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काफल ट्री फाउंडेशन का अब तक का हासिल

­ Digitalization of Folk Stories of Uttarakhand

बुजुर्गों की थपकियों के रास्ते लोककथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी का सफ़र तय करती है. कोई नहीं जानता कि सबसे पहले किसने लोककथा कही. जब कोई कथा आमजन की हो जाती है तो वह लोककथा कहलाती है. लोककथा की कोई सीमा नहीं होती उसमें कभी भी कुछ भी कैसे भी हो सकता है. ‘काफल ट्री फाउंडेशन’ द्वारा उत्तराखंड के कोने-कोने में कही और सुनी जाने वाली लोककथाओं को संग्रहित किया गया. इस क्रम में 70 बरस से अधिक के बुजुर्गों से बातचीत की गयी और उनके शब्दों को लिपीबद्ध किया गया. इसके अतिरिक्त ई. शर्मन ओकले और तारादत्त गैरोला की 1935 में छपी किताब ‘हिमालयन फोकलोर’ से लोककथाओं का हिन्दी अनुवाद किया गया.

लोककथाओं को संग्रहित कर इन्हें www.kafaltree.com के माध्यम से प्रकाशित किया गया. वर्तमान में काफल ट्री फाउंडेशन द्वारा 80 से अधिक लोककथाओं का डिजिटलाईजेसन किया जा चुका है. वर्तमान में दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी समय देखा और पढ़ा जा सकता है. अब तक करीब 10 लाख से अधिक पाठक दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से इन लोककथाओं को पढ़ चुके हैं.  

लोककथाओं का यह संग्रह उत्तराखंड राज्य की विविधता दर्शाता है. पंडित गंगादत्त उप्रेती की किताब ‘प्रोवर्ब्स एंड फोकलोर इन कुमाऊं एंड गढ़वाल’ किताब पर आधारित लोककथाओं के माध्यम से बहुत से ऐसे मुहावरे और शब्द सामने आये जो कि प्रचलन से बाहर होने की कगार पर हैं. यह कुमाऊनी और गढ़वाली बोली को मजबूत करने की ओर एक कदम है.     

‘हिमालयन फोकलोर’ से अनुवादित लोककथाओं से इस राज्य में विषय की विवधता का ज्ञान होता है. इस हिस्से में उत्तराखंड क्षेत्र में मिलने वाले फल और पक्षियों के विषय में भी जानकारी प्राप्त होती है. इसके अतरिक्त मनोरंजन और नैतिक शिक्षा के लिये कही जाने वाली अनेक लोककथाएं इस किताब से अनूवादित की गयी है.

लोककथाओं के इस डिजिटलाईजेसन के दौरान एक बात जो सामने आई वह थी कि उत्तराखंड क्षेत्र में अनेक ऐसी लोककथाएँ हैं जिनका विषय मूलरूप से एक है लेकिन क्षेत्र के भूगोल या सामाजिक स्थिति के अनुरूप कही और सुनी जाती हैं. अनेक लोककथाओं में केवल स्थान और परिस्थिति बदलती जबकि मूल विषय समान रहता है.

लोककथाओं के इस डिजिटलाईजेसन का क्रम आने वाले वर्षों में भी जारी रहेगा. यह प्रयास रहेगा कि उत्तराखंड की सभी लोककथाओं और दुनिया के किसी भी कोने में रह रहे लोगों के बीच की दूरी महज एक क्लिक की रह जाये.         

Documentation of Lohaghat Holi

कुमाऊं के चम्पावत जिले में कस्बा है लोहाघाट. लोहाघाट काली कुमाऊं का हिस्सा है और काली कुमाऊं की खड़ीहोली अत्यंत लोकप्रिय है. पिछले दशकों में शराब के बढ़ते प्रचलन के चलते एक ऐसा दौर भी आया जब होली केवल हुड़दंग का पर्याय बनने की कगार पर था ऐसे में लोहाघाट के स्थानीय लोगों ने एक फ़ैसला लिया और अपनी लोकथात को बचाने के लिये 11 वर्ष पूर्व लोहाघाट बाज़ार में होली महोत्सव का आयोजन प्रारंभ किया. इस आयोजन में लोहाघाट के आस-पास के लोग आते और अपने अपने गांव के समूह के साथ होली गाते. जब बच्चे और बुजुर्ग शामिल होकर सीखते-सीखाते हुए खड़ीहोली गाते.   

