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इन दिनों देशभर भारत और इण्डिया नाम पर ख़ासी बहस चल रही है. भारतीय संविधान का पहला अनुच्छेद कहता है – इण्डिया जो कि भारत है राज्यों का संघ है. भारतीय संविधान सभा में भी इस विषय को लेकर काफ़ी बहस हुई थी. 18 सितम्बर 1949 को हुई इस बहस में के पहाड़ी ने भी भाग लिया और इण्डिया शब्द का विरोध किया और कहा कि यह नाम हमें उन विदेशियों द्वारा दिया गया था जो इस भूमि की समृद्धि के बारे में सुनकर हमारे देश की संपत्ति को लूटने यहां आये और हमसे हमारी आज़ादी छीन ली.
(India Bharat Debate Uttarakhand Leader)
संविधान सभा में इण्डिया शब्द का पुरजोर विरोध करने वाले पहाड़ी और कोई नहीं स्वतंत्रता सेनानी हरगोविंद पन्त थे. जब संविधान सभा में इस विषय पर बहस हो रही थी तो हरगोविंद पन्त आखिरी व्यक्ति थे जिन्होंने इस पर अपनी बात रखी. इस विषय पर स्वतंत्रता सेनानी हरगोविंद पन्त का संविधान सभा में दिया गया भाषण कुछ इस तरह है –
अध्यक्ष महोदय, मैंने एक अन्य बैठक में देश का नाम इण्डिया के स्थान पर भारत और भारतवर्ष करने संबंधित संशोधन प्रस्ताव रखा था. मुझे ख़ुशी है कि नाम संबंधित कुछ सुझाव आखिरकार माने गये हैं. मेरी समझ से परे है कि सदन द्वारा भारतवर्ष को स्वीकार क्यों नहीं किया गया जबकि इस शब्द के महत्त्व और प्रतिष्ठा सभी के द्वारा स्वीकार की गयी है. मैं अन्य सदस्यों द्वारा इस शब्द की महिमा पर पहले से ही कही गयी बातों को दोहराना नहीं चाहता पर मैं इस शब्द से जुड़े कुछ विचार रखना चाहता हूँ.
(India Bharat Debate Uttarakhand Leader)
भारत और भारतवर्ष हमारे द्वारा हर दिन धार्मिंक कर्म में संकल्प लिये जाने के दौरान इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है. यहां तक कि नहाते समय हम संस्कृत में कहते हैं – जम्बू द्वीपे, भारत वर्षे, भारत खंडे, आर्यावर्ते आदि…
अपने भाषण के अंतिम हिस्से में स्वतंत्रता सेनानी हरगोविंद पन्त कहते हैं – जहां तक इण्डिया शब्द का सवाल है मुझे वास्तव में समझ नहीं आता है इस शब्द के सदस्यों का कोई लगाव क्यों है. हमें यह जानना चाहिये कि यह नाम विदेशियों द्वारा दिया गया था जो इस भूमि की समृद्धि के बारे में सुनकर हमारे देश की संपत्ति को लूटने यहां आये और हमसे हमारी आज़ादी छीन ली. अगर तब भी हम भारत शब्द से चिपके रहे तो यह केवल यह दिखायेगा कि ऐसा शर्मनाक शब्द जो हमें विदेशियों द्वारा दिया गया उसे अपनाने में हमें शर्म नहीं है. सच में मुझे नहीं समझ आ रहा कि हम इसे कैसे स्वीकार कर रहे हैं.
प्राचीनकालीन इतिहास और पारम्परिक तौर पर वर्षों से हमारे देश का नाम भारत और भारत वर्ष ही रहा है और बल्कि वास्तव में यह शब्द अपने अंदर उत्साह और साहस का संचार करता है इसलिए मेरा निवेदन है कि इस शब्द को स्वीकार करने में बिलकुल भी झिझक नहीं होनी चाहिये. यह हमारे लिये बड़े शर्म की बता होगी अगर हम इस शब्द को स्वीकार न करके अपने देश के नाम लिए कोई और शब्द रखें. मैं भारत के उत्तरी भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता हूं जहां श्री बद्रीनाथ, श्री केदारनाथ, श्री बागेश्वर और मानसरोवर जैसे पवित्र स्थान स्थित हैं. मैं इस हिस्से के लोगों की इच्छाएं आपके सामने रख रहा हूं. श्रीमान मुझे यह कहने की अनुमति दी कि इस क्षेत्र के लोग चाहते हैं कि हमारे देश का नाम भारतवर्ष हो और कुछ नहीं.
(India Bharat Debate Uttarakhand Leader)
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2 Comments
Kamal Kumar Lakhera
आपकी राय गलत समय पर आई, ऐसा प्रतीत होता है जैसे बहते नाले में हाथ धोने का प्रयास किया जा रहा है ।
गिरीश
इण्डिया शब्द का विरोध की देश के संदर्भ मैं बहस कभी भी हो सकती है । आदरणीय हरगोविंद पंत जी का विरोध समयानुकूल था और यथोचित था। पर आज तो किसी पार्टी ने अपनी पार्टी का नाम इण्डिया रखा है यह भी किसी से पूछकर रखा जाना चाहिए था क्या ? यह विवाद तो निरर्थक है ।
विरोध तो उत्तरांचल से जब उत्तराखंड किया गया तब भी होना चाहिए था । उत्तरांचल इतना सांस्कृतिक नाम था उसे बदल कर खण्ड कर दिया गया जो उत्तराखंड की संस्कृति के भी अनुरूप नहीं है ।
हम उत्तराखंडियों की यह भी संस्कृति रही कि हम विरोध भी प्रायः समय बीतने पर ही करते हैं । अगर मैं सही हूं तो यह परिवर्तन भी भारतीय जनता पार्टी के ही कार्य काल मैं हुवा था ।