किसी कुशल चित्रकार की रचना की तरह प्रकृति कदम-कदम पर अपने मनोहारी और विविध दृश्यों से चौंका देती है. कड़ाके की ठंड में भी आपको गर्म पानी के सोते मिल जाएंगे. एक तरफ गगनचुंबी वनस्पति रहित शुष्क पहाड़ तो दूसरी तरफ हरी भरी वादियां मिल जाएंगी. फूल और वनस्पति की विविधता, जलवायु के अनुसार रास्ते में बदलने वाले पेड़-पौधों के प्रकार यह सब कुछ हैरान करने वाला है. (Hot Spring Glacier Meadows)
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जोशीमठ से भारत चीन बॉर्डर की आखिरी सीमा नीति घाटी की ओर बढ़ते हुए तपोवन नामक खूबसूरत स्थान पड़ता है. जहां से नंदा देवी चोटी साफ दिखाई देती है जो भारत की सीमा के अंदर सबसे ऊंचा पर्वत है. इसके अलावा यहां से कॉमेट और हाथी पर्वत के भी दर्शन होते हैं. यहां से आगे बढ़ते हैं तो सलधर नाम की जगह पर पहुंचते हैं. दूरी लगभग तीन किलोमीटर है. सड़क के एक तरफ नदी किनारे ऊंचे ऊंचे पहाड़ हैं जिनमें हिरण और भालू आपको आसानी से दिख जाएंगे तो सड़क की दूसरी तरफ चार छः सीढ़ियां चढ़कर गर्म पानी का फब्वारा यानि हॉट वॉटर स्प्रिंग, जिसे थर्मल स्प्रिंग भी कहते हैं. सड़क के किनारे बोर्ड लगा दिख जाएगा. जमीन के अंदर मौजूद मैग्मा के कारण चट्टानें गर्म हो जाती हैं और जब पानी उनके संपर्क में आता है तो वह भी गर्म हो जाता है. मैग्मा धरती के अंदर पाए जाने वाला एक तरल पदार्थ है जो सिलीकेट ऑक्साइड और दूसरे वाष्पशील घटकों से मिलकर बनता है. यह चट्टानों की दरारों और छोटे छेदों के माध्यम से लावे के रूप में ज़मीन की सतह तक पहुंच जाता है. इसमें सल्फर और सोडियम जैसे खनिज तत्व मौजूद होते हैं इसलिए त्वचा रोग के निवारण हेतु लाभकारी माना जाता है. गढ़वाल क्षेत्र में कई हॉट वॉटर स्प्रिंग या तप्त कुंड मिल जाएंगे. उत्तरकाशी से गंगोत्री का रुख करें तो गंगनानी में ऋषिकुंड मिलता है. इसी तरह गौरीकुंड, सूर्यकुंड बद्रीनाथ, सूर्यकुंड यमुनोत्री और तप्त कुंड बद्रीनाथ हैं.
सलधर, तपोवन स्थित इस फव्वारे को देखा तो बहुत आश्चर्य हुआ. जून 2023 दूसरे सप्ताह की बात है. मौसम भी उस हफ़्ते शायद सबसे गर्म रहा. दूर से ही गर्म पानी की भाप गर्मी का एहसास दिला रही थी. यह तप्त कुंड से थोड़ा अलग था. यात्रा मार्ग पर होने के कारण कुछ लोग इस स्थान को पवित्र नज़रों से देखते हैं जबकि कुछ यहां पर चाय, चावल आदि भी बना लेते हैं, यहां तक कि इस पानी में अंडे भी उबल जाते हैं. हमें अंडों के छिलके और मैगी के रैपर पड़े हुए दिखाई दिए. फिलहाल हमने तो चिकनी मिट्टी यानि मुल्तानी मिट्टी जी भर के ज़मा कर ली और उसे घर लाकर धूप में सुखाकर, कूट पीटकर, छान कर लेप लगाने के लिए पाउडर बनाकर साल भर के सौंदर्य प्रसाधन का मुफ़्त में इंतज़ाम कर लिया.
गांव वालों ने कई होमस्टे मुख्य सड़क के आसपास खोल दिये हैं. जोशीमठ से यहां तक के सफ़र में आईटीआई, पॉलिटेक्निक कॉलेज और इंटरमीडिएट कॉलेज दिखाई दिए जो एनटीपीसी के द्वारा बनाए गए हैं. यहीं करची गांव से लॉर्ड कर्जन ट्रैक है. लगभग 5 किलोमीटर तक वाहन जाता है, फिर सुन्दर बुग्यालों से गुजरते हुए पैदल यात्रा. लगभग 12-13 किलोमीटर चलकर गोरसों बुग्याल आता है. 1902 में वायसराय लॉर्ड कर्जन उत्तराखंड भ्रमण पर आए तो उन्हें यह क्षेत्र बहुत पसंद आया. उन्होंने अल्मोड़ा ग्वालदम, पाणा, रामणी, करची और तपोवन होते हुए 200 किलोमीटर लंबा ट्रैक बनवा दिया.
