यहां के युवक-युवतियों लगभग 35 वर्ष की उम्र तक साइकिल, मोटर साइकिल, कार, बस, ट्रेन, हवाई जहाज से घूमते रहते हैं. कहीं कोई चिन्ता के चिह्न नहीं, किसी को किसी से कोई मतलब नहीं हरेक की अपनी अलग मंजिल है और अलग रास्ते. रोम के यूथ हॉस्टल में पहली बार सभी युवकों को स्नानगृह में पूर्णतया नग्न घूमते देखकर बड़ा ही अजीब लगा. हम सोचने लगे कि कैसी सभ्यता है जहां कपड़ा पहनना असभ्यता प्रतीत हो रही है. याद आया ‘‘जब रोम में हो, वैसा ही करो जैसा रोमन कहते है.’’
रोम की सड़कों में मुझे सबसे आकर्षक दृश्य वे लगते थे, जब मैं युवक-युवतियों को एक दूसरे का चुम्बन लेते हुए देखता था. सड़क के किनारे, दीवार के सहारे कॉलेज और स्कूल के लड़के-लड़कियों को अपनी कापी-किताब एक कोने में फेंककर खिल-खिलाते हंसते एवं प्रगाढ़ चुम्बन लेते हुए देखने में सचमुच बड़ा अच्छा लगता था. कहीं कोई झिझक नहीं चारों और स्नेह और शक्ति तथा हृदय की एक मधुर भावना. योरोप के लोग कार्य के प्रति जितनी ईमानदारी और निष्ठा रखते हैं, उतना ही आधुनिकता विलासिता के प्रति भी.
आज रोम अपनी चौड़ी सड़कों, बाग-बगीचों, नए ढंग के बड़े-बड़े भवनों और बिजली की सुविधा के कारण योरोप के अच्छे-अच्छे शहरों से टक्कर लेने लगा है. आज रोम की आबादी लगभग 25 लाख के आस-पास है, जबकि इस शताब्दी के प्रारम्भ में वह सिर्फ चार लाख थी. शहर की सबसे महान समस्या यातायात की भीड़ है. यही समस्या तो हमारे बम्बई, दिल्ली एवं कलकत्ता की है.
योरोप में हमने अनुभव किया कि यहां का युवावर्ग नशे की आदत का शिकार होता जा रहा है. नशे के शौकिन हिप्पीनुमा युवक-युवतियों को पाश्चात्य जगत में ‘फ्रीक्स लोगों’ से काफी सम्बन्ध रहा. इन लोगों की अपनी अलग दुनिया है, अलग मान्यताएं हैं तथा अलग विचार है. जो कि साधारण व्यक्ति के सर के ऊपर से निकल जाते हैं. इनके समुदाय में सभी लड़कियां एवं लड़के शराब,चरस, एलएसडी और हिरोइन का सेवन करते हैं. इन नशीली वस्तुओं के लिए हमने बहुत कम उम्र की लड़कियों को बेझिझक पैसे मांगते देखा, ये नशे के लिए सब कुछ करने को तैयार रहती हैं. इनके निजी जीवन में इनके माता-पिता अंकुश लगाने में असमर्थ हैं, कारण माता-पिता का अपने जीवन में खुद अंकुश नहीं है. गजब के लोग हैं ये फ्रीक्स, दिन-रात नशे में डूबे रहते हैं, होश में आने से पहले फिर नशे में खो जाते हैं. वर्षों से नशा कर रहे हैं, कई वर्षों से दुनिया को होश में नहीं देखा. शायद अब देखेंगे भी नहीं. क्योंकि शरीर जर्जर हो चुका है, शरीर का वजन किसी भी हालत में 30 किलो से अधिक न होगा. पर अभी भी कोई चिन्ता नहीं है. ‘बम भोले’ शब्द का उच्चारण करना हमारे देश के साधुओं की तरह यहां भी चरस पीते समय चलता है. कई लड़कियों के तो बच्चे भी हैं, पर मां का चरस का शौक बरकरार है. ऐसा लगा कि पश्चिमी समाज में जीवन मूल्यों पर जो संकट आज आ रहा है, उनका समाधान अभी निकट भविष्य में भी नहीं दिखाई देता.