काफल ट्री फाउंडेशन द्वारा इस कस्बे में आयोजित होने वाले इस अनोखे आयोजन का वीडियो डोक्युमेंटशन किया गया. लोहाघाट कस्बे के लोगों की इस पहल को दुनिया भर तक पहुंचाने के लिये इसे यूट्यूब में डाला गया. इस वीडियो डोक्युमेंटशन के द्वारा देश और दुनिया के लोगों ने लोहाघाट के लोगों को सराहा. अपनी लोकथात बचाने की इस अनूठी पहल को देशभर से खूब सराहना मिली.

इस वीडियो डोक्युमेंटशन में कुछ पुरानी होलियां भी रिकार्ड हो गयी और काली कुमाऊं में होने वाली  खड़ी होली के पद संचालन आदि का भी एक दस्तावेजीकरण हुआ. इस दस्तावेजीकरण में काली कुमाऊं के लगभग 4 अलग-अलग गावों में गाये जाने वाली खड़ी होली शामिल हैं.

वीडियो डोक्युमेंटशन में पुरुष खड़ी होली के अतिरिक्त महिला खड़ी होली भी रिकार्ड की गयी है. इस वीडियो डोक्युमेंटशन में दिखता है कि लोहाघाट क्षेत्र में कैसे एक पीढ़ी अपनी अगली पीढ़ी अपनी रवायतें सौंपती है. अपनी संस्कृति सरंक्षण के लिये लोहाघाट के लोगों द्वारा उठाया गया यह प्रयास आज पूरे राज्य के लोगों के सामने नजीर बनकर पेश हुआ है.

काफल ट्री फाउंडेशन का यह प्रयास रहेगा कि आने वाले वर्षों में भी वीडियो डोक्युमेंटशन को जारी रखा जा सके ताकि लोहाघाट के लोगों की इस अनूठी पहल को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाकर संदेश दिया जा सके कि संस्कृति संरक्षण हवा में नहीं जमीं पर होते हैं.     

Conference of Archive of Uttarakhand

काफल ट्री फाउंडेशन द्वारा हल्द्वानी शहर में उत्तराखंड एक कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया. इस कान्फ्रेंस का विषय आर्काइव ऑफ़ उत्तराखंड था. इस कान्फ्रेंस में हल्द्वानी और इसके आस-पास के बुद्धिजीवियों को बुलाया गया था. उत्तराखंड के इतिहास, भूगोल, संस्कृति आदि से जुड़े बहुत से दस्तावेज ऐसे हैं जो इधर-उधर बिखरे पड़े हैं. इस दस्तावेजों में पुरानी किताबें, मूर्तियां, ताम्रपत्र, अभिलेख, शोधपत्र आदि हैं.

यह बेहद जरूरी कि इन दस्तावेजों को एक स्थान पर रखा जाये और संरक्षित किया जाये. कान्फ्रेंस में शामिल वक्ताओं ने बताया कि कैसे अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिला मुख्यालयों में नये निर्माण कार्यों के दौरान पहले से मौजूद नौलों की अनदेखी की गयी जिसका परिणाम यह रहा की दोनों जिलों के मुख्यालय में मौजूद नौले वर्तमान में दयनीय स्थिति में हैं या पूरी तरह नष्ट हो गये.

वक्ताओं ने बताये कि पुराने मन्दिरों के पुनर्निर्माण के समय किस तरह मूर्तियों और मंदिर के मूल स्वरूप की अनदेखी की जाती है. कुमाऊं और गढ़वाल के अनेक मंदिर हैं जिनमें पत्त्थर की ऐसी मूर्तियां हैं जिनका निर्माण काल 8वीं 9वीं सदी का है. मूर्तियों के विषय में कुमाऊं और गढ़वाल दोनों जगह एक गंभीर अध्ययन की जरूरत महसूस की गयी. कान्फ्रेंस के अंत में इस बात पर सभी ने शमित व्यक्त की कि सीमित संसाधनों के चलते वर्तमान में उत्तराखंड से जुड़ी किताबों का एक डिजिटल आर्काइव तैयार किया जाये. इस आर्काइव में उत्तराखंड राज्य से जुड़ी सभी किताबें और यहां से जुड़े लेखकों की किताबों का एक संग्रह एक जगह इकट्ठा किया जाये. इसके अतिरिक्त पुरानी किताबों और लेखों का डिजिटलीकरण कर www.kafaltree.com में प्रकाशित किया जाये. इस प्रकाशन से न केवल पुराने दस्तावेजों तक सामान्यजन की पहुंच सुलभ होगी बल्कि भविष्य के लिये दस्तावेज सुरक्षित रहेंगे.            

