कुछ लोगों का मानना है कि पिछले कुछ समय से पहाड़ के सरकारी स्कूलों में गढ़वाली और कुमाऊनी बोली सिखाने का ढकोसला चलाया जा रहा है. सोशियल मीडिया में लोग ऐसे लोगों की जमकर तारीफ़ भी करते हैं जो सरकारी स्कूल के बच्चों को उनकी बोली बोलना सिखाने वाले वीडियो बनाते हैं. वाहवाही लूटने के इस जमाने में यहां एक महत्वपूर्ण सवाल यह छूट जाता है कि क्या पहाड़ के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले किसी बच्चे को उसकी बोली सिखाने की आवश्यकता है? या यह कहा जाये कि अलग करने या दिखाने की यह कोशिश मात्र एक ढकोसला है.
(International Mother Language Day 2022)
पहाड़ के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे को सबसे पहले उसके गांव का प्राथमिक स्कूल सिखाता है कि उसकी बोली गंवारों और पिछड़ों की बोली है. स्कूल ही है जो उसे बताता है कि बड़ा आदमी बनने के लिये महत्वपूर्ण भाषा हिन्दी और अंग्रेजी है. आज सरकारी स्कूल का पाठ्यक्रम अपनी दुधबोली के लिये बच्चों के मन में हिकारत के सिवा कुछ नहीं भरते.
पहाड़ के प्राथमिक स्कूल में पांचवी तक पढ़ा बच्चा जब अपने नजदीकी कस्बे में आगे की पढ़ाई के लिये जाता है तो उसका आत्मविश्वास कम करने में सबसे पहले सामने आती है उसकी अपनी बोली. हिन्दी बोलने में आने वाली गांव की ख़ास लटेक के कारण स्कूल में उसका मजाक बनता है. हिन्दी के बीच में अपनी बोली का शब्द आने से उड़ने वाली हंसी कितनी करकस होती है यह केवल गांव में पढ़े बच्चे ही बता सकते हैं.
(International Mother Language Day 2022)
जिन लोगों के बच्चे बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों में पढ़कर फ़र्राटेदार अंग्रेजी में बात करना सीख रहे हैं वह चाहते हैं कि हमारे पहाड़ के सरकारी स्कूलों में कुमाऊनी और गढ़वाली पाठ्यक्रम की तरह पढ़ाई जाये. उनके अपने घरों में उन्हें न आमा के ग्रैनी होने से दिक्कत है न बूबू के दादा होने से. अपनी दुधबोली की सारी मिठास वह गांव के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के बस्तों में चाहते हैं.
अगर मातृभाषा के प्रति समाज और लोगों का इतना अधिक झुकाव या लगाव है तो क्या पहाड़ी कस्बों में कुकुरमुत्तों की तरह उगे किसी निजी स्कूल ने अपने विज्ञापन में कभी कहा कि उनके स्कूल में गढ़वाली और कुमाऊनी सिखाई जाती है. फिर पहाड़ के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के बस्तों में यह गढ़वाली और कुमाऊनी का पाठ्यक्रम क्यों? क्या गढ़वाली और कुमाऊनी सीखने की अधिक आवश्यकता निजी स्कूलों के बच्चों को नहीं?
(International Mother Language Day 2022)
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