एक दिन हम वेटिकन शहर देखने गये, जो कि रोम के अन्तर्गत एक छोटा सा राज्य है. इसकी अपनी सरकार है, डाक-तार व्यवस्था है एवं पुलिस व रेडियो स्टेशन है. इस राज्य का शासक है धर्म गुरू पोप, जो कि 70 करोड़ कैथोलिक मतावलम्बियों का धर्म गुरू है. पोप के वाक्य वेद माने जाते हैं. संससार के सभी राष्ट्र वेटिकन राज्य की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं. कहा जाता है कि पिछले महायुद्ध के दौरान रोम में सैंकड़ों बार बमबारी हुई, लेकिन बमवर्षकों ने हमेशा इस छोटे राज्य का पूर्ण ध्यान रखा कि कहीं कोई हानि न हो जाये.
वेटिकन को देखने के लिए काफी समय चाहिए. हमने तो सरकारी निगाह से दीवार पर टंगे चित्र देखे, ये चित्र विश्व के श्रेष्ठ प्रतिभाशाली कलाकारों द्वारा बनाये गये हैं. कुछ तो इतने बहुमूल्य है कि प्रत्येक का मूल्य 50 लाख रूपये आंका गया है. यदि पोप के संग्रहालय का मूल्य आंका जाये तो अरबों ररुपये तक पहुंचेगा. हम तीनों को सबसे अधिक आकर्षित किया माइकेल एंजिलो के चित्रों ने आज भी बार-बार मैं सोचता हूं कि कितना महान कलाकार रहा होगा माइकेल एंजिलो.
वेटिकन शहर में ही विश्व प्रसिद्ध संत पीटर का गिरजा घर है. यह महात्मा ईसा का मुख्य शिष्य संत पीटर के स्मारक स्वरूप बनाया गया है हमने रोम में कई गिरजे देखे, पर वेटिकन के इस गिरिजा घर के सामने वे सब बहुत छोटे थे. संत पीटर की ऊंचाई के सामने दिल्ली की जामा मस्जिद बहुत छोटी है. कहते हैं इसके अन्दर 60 हजार व्यक्ति बड़ी आसानी से प्रार्थना कर सकते हैं. इस गिरजाघर में मुख्य आकर्षण माइकेल एंजिलो के चित्र हैं.
पीसा के मीनार और बंगाली महिला
अन्य महाद्वीपों की तुलना में योरोप अधिक साफ एवं चुस्त दिखायी देता है. यहाॅं के शहर, खेत, रेलवे, नदी, नहर, यहां के गांव-मकानों एवं चर्च को देखकर मानव की महानता का आभास मिलता है.
जीवन के झमेलों से निकलकर योरोप की इन सुन्दर वादियों में जीवन का सच्चा आनन्द आ रहा था, भले ही शारीरिक स्थिति बहुत नाजुक हालत में थी. अत्यधिक धूम्रपान, साधारण भोजन करने एवं योरोप की ठंड में खुले आसामान के नीचे सोने से शरीर बहुत दुबला हो चुका था. सबकी हालत भी तंग होती जा रही थी. ऐसे क्षणों में हम यह निर्णय नहीं ले पाते थे कि स्विटजरलैन्ड के इतने करीब पहुंच कर भी इन देशों का भ्रमण किया जाय या नहीं. पश्चिम की भौतिकवादी सभ्यता में हमारा आध्यात्मवाद डगमगा रहा था.
योरोप में काम करने पैसे कमाने का युग अब नहीं रहा गया है. बिना ‘वर्क परमिट’ के रोजगार मिलना संभव नहीं, पहले से तो आसानी से काम मिल जाता था, जिससे यात्रा के लिए ‘हिच-हाइकर्स’’ पर्याप्त पैसा बना लेते थे. अब तो अगर कुछ कला कौशल है, जैसे भारतीय दर्शन, संगीत और योग का ज्ञान तभी कुछ संभव है. हम तीनों इन कलाओं से कोसों दूर थे. अतः हम तीनों को कठोर निर्णय के साथ पीसा, फ्लोरेंस और वीनस होते हुए युगोस्लाविया के रास्ते का चुनाव करना पड़ा कहते हैं कि इटली योरोप के सबसे सस्ते राष्ट्रों में से एक है और यहां का जीवन स्तर भी सबसे नीचा है. हमने सोचा कि अगर इसी देश में हम अपनी जेब और खर्च के मध्य सामन्जस्य नहीं कर पा रहे हैं तो अन्य योरोपियन देशों में तो मुश्किल हो जायेगी. मैं आज तक यह निर्णय नहीं कर पाया कि हमारा वह निर्णय उचित था या अनुचित. शायद हमारा अपने आप से विश्वास उठ गया था वरना नौकरी मिलना या न मिलना, पैसा कमाना या न कमाना यह सोच कर हम यात्रा पर नहीं निकले थे. यह सच है कि जीवन में आगे बढ़ते रहें तो रास्ता अपने आप निकल जाता है. रूक गये तो फिर रूक गये.