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यह ट्रैक कई जगह 10 हज़ार फीट की ऊंचाई से भी गुजरता है. आज़ादी के बाद प्रशासनिक उदासीनता के कारण इसे बिसरा दिया गया था. वर्षों बाद जब पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने की कवायद शुरू हुई तो इस और ध्यान गया. बीच-बीच में सुधारीकरण हुआ, लेकिन इन रमणीक स्थलों के हाल बेहाल हैं. कई बार पुलिया ध्वस्त हो जाती हैं तो जान जोखिम में डालते हुए ही साहसिक अभियानों का सिलसिला जारी रहता है. गोरसों और क्वारी बुग्याल भी यहां पर हैं. गोरसों भाग तीस हज़ार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर है और औली से लगभग 3 किलोमीटर दूर. रास्ते में झीलें हैं, जंगल हैं. ओक, देवदार की सघन छाया तले, लाल-लाल फलों से लकदक सेब के पेड़ों के साए में चलते-चलते यहां पहुंचना बहुत ही सुखदायी है. वैसे भी शायद यह सबसे छोटा और आसान ट्रैक है.
छत्तर कुंड यहां से मात्र 1 किलोमीटर दूर है जो अपने मीठे पानी के लिए जाना जाता है. ट्रैकिंग रूट में कैंपिंग या रात में रुकने की कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए सुबह समय से निकलकर शाम ढलने तक जोशीमठ वापस आना समझदारी भरा काम है. अपने स्वास्थ्य और क्षमता के अनुरूप जाड़े और गर्मी दोनों का ही मौसम बुग्यालों में घूमने के लिए उपयुक्त है. गर्मी का मौसम तो पहाड़ों में सुखद और सुहावना रहता ही है, जाड़ों में जब बर्फ पड़ती है तो पहाड़ों की सुंदरता देखते ही बनती है, लेकिन बर्फबारी के मौसम में स्वास्थ्य बिगड़ने या किसी तरह की दुर्घटना का खतरा बना रहता है. बीते वर्षों में नए साल का जश्न मनाने गोरसों बुग्याल पहुंचे दो लोगों के शव मिले थे. बरसात का मौसम भूस्खलन और दूसरे खतरों को देखते हुए उचित नहीं माना जाता है.
जब-जब मानव दखल बढ़ा है तो प्रकृति विनाश की कार्यशाला बन गई है. पीपल कोठी से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर टंगड़ी गांव के पास पागल नाला है जो ऑल वेदर रोड की सुगमता में अक्सर बाधा डालता है. यहां लगभग 2016 से लगातार भूस्खलन हो रहा है. जो बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब यात्रा में बाधक बनता है. हिमालय थ्रस्ट लाइन भी यहीं से गुजरती है. शायद जोशीमठ में धरती के भीतर होने वाली हलचल भी इसी का नतीज़ा है. यह पूरा एरिया ही मेन सेंट्रल थ्रर्स्ट लाइन के ऊपर बसा है.
यूं भी उत्तराखंड के अधिकतर गांव दो हज़ार मीटर से ढाई हज़ार मीटर की ऊंचाई पर बसे हैं. यह इंडिया और तिब्बती प्लेट के बीच का बेहद कमज़ोर और संवेदनशील क्षेत्र है. भूकंप के लगातार आने वाले हल्के झटके, अलकनंदा और धौली गंगा नदियों के द्वारा शहर के नीचे मिट्टी का कटाव, सड़क और सुरंग निर्माण जैसे कार्यों का ही नतीजा है कि जोशीमठ सहित जगह-जगह पर भू धसाव हो रहा है. जोशीमठ में दरार पड़े हुए कई चिन्हित घर देखने को मिले. यह बद्रीनाथ जाने का मुख्य पड़ाव है, अगर किसी तरह का नुकसान होता है तो आबादी के लिए तो संकट है ही. बद्रीनाथ यात्रा भी अवरुद्ध हो सकती है. (Hot Spring Glacier Meadows)
मूलरूप से अल्मोड़ा की रहने वाली अमृता पांडे वर्तमान में हल्द्वानी में रहती हैं. 20 वर्षों तक राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, राजकीय पॉलिटेक्निक और आर्मी पब्लिक स्कूल अल्मोड़ा में अध्यापन कर चुकी अमृता पांडे को 2022 में उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान शैलेश मटियानी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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