यह गजब का संयोग रहा कि 18 सितम्बर को जन्मे काका हाथरसी की मृत्यु भी 18 सितम्बर को ही हुई. काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर 1906 को शिव कुमार गर्ग के घर में हाथरस में हुआ था लेकिन पिता की कम उम्र में मृत्यु हो जाने के कारण वह बचपन में ही अपनी माता के साथ, उनके मायके इगलास आ गये थे. हाथरस को वह किशोरावस्था में लौटे.
भारत के कवि सम्मेलनों के मंच पर जब क्रांति और प्रेम ही कविता का विषय था उस समय काका हाथरसी ने हास्य को कवि सम्मेलनों में स्थान दिलाया.
काका हाथरसी का वास्तविक नाम प्रभुलाल गर्ग था. अपनी किशोरावस्था के दौरान उन्होंने अग्रवाल समाज के एक कार्यक्रम में नाटक मंचन के दौरान काका का किरदार निभाया, वहीं से उनका नाम काका पड़ गया. बाद में अपने बेटे के कहने पर वह काका हाथरसी नाम से कविता करने लगे.
देश-विदेश में काका हाथरसी ने हाथरस को पहचान दिलाई. आज भी उनके जन्म दिवस के दिन हाथरस में बड़े आयोजन होते हैं. भारत सरकार ने 1985 में काका जी को पद्मश्री से सम्मानित भी किया था. 18 सितम्बर 1995 के दिन उनका देहावसान हो गया था. उनकी कविता पांच विचित्र चित्र का एक अंश पढ़िये :
सात सौ से अधिक पानेवाले क्लर्क पर,
तनुखा से पहले ही कट जाता है इनकम टैक्स.
दिल्ली का पकौड़ीवाला लाला
सौ रुपये डेली कमाता है,
न बही है, न खाता है
इंस्पेक्टर आता है,
एक प्लेट चाटकर, दूसरी घर ले जाता है.
ऐसा भाईचारा और कहीं है?
कौन कहता है देश में एकता नहीं है?
काका हाथरसी से जुड़े एक किस्से को अमर उजाला काव्य में उनके पौत्र अशोक गर्ग ने कुछ यूं सुनाया है :
काका हाथरसी प्रसिद्धि के शिखर पर थे और मुरैना में डाकुओं का बोलबाला था. मुरैना के एक कवि सम्मेलन में काका हाथरसी और बालकवि बैरागी सम्मिलित होने गए थे. कवि सम्मेलन के ख़त्म होने के बाद वहां कुछ डाकू आए और दोनों का अपहरण कर, आंख पर पट्टी बांध अपने अड्डे पर ले गए. वहां ले जाकर उन्होंने दोनों ही हास्य कवियों से कहा – आप हमारे साथियों को कविताएं सुनाइए.
उसके बाद काका हाथरसी और बालकवि बैरागी ने अपनी कविताएं वहां सुनाई. इसके बाद डाकुओं ने उन्हों 100 रुपए दिए और उन्होंने उसे लेने से मना कर दिया लेकिन डाकुओं के काफ़ी कहने के बाद वह रुपए उन्होंने ले लिए .
-काफल ट्री डेस्क
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