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रानी रामपाल के ‘सुंदर घर’ की यह प्रेरक कहानी

महिला हॉकी टीम ग्रेट ब्रिटेन से हार गई. 3-4 के मामूली अंतर से. हारने के बाद भारतीय टीम की लड़कियां रो पड़ीं. उन्होंने अपना सबकुछ दांव पर लगा रखा था. वे ओलिंपिक में पदक के महत्व को अच्छी तरह जानती हैं. वे जानती हैं कि ओलिंपिक खत्म हो जाने के बाद जब भीड़ छंट जाएगी, लोग कपड़े झाड़ते हुए देशभक्ति को विस्मृति के खूंटे पर टांग अपने-अपने कामों में मशगूल हो जाएंगे, तो उन्हें एक बार फिर गुमनामी के अंधेरों को गले लगाना होगा. उसके बाद कभी भूले-भटके ही कोई उनकी खबर लेगा. इसीलिए इतने करीब से मेडल खोने के बाद रुलाई आ जाना स्वाभाविक था. उन लड़कियों के साथ हर वह आदमी भी रोया, जिसे इस बात का अंदाजा था कि उन्होंने पदक खोकर क्या खोया. पदक लेकर आतीं, तो अब तक न जाने कितनी राज्य सरकारें उनके लिए नकद पुरस्कारों की घोषणाएं कर चुकी होतीं. तब प्रधानमंत्री भी सिर्फ फोन पर सांत्वना देने की बजाय, उन्हें अपने पसीने से देश की करोड़ों लड़कियों को प्रेरित करने के ऐवज में हमेशा के लिए उनका जीवन संवार देने वाला नकद इनाम देते.
(Inspirational story of Rani Rampal)

मगर अभी थोड़ी देर के लिए हम पैसों को भूल जाते हैं, क्योंकि मामला भावनाओं का है. प्रधानमंत्री से बात करते हुए लड़कियां रोना रोक नहीं पा रही थीं. लेकिन मैं प्रधानमंत्री के टीम से बात करने वाला विडियो देखते हुए टीम की कप्तान रानी रामपाल को बहुत गौर से देख रहा था. हारने के बावजूद उसके चेहरे पर एक दृढ़ सौम्यता दिख रही थी. वह मायूस जरूर थी. क्योंकि उसी ने टीम में खुद पर भरोसा करने का जज्बा भरने का काम किया था.

अपनी टीम की लड़कियों को प्रेरित करने के लिए उसे कभी अलग से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी. उसकी जीवन यात्रा से हर लड़की वाकिफ थी और प्रेरणा के लिए यही बहुत था. रानी के पिता मजदूर थे. हरियाणा में कुरुक्षेत्र में एक छोटे से कस्बे शाहाबाद में रानी के परिवार की हालत कितनी खराब थी, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि बारिश के दिनों में उसके घर की छत टपकती थी और घर में पानी भर जाता था.

रानी ने इस बेबसी के आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया. उसने अपने मन में एक ‘सुंदर घर’ का ख्वाब देखा, जिसकी छत टपकती न हो. ऐसा सुंदर कि उसकी ओर नजर उठे, तो उसी पर चिपकी रह जाए. पर ऐसा घर बनाने के लिए पैसा चाहिए था और पैसा उसके पास था नहीं. पैसा नहीं था, पर उसे हॉकी खेलनी थी. खेल का संघर्ष जो था, सो था, उसे मां-बाप और समाज से भी लड़ना था. वह छोटी-सी लड़की जानती थी कि यह लड़ाई बहुत लंबी होनी है. पर उसे अपनी काबिलियत पर भरोसा था.
(Inspirational story of Rani Rampal)

रानी हॉकी खेलने के शुरुआती दिनों का एक किस्सा जरूर सुनाती है. तब उसने शाहाबाद हॉकी अकादमी से खेलना शुरू ही किया था. उस पर कोच सरदार बलदेव सिंह की बहुत मेहरबानी थी. एक बार एक मैच में उसने एक मुश्किल गोल किया, तो कोच उससे बोला – तुम देश का भविष्य हो और खुश होकर उसने उसे एक दस का नोट दिया. रानी उस नोट को अपने कोच से मिली एक अमानत के रूप बचाकर रखना चाहती थी, पर घर के खर्चों का ऐसा दबाव था कि उसे वह नोट भी खर्च कर देना पड़ा. लेकिन अगर आप आज शाहाबाद जाएंगे, तो वहां आपको अब रानी का सुंदर घर देखने को मिलेगा. वैसा ही सुंदर घर, जिसके छोटी लड़की के रूप में उसने सपने देखे थे. जब आप उस घर की छत पर ओलिंपिक के प्रतीक चिह्न के रूप में पांच रिंग बने हुए देखेंगे, तो आप यकीन करेंगे कि सचमुच यह सब कुछ एक सपने जैसा ही है. क्योंकि यह रानी के ही गोल के दम पर था कि 2019 में भारतीय महिला हॉकी टीम ने अमेरिका को 6-5 के अंतर से हराकर टोक्यो ओलिंपिक के लिए क्वॉलिफाई किया था और उसी ओलिंपिक में टीम पदक पाने के इतने करीब पहुंच गई थी.

पदक आता, तो रानी के घर की छत पर लगे ये ओलिंपिक के पांच रिंग भी एक अलग कहानी कहते. पर ये रिंग रानी के संघर्ष और खुद पर भरोसे की कहानी तो कह ही रहे हैं. रानी ने साबित किया है कि पूरी शिद्दत से किसी चीज को चाहो, तो पूरी कायनात उससे मिलाने की कोशिश में लग जाती है. हम और हमारा ये देश भारत भी इस कायनात का हिस्सा हैं. हमें अपने देश की करोड़ों रानियों के सपने पूरे करने हैं.
(Inspirational story of Rani Rampal)

-सुंदर चंद ठाकुर

इसे भी पढ़ें: कुछ भी हमें परेशान क्यों करे

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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

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