मेरी जानकारी में जसुली देवी सौक्याणी के सम्बन्ध में धारचूला सनपाल सिंह दताल एवं मेरी मां स्व. सुरमा देवी पत्नी स्व. ज्ञान सिंह बौनाल जिनका जन्म वीरागंना जसुली देवी के परिवार में हुआ था, उनके द्वारा यह जानकारी मिली थी कि जसुली देवी, दारमा के सबसे धनी और प्रसिद्ध परिवार से थी और उनके पति स्व. ठा. जम्बू सिंह दताल थे. उनका इकलौता पुत्र बछुवा, जो गुँगा था, बछुवा के जन्म होते ही ठा. जम्बू सिंह का कुछ वर्ष बाद देहान्त हो गया. ठा. जम्बू सिंह की मृत्यु के बाद इस सम्पन्न परिवार में केवल दानवीर जसूली देवी सौक्याणी एवं उनके पुत्र रह गये थे.
(Jasuli Shokyani of Kumaoni)
ठा. जम्बू सिंह पुत्र जसुवा सिंह दताल के क्रियाकर्म (शरात) का समय नजदीक आने के एक दिन पूर्व जसूली देवी सौक्याणी ने अपने नौकरों को बुलाकर आदेश दिया था कि दातू गाँव से न्योला नदी के किनारे तक निगाल की चटाई बिछायी जाये और करीब 350 मीटर की दूरी तक गाँव से न्योला नदी के तट पर चटाई बिछायी गयी. उन दिनों धनी एवं सम्पन्न परिवार के लोग मृत्यु के बाद गंगा-दान करना पुण्य समझते थे.
जब यह सब तैयारियां हो रही थी तब अंग्रेज शासन के कुछ अधिकारियों को दारमा भ्रमण दौरान यह विदित हुआ कि जसूली देवी सौक्याणी गंगा-दान करने की तैयारियां कर रही हैं. उसके लिए निगाल की चटाई (भौटा) दाँतू से न्योला तट तक बिछायी जा रही है. अंग्रेज अधिकारियों ने इसका कारण उनके नौकरों से पूछा नौकरों ने बताया कि हमारे सेठ, धनी ठा. जम्बू सिंह की मृत्यु हो जाने पर उनकी पत्नी को न्योला नदी (जो दुग्तू एवं दाँतू के बीच बहती है) में गंगादान करने जा रही थी, यह सुनकर अंग्रेज अधिकारियों ने जसुली देवी से सम्पर्क किया और आपस में विस्तार से विचार-विमर्श किया. विचार के दौरान अंग्रेज अधिकारियों ने गांव एवं जगह का नाम पूछा तो दुखित जसुली देवी ने गांव का नाम दारमा बताया. तभी से अंग्रेज अधिकारियों ने इस क्षेत्र का नाम परगना दारमा के रूप में जाना जो तदोपरान्त इस क्षेत्र का नाम परगना दारमा जाना जाता है.
अंग्रेज अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श के बाद जसूली देवी को कुछ सुझाव दिये ताकि इस अपार धन-दौलत का सही उपयोग आम जनता की भलाई में हो सके. उन्होंने सुझाव दिये ताकि धन-दौलत को गंगा-दान करने के बजाय निम्न धार्मिक कार्यों में खर्च किया जाय:
(Jasuli Shokyani of Kumaoni)
1. स्कूल भवन बनवाये
2. सड़क बनवाने
3. धर्मशाला का निर्माण करवाये
अंग्रेज-अधिकारियों द्वारा दिये गये सुझाव/प्रस्ताव को जसुली देवी सौक्याणी के समझ में आ गया था और निर्णय लिया गया कि समस्त धन, धर्मशाला बनवाने में खर्च किया जाय, तत्पश्चात उसी धन का उपयोग कर कुमाऊं नेपाल (डोटी, आवछाम) एवं तिब्बत के मुख्य स्थलों पर कुल 250 (दौ सौ पचास) लगभग धर्मशालाओं का निर्माण करवाया गया था. उसके बाद जो धनराशि बच गई थी वह धनराशि अल्मोड़ा बैंक में जमा करवा दिया था. यह धनराशि अभी भी बैंक में जमा है ऐसा गोवर्धन उप्रेती, एडवोकेट, मोहल्ला तल्ला, दन्या ने दिनांक 31.01.1977 को जब मैं स्व. शोबन सिंह दरियाल, अमन सिंह पुत्र कुशल सिंह गाल, धर्मशाला के सम्बन्ध अल्मोड़ा गये थे तब बताया था.
दानवीर जसूली देवी सौक्याणी ग्राम-दाँतू, मल्ला दारमा द्वारा निर्मित धर्मशाला, नारायण तेवाड़ी, देवाल, अल्मोड़ा के खतोनी संख्या 144 खेत 04 क्षेत्रफल 10 (दस) नाली 05 (पांच) मुठ्ठी अभी भी विद्यमान है. जिसकी लम्बाई खुमानी पेड़ साइड से सड़क जंगलात की ओर ऊपर 218 फीट तथा धर्मशाला भवन से वन-विभाग तक 215 फीट लम्बा-थोड़ा क्षेत्र है.
यह भी सत्य है कि दानवीर जसूली देवी सोक्याणी ने अपनी जिन्दगी के बाकी समय ठा. कुतिया दताल के साथ पति-पत्नी के रूप में जीवन यापन किया था. और ठा. कुतिया सिह दताल के इकलौता पुत्र सेन सिंह दताल को जसूली देवी सौक्याणी ने धर्मपुत्र/गोदनामा स्वीकार किया था. आज वीरांगना जसूली देवी का पौत्र सनपाल सिंह दताल के नाम से जाना जाता है. स्व० सनपाल सिंह जो मेरे सगे मामा थे उनके छ: बेटे हैं, जिनका नाम स्व. दान सिंह, स्व. धर्म सिंह श्री मोहन सिंह, भीम सिंह, स्व. रूप सिंह एवं फलसिंह दताल (रेलवे-बरेली) हैं.
(Jasuli Shokyani of Kumaoni)
–स्व. नैन सिंह बौनल
स्व. नैन सिंह बौनल का यह लेख अमटीकर- 2012 से साभार लिया गया है.
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