6 सितंबर 2007, एक तारीख जो कैलेंडर में सिर्फ एक दिन थी, पर हमारे जीवन में वह एक अध्याय बन गई. 6 सितंबर 2007 का वो दिन था जब पांच जिज्ञासु यात्रियों का एक दल ऊं पर्वत, आदि कैलाश, सिनला दर्रा और दारमा घाटी की यात्रा पर निकला. बरसात के बाद की टूटी सड़कों और अनिश्चित मौसम में यह कोई साधारण ट्रेकिंग नहीं थी, यह साहस, आत्मनिष्ठा और संस्कृति को छूने की एक आंतरिक यात्रा थी. धारचूला से आगे सबकुछ पैदल ही था, घटियाबगड़ से लेकर गर्ब्यांग, नपलच्यू, गुंजी, कालापानी और फिर नाबी, कुट्टी होते हुए सिनला दर्रे को पार कर दारमा की गोद में प्रवेश. रास्ते में छियालेख की ऊंचाइयों से लेकर नागलिंग गांव के बड़े भाई करन नागन्याल के किस्सों तक, हर मोड़ एक कहानी थी. उन्ही की प्रेरणा से हम इन घाटियों की खूबसूरती से रूबरू हुए.
(IPS Vimla Gunjiyal Gunji Village)
कुट्टी गांव की तत्कालीन ग्राम प्रधान रसमा दीदी जब ‘गालथांग’ और ‘गंधारी दर्रा’ की लोककथाएं सुनाती थीं, तो लगता था जैसे इतिहास, भूगोल और मिथक एक ही नदी में बह रहे हों. इन घाटियों के सैकड़ों साल पुराने व्यापार मार्ग, लम्पिया, मकस्यंग, पम्पा, यरपा की मंडियां, और निरकुच में बसे बाजार—1962 के बाद जैसे समय ने खुद ही विराम लगा दिया हो. फिर भी गांववाले अपने इतिहास, अपनी जमीन और अपनी अस्मिता से आज भी जुड़े हैं.
इधर, गर्ब्यांग गांव की गंगोत्री गर्ब्याल ने तो अपनी पूरी जिंदगी शिक्षा के क्षेत्र में ही लगा दी. गंगोत्री दीदी की विशिष्ट सेवाओं के चलते उन्हें 1964 राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
गुंजी गांव के छप्पर वाली दुकान की दुकानस्वामिन अर्चना गुंज्याल के वही अपना पढ़ाव डाला जहां पहली यात्रा में प्रवास हुआ था, अब इस गांव में एक नई कहानी आकार ले रही है. तीस साल तक खाकी वर्दी में उत्तराखंड पुलिस की सेवा करने वाली आईजी विमला गुंज्याल ने जब रिटायरमेंट के बाद अपने गांव की मिट्टी को फिर से छुआ, तो उनके जीवन का एक नया अध्याय शुरू हो गया है. गांव, जो कभी उनका बचपन था, अब जिम्मेदारी बन चुका है. वो गुंजी, जहाँ संचार के नाम पर इंतज़ार, बिजली के नाम पर उम्मीद और रोज़गार के नाम पर पलायन है, उस गांव में एक आशा लौट आई है. विमला गुंज्याल जब गांव लौटीं, तो सिर्फ एक अधिकारी नहीं लौटी हैं, वो लौटी हैं अपनी मिट्टी की बेटी बनकर.
(IPS Vimla Gunjiyal Gunji Village)
ये सुखद है कि, दारमा, चौंदास, ब्यास घाटियों के वासिंदे अपनी मेहनत से उंचा मुकाम हासिल करने के बाद भी अपनी जड़ों को नहीं भूले हैं. वैसे सेवानिवृत्ति का अर्थ अक्सर विश्राम होता है, पुरानी फाइलों को अलविदा कहना, सुबह की सैर और दोपहर की चाय. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनकी सेवा भावना कभी सेवानिवृत्त नहीं होती. उनकी असली यात्रा तब शुरू होती है जब वे पद से नहीं, कर्तव्य से बंधे होते हैं.
विमला दीदी ने जब अपने बचपन के गांव को फिर से देखा, तो आंखों में पानी और मन में संकल्प एक साथ जागा. अभी ग्राम प्रधान चुनाव आया. गुंजी गांव में पहली बार ऐसा हुआ कि कोई भी नामांकन पत्र विमला गुंज्याल के खिलाफ दाखिल नहीं हुआ. ये केवल एक चुनाव नहीं था, यह गांव की सामूहिक स्वीकृति थी. विश्वास था कि अब गांव को सही दिशा मिलेगी. विमला गुंज्याल निर्विरोध ग्राम प्रधान चुनी गईं हैं.
देखा जाए तो बिमला गुंज्याल अब केवल एक पूर्व अधिकारी नहीं हैं. वे गांव की माँ, बहन, मार्गदर्शक और संरक्षक बन चुकी हैं. उनकी कहानी बताती है कि असली नेतृत्व कुर्सी से नहीं, सेवा से पैदा होता है. और सेवा कभी रिटायर नहीं होती.
(IPS Vimla Gunjiyal Gunji Village)
बिमला दीदी की वापसी एक ऐसी यात्रा है जो ऊंचे पदों से नहीं, गहरे रिश्तों से जुड़ी है. यह कहानी है उन जड़ों की, जिनसे अलग होकर भी कुछ लोग कभी सचमुच अलग नहीं होते. जो जहां भी जाते हैं, अपनी मिट्टी की खुशबू साथ ले जाते हैं. और जब वो लौटते हैं, तो केवल व्यक्ति नहीं लौटते, उम्मीदें लौटती हैं, दिशा लौटती है, और सबसे बड़ी बात, एक गांव का आत्मविश्वास लौट आता है.
ब्यास घाटी समेत चौंदास, दारमा घाटी के तमाम गांवों का हाल ये है, जहाँ संचार का नाम इंतज़ार है, बिजली एक उम्मीद है, और रोज़गार एक कहानी बनकर बाहर चला गया है. बिमला दीदी की तरह ही अब इन घाटियों में बसे दर्जनों गांवों के वाशिंदों से ये उम्मीद है कि, जब वो लौटेगें तो केवल व्यक्ति नहीं लौटेगें, वो अपने साथ भूली हुई आवाज़ें, दबे हुए सपने और गांव की उजली सुबहें भी अपने साथ में वापस लाएंगे.
(IPS Vimla Gunjiyal Gunji Village)

बागेश्वर में रहने वाले केशव भट्ट पहाड़ सामयिक समस्याओं को लेकर अपने सचेत लेखन के लिए ख़ास जगह बना चुके हैं. ट्रेकिंग और यात्राओं के शौक़ीन केशव की अनेक रचनाएं स्थानीय व राष्ट्रीय समाचारपत्रों-पत्रिकाओं में छपती रही हैं.
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