रोम को पूर्ण रूप से देख लेने के बाद हम रेल द्वारा पीसा को निकल पड़े. पीसा रेलवे स्टेशन एक छोटा सा रेलवे स्टेशन है, क्योंकि पीसा शहर ही बहुत छोटा शहर है. यहां का मुख्य आकर्षण झुकी हुई मीनार है. पीसा रेलवे स्टेशन पर बैठी एक लड़की के पास अपना सामान छोड़कर हम मीनार देखने निकल पड़े. विश्व प्रसिद्ध इस मीनार को अपने सामने देखकर मैं अतीत के बारे में सोचने लगा जब विशाल जन समुदाय के सम्मुख वैज्ञानिक एवं एस्ट्रालजर गैलीलियो ने यह सिद्ध किया था कि गुरत्वाकर्षण का बल सभी वस्तुओं का चाहे वे वस्तुएं भारी हों या हल्की, समान रूप से लगता है. इसके लिए उन्होंने इस मीनार से दो गोले गिराये थे, जिनमें से एक गोला ठोस था तथा दूसरा खोखला, पर दोनों एक ही समय जमीन पर पहुंचे.
हम लोग इस पीसा की मीनार के करीब ही हरी घास पर बैठकर आराम कर रहे थे कि हमने देखा कि एक बंगाली महिला हमें पुकार रही है. पास आकर उन्होंने हमसे पूछा कि हम भारतीय हैं या पाकिस्तानी. उन्होंने हमारे पाकिस्तानी होने का शक किया था. हमने बताया कि हम भारतीय हैं और नैनीताल के रहने वाले हैं तो उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से अपने घर चलने का निमन्त्रण दिया. महिला ने बताया कि वह इतावली सरकार की छात्रवृति से गणित विषय में शोध कार्य कर रही है. इससे पूर्व वह कलकत्ता विश्वविद्यालय की छात्रा थी. उसका पति भी उसके साथ ही पीसा आ गया था क्योंकि उनका एक छोटा बच्चा भी था, जिसे देखने वाला भी चाहिए था. पीसा में जहां बंगाली दम्पत्ति का घर था उसके पास ही वैज्ञानिक गैलीलियो का भी घर था. उसी घर की प्रयोगशाला में उन्होंने मूलभूत सुधार किये थे. गैलीलियो ही प्रथम मानव थे जिसने बृहस्पति ग्रह के उपग्रहों को सर्वप्रथम देखा था. इतने महान व्यक्तित्व के घर को देखकर मैं सोचने लगा कि कैसा वह समय होगा कि गैलीलियो के यह कहने पर कि पृथ्वी सूर्य के चारों और घूमती है शायद उसे फांसी की सजा दे दी गयी थी. क्योंकि लोगों को यह विश्वास था कि सूर्य ही पृथ्वी के चारों और घूमता है. आज तो समय बिल्कुल बदल गया है, गैलीलियो का युग तो 1564 से 1632 के बीच रहा.
पीसा में हमने इतावतली साम्यवादी दल द्वारा आयोजित मेला देखा. इटली साम्यवाद के प्रचार एवं प्रसार हेतु साम्यवादी दल मेलों का आयोजन करता है. इससे धन का अर्जन भी होता है. इतावली साम्यवादी विचारधारा रूस और चीन के साम्यवाद से मेल नहीं खाती है. योरोप के पूंजीवादी राष्ट्रों में साम्यवादी आन्दोलन की सफलता पर मुझे संदेह रहा है, क्योंकि पड़ोसी साम्यवादी राष्ट्रों की प्रगति पूंजीवादी राष्ट्रों की तुलना कुछ भी नहीं है.
