूत-जागर नाम की दूसरी श्रेणी में किसी मृत व्यक्ति की आत्मा को जगाया जाता है जिसके बारे में माना जाता है कि उसने किसी जीवित व्यक्ति की देह पर कब्जा कर उसके और उसके सगे-सम्बन्धियों का जीवन परेशानी में डाला हुआ है. (Kalbisht Jagar Harda Surdas)
जागर: उत्तराखण्ड के ग्रामीण अंचलों में बहुप्रचलित पूजा पद्धति
सर्वमान्य तथ्य है कि पारम्परिक रूप से पहाड़ों का जनजीवन बहुत मुश्किल होता है. निर्धनता के अलावा सामान्य सुविधाओं से दूर होना और प्राकृतिक विपदाओं से जूझना पहाड़ के जन की सबसे बड़ी चिंताओं में रहा है. इसमें बहुत अधिक अचरज नहीं होता कि किसी भी संकट के सामने आने पर पहाड़ के ये लोग अपने लोक देवताओं की शरण में जाते हैं. गोल्ल, गंगनाथ, भोला, हरू और सैम जैसे महत्वपूर्ण लोक देवताओं के अलावा पूरे पहाड़ में सैकड़ों लोक देवताओं की उपस्थिति रही है और उनके मानने वालों की बड़ी संख्या है.
जागर को अन्तराष्ट्रीय मंच पर ले जाने वाले प्रीतम भरतवाण को पद्म श्री
पिछले कुछ वर्षों में आई चेतना के सन्दर्भ में जागर गायन एक बेहद जटिल कला-रूप के रूप में देश भर में स्वीकार किया गया है. इसे गाने के लिए गायक के भीतर गायन और संगीत की प्रतिभा के अलावा अपने परिवेश और इतिहास की गहरी समझ होना आवश्यक है. जागर के मुख्य गायक को जगरिया कहा जाता है जब कि उसकी सांगत करने वाले संगीतकारों को डंगरिया.
जागर गायन के भीतर पहाड़ की ऐतिहासिक परम्परा से लेकर हिन्दू परम्परा के देवताओं तक की कथाएँ समावेशित की जाती हैं.
हरदा सूरदास इस विधा के अंतिम बड़े गायक के रूप में प्रतिष्ठित थे. भीषण निर्धनता में रहे हरदा ने उसी निर्धनता में अपने प्राण त्यागे. आज उनके जाने के बाद हमारे पास उनके दुर्लभ गायन की चुनिन्दा रेकॉर्डिंग्स बची हैं जिनसे उनके गायन की विशाल रेंज का पता मिलता है.
आज आप के लिए प्रस्तुत है उनकी आवाज़ में कुमाऊँ के शीर्षतम लोकदेवताओं में से एक कल्याण सिंह बिष्ट यानी कलबिष्ट देवता की जागर.
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1 Comments
कृष्ण कुमार मिश्र
बहुत ही संवेदनशील आलेख, परम्पराओं की स्मृति रहे बस लोगों में, सार्थकता स्वयं यथार्थ में आ जाएगी।