86 साल की उम्र में बागवानी से स्वरोजगार का मॉडल खड़ा कर कायम की मिसाल

पहाड़ में रोजगार को लेकर पलायन की कहानियां अक्सर सुनने को मिलती हैं. कभी पानी का न होना तो कभी बंदर, सुअर आदि जंगली जानवरों से खेती को नुकसान होना, बहुत सी समस्यायें सुनने व देखने को मिलती हैं.

इन्हीं समस्याओं के बीच लगभग छियासी साल के गणेश दत्त पांडे के द्वारा विभिन्न प्रजातियों के फलों का बगीचा तब तैयार किया गया. वह भी उस उम्र में जब लोग सेवानिवृत्ति के बाद आराम की ज़िंदगी गुजारना चाहते हैं. फौज से सेवानिवृत्ति उपरांत उत्तर प्रदेश राज्य सरकार की स्कूटर इंडिया लिमिटेड कंपनी में कार्य करने के बाद पैंसठ वर्ष की अवस्था में लखनऊ से वर्ष 1998 में श्री गणेश दत्त पांडे जी अपने गांव बस गांव, पो ऑ. – सिमराड़, विकासखण्ड- रामगढ़, जिला नैनीताल वापस लौट आये.

वर्ष 2000 में अपनी डेढ़ एकड़ जमीन में प्रारम्भ में आस-पास की नर्सरियों से फलों की पौध खरीद कर रोपित की. इसके बाद धीरे-धीरे इन्हीं पौधों से कटिंग व ग्राफ्टिंग के ज़रिये नई पौध तैयार की. वर्तमान में इनके बगीचे में आड़ू की कई प्रजातियां हैं जिनमें रैड जून, पैरा व असाड़ी (पहाड़ी प्रजाति) प्रमुख हैं.

इसी प्रकार सेब की लाल बाइस- L-22, फैनी, डैलीसस, व आमरी आदि प्रजातियां हैं तो वहीं खुबानी की बादामी व गोला, पुलम की सैंटा रोजा व सरसोमा, नाशपाती की जाखनैल, चुसनी, बबूगोसा व काश्मीरी नाशपाती व दाड़िम- अनार आदि अन्य फल भी उपलब्ध हैं.

इस डेढ़ एकड़ के बगीचे में फलों के साथ ही मौसमी सब्जियाँ व दालें आदि भी उगाई जाती हैं. फलों को दिल्ली व हल्द्वानी की मंडियों में भेजा जाता है व स्थानीय बाजार में भी विपणन किया जाता है.

गणेश दत्त पांडे के सुपुत्र राजेश पांडे से वार्ता करने पर उन्होंने बताया कि इन सब कार्यों से चार-पांच परिवारों का भी साथ में वर्ष भर रोजगार चल रहा है व सीमित साधनों के कारण डेढ़ से दो लाख तक की शुद्ध आय फलों से व तीस से चालीस हजार तक की शुद्ध आय सब्जियों व दालों से प्राप्त हो जाती है.

कटिंग व ग्राफ्टिंग से तैयार पौध जरुरतमंद लोगों को कम कीमत पर विक्रय कर भी आय प्राप्त की जा रही है.

फल प्रसंस्करण की तकनीकी जानकारी न होने के कारण केवल अपने उपयोग हेतु ही प्रसंस्करण कार्य कर जैम, जैली, चटनी आदि बनाई जाती है.

उनके द्वारा कहा गया कि यदि प्रशिक्षण व तकनीकी मार्गदर्शन आदि अन्य सहायता दी जाये तो फल प्रसंस्करण इकाई की स्थापना कर मूल्य संवर्धन के जरिये अधिक आय प्राप्त की जा सकती है. वर्तमान में खैरना स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से दूरी के चलते ज्यादा सम्पर्क नहीं हो पाता तथा उद्यान विभाग से भी बहुत ज्यादा सहायता नहीं मिल पाती. वर्ष में कभी एक दो बार दवाइयां आदि उद्यान विभाग के द्वारा उपलब्ध करवाई जाती हैं.

गणेश दत्त पांडे का इन उन्नीस सालों में कार्य करने का जो जमीनी अनुभव है, उसे देखकर उन्हें फलोद्यान विशेषज्ञ की उपमा दी जा सकती है, कई ऐसी प्रजातियां हैं जो उन्होंने स्वयं प्रयोग कर तैयार की हुई हैं.

इस उम्र में उनकी चुस्ती, फुर्ती देखकर बेरोजगार युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिये.

ऐसे मेहनती लोगों की वजह से ही कई समस्याओं के होते हुए भी पहाड़ अभी ज़िंदा हैं.

देहरादून में रहने वाली ज्योत्सना खत्री उत्तराखंड के विभिन्न पहाड़ी क्षेत्रों में कई सामाजिक कामों में लगी हुई हैं. इस दौरान मिलने वाले अनुभवों को लिखती भी हैं.

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Sudhir Kumar

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