एक बार फिर शादी का सीजन आ गया है और उसकी परेशानियाँ एकबार फिर बढ़ गयी हैं. पिछले 5 सालों में उसने अपने व्यावसायिक जीवन में वो कर दिखाया था जो करने में लोगों को 10 बरस लग जाते हैं. लेकिन कुछ मायने नहीं रखता क्योंकि वह 27 बरस की हो गयी है लेकिन उसकी शादी नहीं हुई है.
शादी का हर सीजन उसे घुटन देता. शादी भले कोसों दूर कहीं उसके गाँव में हो या उसके पड़ोस में अंतिम सवाल उससे होता है? सवाल पूछने वालों की पहली कतार मे उसके अपने होते हैं. एक जिंदादिल और खुशमिजाज लड़की को इन सवालों ने चिढ़-चिढ़ा और बीमार बना दिया है.
हफ्ते में पांच दिन काम के बोझ के बावजूद हफ्ते में मिलने वाली दो छुट्टीयों पर किसी अनजान से मिलने जाना अब एक वीक-एंड रूटीन सा हो गया था. कभी इस कॉफ़ी शॉप कभी उस कॉफ़ी शॉप. पर कभी बात न बनी. किसी को उसकी बेबाकी पसंद नहीं आयी, किसी को उसका स्टेटस सूट नहीं किया तो किसी को वो घरेलू न लगी. अपने बोल्ड अंदाज से कालेज में वो पहले ही बदनाम है अब बोल्ड करियर के कारण समाज में भी बदनाम हो चली है.
शादी उसकी जिंदगी मे कितना मायने रखती है शायद ही वह जानती है पर वह यह जानती है कि बचपन से पालने वाले उसके माँ-बाप का कर्ज वो तभी अदा कर पायेगी जब किसी और के घर की बहु बन जायेगी. (महत्त्वपूर्ण है महिलाओं के प्रति समाज के नजरिए में बदलाव)
जब कभी वो पलट कर देखती तो खुद में ही पागल हो जाती. कैसे बचपन में घर-घर में उसकी पूजा करी जाती फिर अचानक किसी कारण से अगले ही साल उसे अशुद्ध मान लिया जाता. न जाने एक बरस के अंतर से कैसे मन्दिर में पूजे जाने वाली लड़की का महिने के पांच दिनों में मन्दिर में प्रवेश निषेध हो जाता था.
उम्र बढ़ने के साथ जैसे कोई बेडियां कसता जाता हो. घुटन का एहसास उसे था लेकिन वो लड़ी और खूब लड़ी. हर उस इन्सान से लड़ी जिसने उसे कमजोर समझा. जिंदगी के हर मोड़ पर विरोधियों को मुँहतोड़ जवाब दिया. पर अब कैसे लड़े? क्योकि अब लड़ाई अपनों से है अब लड़ाई अपने से है. (वो स्त्रियोचित हो जाना नहीं था)
आज ये कहानी हर उस लड़की की है जिसके पंखों को तो बखूबी बढ़ाया जाता है पर जब वो उड़ान भरती है तो डोर कस दी जाती है. लड़कियों के लिये एक आसमान बनाया गया है जिसका एक दायरा है. दायरे के भीतर उड़ान भरने वाली एक अच्छी बेटी, एक अच्छी बहन,एक अच्छी पत्नी, एक अच्छी बहु और न जाने किन-किन नामों से जानी जाती है.
दायरे के बाहर उड़ान भरने वाली के लिये बदचलन के अलावा और भी ढेरों गलियाँ भरी पड़ी हैं. सताईसवा साल भी एक दायरा है. इसे पार करने वाली लड़कियों पर फिर कहानियां बनती हैं. पटकथा का आधार शादी न होना होता है लेकिन विस्तार कथावाचक के मूड पर है.
– गिरीश लोहनी
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1 Comments
Shubhangi
Very well articulated Sir.
As Simone de Beauvoir has also put ‘…her wings are cut and then she is blamed for not knowing how to fly.’