15 दिन की थियेटर वर्कशॉप

‘काफल ट्री फाउंडेशन’ द्वारा हल्द्वानी में 12 दिसंबर 2022 से 15 दिन की थिएटर वर्कशॉप का आयोजन किया गया. यह थियेटर वर्कशॉप ‘द शक्ति ऑनसेम्बल’ की लक्षिका पाण्डे के साथ मिलकर किया गया. इस थिएटर वर्कशॉप को नाम दिया गया ‘संवाद’. इस वर्कशाप में शामिल कलाकारों को लक्षिका पांडे द्वारा प्रशिक्षण दिया गया. वर्कशॉप के आखिरी दिन कलाकारों ने 6 लघु नाटकों का मंचन किया गया.

हल्द्वानी शहर में एक एक सांस्कृतिक केंद्र स्थापना एवं संचालन

उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति के विषय में कार्य कर रहे काफल ट्री फाउंडेशन ने साल 2023 में ‘रमोलिया हाउस’ नाम से एक सांस्कृतिक केंद्र का संचालन प्रारंभ किया. ‘रमोलिया हाउस’ नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर के मुख्य बाज़ार के पास स्थित के सांस्कृतिक केंद्र है. सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना का उदेश्य न सिर्फ लोक कला और संस्कृति को बढ़ावा देना है बल्कि पहाड़ के कलाकारों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करना भी है. सांस्कृतिक केंद्र के तहत काफल ट्री कई तरह की सांस्कृतिक गतिविधियों का सञ्चालन करता है.

स्थानीय लोककला, संस्कृति, संगीत, हस्तशिल्प की प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन, उत्तराखण्ड के लोक साहित्य की किताबें, उत्तराखंड के लोक जीवन से जुड़ी वस्तुओं की प्रदर्शनी, स्थानीय लोक कलाकारों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन, थिएटर वर्कशॉप एवं फिल्म शो, लोकसंस्कृति, साहित्यिक परिचर्चाएं, गोष्ठियां सेमीनार आदि का आयोजन सांस्कृतिक केंद्र की गतिविधियों में शामिल हैं.

कलर्स ऑफ़ होप पेंटिंग एग्ज़िबिशन

काफल ट्री फाउंडेशन ने सांस्कृतिक केंद्र ‘रमोलिया हाउस’ की शुरुआत युवाओं के साथ करते हुए पहली गतिविधि को नाम दिया ‘कलर्स ऑफ़ होप’. 31 मार्च से 3 अप्रैल 2023 तक चली इस गतिविधि में एक पेंटिंग एग्ज़िबिशन लगाई गयी. इस पेंटिंग एग्ज़िबिशन में कुमाऊं 10 युवा कलाकारों की पेंटिंग का प्रदर्शन किया गया. इन कलाकारों का काम देखने शहर भर के लोग आये. युवा कलाकार जो अभी अपनी शिक्षा पूरी कर रहे थे उनके पास मौका था अपना काम दिखाने और लोगों के बीच अपना काम बेच सकने का. युवा कलाकारों को खूब सराहा गया और कुछ युवा कलाकारों से स्थानीय लोगों ने भविष्य में काम लेने की पेशकश भी की. कलाकारों ने हल्द्वानी शहर के विद्यालयों से आये छात्रों संग कला और उससे जुड़े अन्य पहलूओं पर अपने विचार साझा किये. सभी कलाकारों को जिला अधिकारी धीराज सिंह गर्ब्याल द्वारा हस्ताक्षरित सर्टिफिकेट दिये गये.         

एक माह की प्रोडक्शन ओरिएंटेड थिएटर वर्कशॉप

‘रमोलिया हाउस’ में एक माह की थिएटर वर्कशॉप का आयोजन किया गया. इस वर्कशाप में प्रतिभागियों को थिएटर के सभी गुर सिखाये गये. दिल्ली स्थित प्रज्ञा आर्ट्स थिएटर ग्रुप से आये वरिष्ठ थिएटर कलाकारों ने प्रतिभागियों को ट्रेनिंग दी. प्रतिभागियों को बॉडी मूवमेंट, रिदम, स्क्रिप्ट राइटिंग, लाइटिंग, बैक स्टेज, साउंड आदि की बारीकियां सिखाई गयी. यह वर्कशॉप वरिष्ठ रंगकर्मी लक्ष्मी रावत द्वारा डायरेक्ट की गयी. एक माह की ट्रेनिंग के बाद कलाकारों ने कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखित नाटक ‘हीर राँझा’ का मंचन किया. इस वर्कशॉप का उदेश्य नये कलाकरों को स्तरीय ट्रेनिंग दिलाने के अतिरिक्त हल्द्वानी शहर में रंगमंच संस्कृति को आगे बढ़ाना है. 30 दिनों की वर्कशॉप में इन कलाकारों को तराशने का काम किया गया. वर्कशॉप में प्रतिभागी की तरह शामिल होकर एक कलाकार के रूप में निकलने का एक नया सफ़र शुरू किया गया. ‘हीर राँझा’ के मंचन के बाद कई कलाकारों को स्थानीय स्कूलों में ट्रेनिंग हेतु भी आमंत्रित किया गया. वर्कशॉप में शामिल सभी प्रतिभागियों को मुख्य विकास अधिकारी संदीप तिवारी द्वारा हस्ताक्षरित सर्टिफिकेट दिये गये.

