राज्य सरकार ने कुमाऊँ की आर्थिक राजधानी हल्द्वानी में आइएसबीटी बनाने के लिए नई जगह पर मुहर लगा दी है, लेकिन अभी भी राह बहुत आसान नहीं है. ऐसा इसलिए कि कांग्रेस सरकार के समय गौलापार में चयनित जगह को निरस्त करने का मामला अभी न्यायालय में है. इसके अलावा वन भूमि हस्तांरण समेत कई अन्य छोटे-बड़े मामले हैं. अगर सरकार इसी रफ़्तार में चलती रही, तो जल्द ही लोगों को आइएसबीटी की सौगात मिल पाएगी, ऐसा संभव नहीं दिखता.
परिवहन मंत्री यशपाल आर्य की अध्यक्षता में 13 अगस्त को एक बार फिर देहरादून में संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक हुई. बैठक में तीन पानी स्थित उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के निकट वन भूमि की जगह फाइनल कर दी गई. इसके लिए 10 हेक्टेयर वन भूमि ली जाएगी. मंत्री ने इस भूमि को परिवहन विभाग को हस्तांतरित करने के लिए प्रक्रिया तेज करने के भी निर्देश दे दिए हैं. इस बैठक में परिवहन सचिव शैलेश बगौली, अपर सचिव एचसी सेमवाल, अपर आयुक्त सुनीता सिंह, एडीएम नैनीताल हरबीर सिंह, आरटीओ दिनेश पठोई, एआरटीओ अरविंद पांडे उपस्थित रहे. अब देखना होगा कि मंत्री के निर्देश पर कितने समय में भूमि हस्तांतरण करने की जटिल प्रक्रिया पूरी होती है। इसलिए कि जिस गौलापार की भूमि में आइएसबीटी बनना तय हुआ था, उस भूमि को हस्तांतरण करने में दो साल से अधिक का वक्त लगा था. एक और बात तीनपानी में बन रहे आइएसबीटी में कितना खर्चा आएगा। फिलहाल राज्य सरकार ने डीपीआर तक तय नहीं की है। सबसे बड़ी बात यह है कि तीनपानी में निर्धारित जगह कौन सी है. अभी यह भी पता नहीं है.
स्थानीय स्तर के अधिकारियों ने तीनपानी में आइएसबीटी बनाने पर सड़क निर्माण के लिए प्रस्तावित 22 करोड़ 65 लाख रुपये का बजट शासन को भेजा था. इसे भेजे हुए दो महीने से अधिक का वक्त गुजर गया है. लेकिन इस अभी तक कोई हलचल नहीं है. इस बजट में बिजली के खंभे हटाने, नहर कवर करने और पेयजल लाइन शिफ्ट करना भी था.
गौलापार से आइएसबीटी हटाने के मामले को हाई कोर्ट में ले जाने वाले आरटीआइ कार्यकर्ता रविशंकर जोशी कहते हैं, इस मामले की सुनवाई अभी उच्च न्यायालय में चल रही है. सरकार को कोर्ट में जवाब देना है कि आखिर उसने गौलापार से महत्वाकांक्षी परियोजना को क्यों हटाया. जबकि काम भी शुरू हो गया था. करीब तीन करोड़ रुपये भी खर्च हो चुके थे. सुनवाई के समय कोर्ट में इस मामले में आपत्ति दर्ज की जाएगी. रविशंकर जोशी बताते हैं, गौलापार में आइएसबीटी बनाने के लिए 2625 पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं. हल्द्वानी की खूबसूरती और पर्यावरण की बलि देकर विकास का सपना दिखाया गया. अब एक बार फिर तीनपानी में तमाम पेड़ काटे जाएंगे। इसकी भरपाई कैसे होगी, इसे बताने वाला कोई नहीं है.
जबकि, गौलापार की आठ हेक्येटर भूमि में 75 करोड़ रुपये की लागत से आइएसबीटी का निर्माण होना था. इसके लिए अक्टूबर 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नींव रख दी थी. यहां तक कि काम आरंभ करने का आर्डर भी जारी कर दिया गया था। इसके बाद अगस्त 2017 में नरकंकाल का मामला सामने आने पर भाजपा सरकार ने इस भूमि पर आइएसबीटी के प्रोजेक्ट को ही निरस्त कर दिया. जनवरी 2018 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कह दिया कि आइएसबीटी हल्द्वानी में ही बनेगा. फरवरी में परिवहन सचिव डी सेंथिल पांडियन ने शहर के तीन स्थानों का निरिक्षण किया था. इसके लिए स्थानीय स्तर के अधिकारियों की एक कमेटी भी तय कर दी थी. मार्च 2018 में कमेटी ने शासन को रिपोर्ट भेजी. इसके बाद परिवहन मंत्री की अध्यक्षता में एक और बैठक हुई थी, लेकिन उसमें किसी तरह का निर्णय नहीं हो सका था.
आइएसबीटी बनाने के लिए हल्द्वानी में राजनीति भी कम नहीं हुई. नेता प्रतिपक्ष डाॅ इंदिरा हृदयेश इसे अपना ड्रीम प्रोजेक्ट मानती आई है. जैसे ही त्रिवेंद्र सरकार ने कैबिनेट में प्रस्ताव लाकर गौलापार से बिना कारण बताए आइएसबीटी के निर्माण पर रोक लगा दी और इस जगह को ही निरस्त कर दिया था. इसके बाद नेता प्रतिपक्ष आग बबूला हो गई. धरना दिया गया. यहां तक कि 30 जनवरी को तमाम समर्थको के साथ गौलापार में ही उपवास पर भी बैठ गई. मामला गैरसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र में भी उठा. मुख्यमंत्री ने जल्द ही जगह तय करने और हाईटेक आइएसबीटी बनाने के आश्वासन के बाद मामला शांत हो गया. इससे पहले ही स्थानीय भाजपा नेताओं ने भी राजनीतिक चमकानी शुरू कर दी. विधिवत रूप से कहीं भी जगह तय होने के बावजूद उन्होंने तीनपानी के निकट टेंट लगाया और सभा की. एक-दूसरे को मिठाई खिला दी थी. हालांकि, इस राजनीति गतिविधि के आठ माह पूरा हो पर नेता प्रतिपक्ष के तेवर फिर उग्र होने लगे थे.
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