उत्तराखंड में वन आन्दोलन का एक लंबा इतिहास रहा है. अलग-अलग समय पर यहां के लोगों ने अपने वन अधिकारों के लिये लड़ाई लड़ी है. जानिये उत्तराखंड में हुए कुछ प्रमुख वन आंदोलन :
रंवाई आंदोलन उत्तराखंड का ही नहीं वरन भारत का पहला वन आंदोलन है. भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान रंवाई घाटी के लोगों ने अपने वन अधिकारों के गढ़वाल के राजा के विरुद्ध आन्दोलन किया था. रंवाई के आंदोलन के बारे में अधिक यहां पढ़िए : रंवाई, लोटे की छाप की मुहर और तिलाड़ी कांड
चिपको आंदोलन भारत के सबसे बड़े और प्रसिद्ध पर्यावरण आंदोलन में एक है. 1972 में चमोली में हुये इस आंदोलन में गौरा देवी के नेतृत्व में स्थानीय महिलाओं ने सरकारी ठेकेदारों का विरोध पेड़ों से चिपक कर किया था. चिपको आंदोलन के विषय में अधिक यहां पढ़िए : दिलचस्प और प्रेरक रहा है चिपको आन्दोलन का इतिहास
1977 में नैनीताल जिले में शुरु हुआ यह एक राज्य स्तरीय आंदोलन था. वनों की नीलामी के विरोध में नैनीताल में आन्दोलनकारियों ने शैले हॉल फूक दिया. आंदोलन के दौरान दौराहाट के लोगों ने ढ़ोल और नगाड़े के साथ वनों का कटान रुकवा दिया.
डूंगी पैंतोली का आंदोलन का आंदोलन चमोली जिले में बांज की कटाई के विरोध में हुआ. सरकार द्वारा बांज के जंगलों को उद्यान विभाग को सौंप दिया जिसके विरोध में स्थानीय लोगों ने यह आंदोलन प्रारंभ किया था.
80 के दशक में डूंगी पैंतोली का आंदोलन की नींव पौढ़ी गढ़वाल के उफरैला गाँव में पड़ी. सच्दाचिदानंद भारती के नेतृत्व में शुरू हुए इस आंदोलन में स्थानीय युवाओं, महिलाओं और बच्चों ने पानी की कमी की दूर किया था.
1994 में शुरू रक्षासूत्र आंदोलन में टिहरी के भिलंगना घाटी के लोगों ने वृक्षों पर रक्षासूत्र बांधकर वृक्षों को बचाने का संकल्प लिया था. उत्तर प्रदेश सरकार ने 2500 पेड़ों को काटने हेतु चिन्हित किया था. सरकार इससे पहले कि पेड़ों का कटान शुरू करती स्थानीय माहिलाओं ने आंदोलन शुरू कर दिया.
1998 में शुरू इस आंदोलन में नंदादेवी राष्ट्रीय पार्क बनने के बाद स्थानीय लोगों के वनों पर सभी अधिकार छिन गये. रैणी, लाता, तोलमा आदि गाव के लोगों ने नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क का प्रबंधन स्थानीय लोगों के हाथों देने की मांग की और लाता गांव में विरोध प्रदर्शन किया.
मैती आंदोलन भारत का एक ऐसा पर्यावरण आंदोलन है जिसने पर्यारण और लोगों के बीच एक भावनात्मक संबंध बनाया है. कल्याण सिंह रावत द्वारा 1995 में इस आंदोलन को प्रारंभ किया था. मैती के विषय में अधिक यहां पढ़े : देखिये कैसे उत्तराखंड के लोगों के वैवाहिक जीवन का हिस्सा बना मैती आंदोलन
काफल ट्री डेस्क
वाट्सएप में पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
View Comments
आपने काफी महत्वपूर्ण जानकारी दी है पर इसमें एक गलती है। आपने डुंगी पैंताली आंदोलन का जिक्र किया है यह मेरा ही गांव है, जिसका नाम असल में डुंग्री पैंतोली है ना कि डुंगी । कृपया इसे ठीक कर लीजिए ।
धन्यवाद