Featured

देश की पुलिस व्यवस्था का एक दस्तावेज है ‘गहन है यह अन्धकारा’ उपन्यास

उत्तराखण्ड पुलिस में पुलिस अधीक्षक ( विजीलेंस, हल्द्वानी में तैनात ) व कवि अमित श्रीवास्तव के पहले उपन्यास ‘गहन है यह अन्धकारा’ का लोकार्पण कल 3 नवम्बर 2019 ( रविवार ) को नैनीताल रोड स्थित वुडपैकर रेस्टोरेन्ट में हुआ. यह उपन्यास हमारे देश के पुलिस व्यवस्था, उसकी कमजोरियों, उसके मानवीय पहलुओं पर परत  दर परत व्याख्या करता चलता है. उपन्यास के बहाने उपन्यासकार ने पुलिस सुधार को समय की आवश्यकता भी बताया है. (Amit Srivastava Book Released)

हमारे देश की पुलिस व्यवस्था अंग्रेजों के समय की है. जिसे उन्होंने इस देश की जनता पर गुलामी के राज को कायम करने के लिए बनाया था. तब पुलिस का पहला काम जनता को चुप कराना होता था. इसी वजह से वह हमेशा जनता खिलाफ व उसके दमन के लिए तैयार रहती थी. यही कारण था कि तब पुलिस के प्रति स्वतंत्रता की मॉग करने वाले लोगों के दिल में एक तरह की नफरत और गुस्से का भाव हमेशा बना रहता था. (Amit Srivastava Book Released)

साथ ही आम जनता में पुलिस का भय सा रहता था. देश की आजादी के बाद हमारी व्यवस्था ने पुलिस की उस व्यवस्था को ज्यों-त्यों स्वीकार किया, जिसे जनता के दमन और उसे डराने के लिए बनाया गया था. यही कारण है कि हमारी पुलिस आज भी सत्ता के नियंत्रण में रहते हुए जनता के दूसरी ओर खड़ी नजर आती है. और जो भी दल व नेता सत्ता में आता है उसने पुलिस की ताकत का दुरुपयोग ‘कानून व्यवस्था’ के नाम पर हमेशा अपने हितों के लिए किया है, जबकि उसका उपयोग जनता के हितों की रक्षा करना होना चाहिए था.

यही कारण है कि अपने ही बीच के, अपने ही परिवार के लोग पुलिस में होने के बाद भी आम जनता में पुलिस के प्रति एक तरह का नफरत का भाव रहता है. पुलिस दूसरे मानवीय चेहरे और उनकी भावनाओं का न तो कोई ख्याल करता है और न किसी का ध्यान उस ओर जाता है.

हत्या के एक केस को सुलझाने के बहाने उपन्यासकार अमित श्रीवास्तव ने इन सब बातों, समस्याओं, पुलिस के कार्यों की परेशानियों, उनके दैनिक जीवन की कठिनाईयों पर बड़ी गहनता के साथ दृष्टि डालते हुए इन सब से सम्बंधित सवालों को बेबाकी के साथ उठाया है. जिनके जवाब सत्ता को एक दिन देने ही होंगे और पुलिस के दमन का चेहरा बदलना ही होगा.

लेखक ने अपना उपन्यास ड्राइवर, गनर और फॉलोवर जैसे हमराहियों के नाम समर्पित किया है. उपन्यासकार का मानना है कि इनकी वजह से महकमा पत्थरों में जिंदा रह गए बीज की तरह हमेशा बचा रह जाता है. उपन्यासकार अमित श्रीवास्तव ने पुलिस के बारे में उपन्यास के बीच में टिप्पणी की है

कोई भी व्यक्ति पुलिस को तब तक प्यार नहीं करेगा, जब तक उससे कोई अपराध न हो जाय. अपराध होते ही वो पुलिस से ननफ़रत करने लगेगा. कोई भी व्यक्ति पुलिस को तब तक प्यार नहीं करेगा, जब तक उसके कोई अपराध न हो जाय. उसके साथ अपराध होते ही वह पुलिस से नफ़रत करने लगेगा .”

पुलिस के बारे में इससे ज्यादा त्रासद पूर्ण टिप्पणी और कुछ हो ही नहीं सकती है. पुलिस कुछ भी करे, कुछ चेहरा कैसा भी हो, लेकिन जनता उसे केवल एक ही नजर से देखती है.

उपन्यासकार अमित श्रीवास्तव ने एक उपन्यास न लिखकर पुलिस कार्यप्रणाली, उसकी व्यवस्था, उसके चरित्र, आम जनता की पुलिस के प्रति बनी व बनाई गई सोच पर दस्तावेज तैयार कर दिया है. पुलिस महकमे में रहकर इस दौर में इस तरह का लेखन करना वाकई में बहुत साहस का काम है, जिसके लिए उपन्यासकार को बहुत – बहुत बधाई और ढेरों साधुवाद भी.

विमोचन के कार्यक्रम की तस्वीरें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री के नियमित सहयोगी जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं. अपने धारदार लेखन और पैनी सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि के लिए जाने जाते हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago