एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय राज्य उत्तराखंड में तिब्बत सीमा से सटे करीब छह गांवों में लोग चीन का राशन, रिफाइंड, सब्जियां-मसाले और नमक खा रहे हैं. ये वस्तुएं चीन के जरिये नेपाल के छांगरु तिंकर के रास्ते भारत पहुंच रही हैं. नजंग के आगे रास्ता बंद होने की वजह से सीमांत के इन गांवों में भारत से जरूरी सामान नहीं पहुंच पा रहा है. यही वजह है कि इन गांवों के लोग नेपाल जाकर अपनी जरूरत का सामान ला रहे हैं.
वहीं सरकार का इस मसलें पर खबर तक नहीं है .सरकार का दावा कुछ और ही है. मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि चीन बार्डर पर जादूंग गांव (उत्तरकाशी) पर्यटन का हब बनेगा. इस गांव को पर्यटन विभाग अपने अधिकार क्षेत्र में लेगा. नेलांग घाटी के बाद इस गांव तक पर्यटकों की आवाजाही कराने के प्रयास किए जाएंगे.एक तरफ़ चीन भारत में अपनी दस्तक दे रहा है और सरकार कुछ और ही कहानी बयां कर रही है.
रौंककौंग, गर्ब्यांग, गुंजी, नपल्चू, नाभि, कुटी आदि गांव तिब्बत सीमा से सटे हुए हैं. इन गांवों में 350-400 परिवार रहते हैं. कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग के इन गांवों में धारचूला से खाने-पीने की वस्तुओं की आपूर्ति होती है. लेकिन अभी धारचूला से गुंजी तक निर्माणाधीन सड़क के लिए पहाड़ काटे जा रहे हैं जिस कारणों से अभी आपूर्ति नही हो पा रही है. पूर्व में धारचूला से 100-105 किमी दूरी पर बसे इन गांवों में घोड़े, खच्चर से माल पहुंचाया जाता था. ऐसे में ये ग्रामीण सीतापुल से नेपाल के छांगरु तिंकर पहुंच कर वहां से चीन का रिफाइंड, चावल, सब्जियां, मसाला आदि ला रहे हैं.
स्थानीय लोगों का कहना है कि चीन बेहद कूटनीतिक ढंग से भारत में घुसपैठ कर रहा है. चीन अपनी वस्तुओं को नेपाल पहुंचा रहा है फिर नेपाल से ये वस्तुएं भारत में पहुंच रहीं हैं. केंद्र और प्रदेश सरकार भारत के आखिरी गांव में खाद्य सामग्री उपलब्ध नहीं करा पा रही हैं. लोग नेपाल के माध्यम से चीन से आने वाला चावल, तेल, मसाले खाने को मजबूर हैं.
अधिकारियों का दावा है कि गुंजी के लिए रास्ता बंद होने की वजह से राशन नहीं पहुंच पाया था. ऊपर के गांवों में हेलीकॉप्टर से राशन पहुंचाया गया है. पीडीएस सिस्टम से भी हर गांव में चावल आदि पहुंचा दिया गया है.सभी लोगों को तत्काल राशन क वितरण जाएगा.
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