इतने सीधे खड़े रहते हैं
कि अब गिरे कि तब
गिरते नहीं बर्फ़ गिरती है उन पर
अंधेरे मे ये बर्फ़ नहीं दिखती
पहाड़ अपने से ऊँचे लगते हैं
डराते हैं अपने पास बुलाते हैं
दिन में ऐसे दिखते हैं
कोई सफ़ेद दाढ़ी वाला बाबा
ध्यान में अचल बैठा है
कभी एक हाथी दिखता है
खड़ा हुआ रास्ता भूला हो जैसे
जोशीमठ में आकर अटक गया है
बर्फ़ के कपड़े पहने
सुंदरी दिखती है पहाड़ों की नोकों पर
सुध-बुध खोकर चित्त लेटी हुई
कहीं गिर गई अगर
लोग कहते हैं
दुनिया का अंत इस तरह होगा कि
नीति और माणा के पहाड़ चिपक जाएंगे
अलकनंदा गुम हो जाएगी बर्फ़ उड़ जाएगी
हड़बड़ा कर उठेगी सुंदरी
साधु का ध्यान टूट जाएगा
हाथी सहसा चल देगा अपने रास्ते
(Joshimath ke Pahad Poem)
शिवप्रसाद जोशी वरिष्ठ पत्रकार हैं और जाने-माने अन्तराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों बी.बी.सी और जर्मन रेडियो में लम्बे समय तक कार्य कर चुके हैं. वर्तमान में शिवप्रसाद देहरादून और जयपुर में रहते हैं. संपर्क: joshishiv9@gmail.com
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
इसे भी पढ़ें: क्या आपको भी अपने गाँव का घर बुलाता है?
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…