एकदिवसीय नाटक मंचन

‘रमोलिया हाउस’ में ‘बात-चीट’ नाटक का मंचन हुआ. हर्षवर्धन वर्मा द्वारा लिखित यह एक व्यंग्यप्रधान नाटक है. करीब एक घंटे के इस नाटक में समाज के अलग-अलग मुद्दों पर बात होती है. 11 जून को हुए इस नाटक का मंचन देखने हल्द्वानी और नैनीताल शहर से आये दर्शकों ने कलाकारों को खूब सराहा. ‘बात-चीट’ नाटक के मंचन हल्द्वानी शहर में एक नये प्रयास के रूप में देखा गया. नाटक के अनिश्चित फार्मेट को भी दर्शकों ने सराहा. हल्द्वानी से बाहर रह रहे रंगकर्मीयों ने संदेश भेजकर रमोलिया हाउस की इस पहल के सराहते हुए इसे हल्द्वानी शहर में एक नई शुरुआत बताया गया.      

21 दिवसीय थिएटर वर्कशॉप

  21 दिनों की यह थियेटर वर्कशॉप नये कलाकारों के लिए थी. इस वर्कशॉप में 12 वर्ष से अधिक की उम्र के प्रतिभागी शमिल हुए. रमोलिया हाउस में आयोजित इस वर्कशॉप का आयोजन स्थानीय संस्था डी से ड्रामा थियेटर एंड फिल्म सोसायटी के साथ मिलकर किया गया. यह वर्कशॉप चारू तिवारी द्वारा डायरेक्ट की गयी. वर्कशॉप का उदेश्य नये कलाकारों को थियेटर की बेसिक ट्रेनिंग देना और थियेटर के प्रति उनका रुझान उत्पन्न करना था. 21 दिन की इस वर्कशॉप के दौरान प्रतिभागियों से मिलने शहर के अधिकांश रंगकर्मी आये. अपना अनुभव साझा करने हेतु राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली से पढ़े कुछ कलाकार भी आये.

जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम

जनकवि गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की पुण्यतिथि पर गोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में हल्द्वानी शहर के संस्कृति प्रेमियों ने भाग लिया. इस कार्यक्रम में गिर्दा को याद किया गया और गिर्दा के गीतों पर चर्चा की गयी.

लक्षिका पांडे द्वारा थियेटर वर्कशॉप

रमोलिया हाउस में आयोजित इस वर्कशॉप का आयोजन सितम्बर माह में किया गया. इस वर्कशाप में शामिल कलाकारों को लक्षिका पांडे द्वारा प्रशिक्षण दिया गया. वर्कशॉप का विषय डिवाइसिंग रहा.  

कंग्डाली महोत्सव का डॉक्यूमेंटेसन

धारचूला की चौदांस पट्टी रहने वाले रं संस्कृति के लोग हर बारहवें वर्ष कंग्डाली का त्यौहार मनाते हैं. इस पर्व में चौदांस घाटी के लोग दूर-दूर से अपने गाँवों में आते हैं और एक नियत दिन पारम्परिक वेशभूषा वनों में जाकर सामूहिक रूप से अपशकुन और विनाश का प्रतीक माने जाने वाले कंग्डाली पौधों को नष्ट करते हैं. अक्टूबर महीने की 25, 26 और 27 तारीख़ को बारह बरस बाद कंग्डाली महोत्सव का आयोजन किया गया. काफल ट्री फाउंडेशन ने पूरे कंग्डाली को डोक्युमेंट किया.

एक महीने की थियेटर वर्कशॉप और दो नाटकों का मंचन

26 नवम्बर की शाम अमृता प्रीतम की कहानी ‘जंगली बूटी’ और हरिशंकर परसाई के व्यंग्य ‘मातादीन चांद पर’ का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया गया. अक्टूबर माह के अंत से शुरू इस वर्कशॉप में हल्द्वानी के 12 कलाकारों ने हिस्सा लिया. वर्कशॉप में शामिल सभी प्रतिभागियों को जिला अधिकारी वंदना सिंह और स्थानीय विधायक सुमित हृदेश द्वारा हस्ताक्षरित सर्टिफिकेट दिये गये.

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