पीसा के बाद हमारा अगला पड़ाव फ्लोरेंस रहा. फ्लोरेंस के लिए कहा जाता है कि यहां से योरोप में योरोपियन संस्कृति का प्रसार हुआ. इसमें कोई संदेह नहीं कि फ्लोरेन्स ने अपनी प्राचीन मूल संस्कृति की आज तक संजोये रखा है. यहां के लड़के, लड़कियों में सुन्दर संस्कार व शालीनता देखने को मिली. फ्लोरेन्स के कैफे, पुराने चर्च, लाल रंग की टाइल्स से बनी छतें, खेलने का मैदान, हसमुख स्वस्थ युवा लोग सब मिलजुल कर इस शहर की सुन्दरता को चार चांद लगाते हैं. उत्तर दिशा से आल्प्स की शीतल हवा, फ्लोरेन्स के बाग बगीचों के खिले हुए फूल, हरी घास, गिटार से संगीत निकालते हुए युवा लोग, प्रेम में खोये हुए युगल, यातायात को नियन्त्रण करने में व्यस्त पुलिस, बैंको में लगी भीड़, रेस्ट्रा में खाना खिलाते हुए बैरा, सड़कों में घूमते फ्रीक्स, इन सब के बिना तो फ्लोरेन्स की कल्पना भी नहीं की जा सकती है.
जब हम फ्लोरेन्स पहुंचे तो रात हो चुकी थी, यूथ हॉस्टल बन्द हो चुके थे. हमारे सामने सोने के लिए स्थान की समस्या थी. एक इतावली लड़का हमें पुराने चर्च के पास छोड़ गया. चर्च का फर्श भीगा हुआ था, बाहर भी चारों ओर ओस गिरने के कारण जमीन भी भीगी हुई थी. अतः कहीं और जगह ढूंढने निकल पड़े. रात को काफी समय तक घूमते रहने के बाद भी कोई जगह नहीं मिल पायी. अतः हमने एक सड़क की दीवार से सटकर सोने का निर्णय किया. रात को तेजी से गुजरती कारों की आवाज सुनकर बुरा हाल हो जाता था, अतः रात को देर रात नींद आ पायी. सुबह आंख खुली तो देखा कि सड़क पर गुजरने वाले लागे रूक-रूक कर हमें देख रहे हैं. शीघ्र हम अपना सामान लपेट कर यूथ हॉस्टल पहुंचे, नहा-धोकर एवं स्टोव में अपना नाश्ता तैयार कर दिन में रेलवे स्टेशन पहुंच गये जो कि हम जैसे हिच-हाइकर्स के लिए सबसे उपयुक्त रहने का स्थान था.
फ्लोरेन्स में कई दर्शनीय स्थल हैं पर यहां हमने अपने प्रवास के दौरान कोई भी संग्रहालय या ऐतिहासिक स्थल नहीं देखा. एक तो इन सभी जगहों पर टिकट होता था, दूसरा हम कुछ इन निर्जीव वस्तुओं से बोर हो चुके थे. अब हमारे आकर्षण केन्द्र थे यूथ हॉस्टल, बाजार एवं रेलवे स्टेशन जहां पर आधुनिकता देखने को मिलती थी. दिन भर यहां-वहां घूमते रहना और रात होने पर अन्य हिच-हाइकर्स के साथ रेलवे स्टेशन पर सो जाना यही हमारा फ्लोरेन्स में दैनिक क्रम रहा.
हम वेनिस पहुंचे
फ्लोरेन्स से हम रेल द्वारा वेनिस पहुंचे. सांयकाल का समय हो चुका था. हल्की-हल्की धुन्ध सारे वेनिस में छायी हुई थी. वेनिस को देखते ही श्रीनगर कश्मीर की याद आने लगी. वेनिस तो योरोप का कश्मीर ही है. यह एड्रियाटिक सागर के उत्तरी छोर पर बस है. दरअसल यह शहर कई छोटे-छोटे द्वीपों का पुंज है. वेनिस की सुन्दरता के बारे में बहुत कुछ सुनते आ रहे थे, सामने देखकर लगा कि इसके लिए जो कुछ भी कहा गया है, उसमें कुछ भी गलत नहीं है.
वेनिस रेलवे स्टेशन पर उतरते ही वेनिस शहर देखने की बैचेनी बढ़ने लगी, पर सफर के कारण भूख से भी बुरा हाल था. अतः अण्डे, प्याज व मक्खन लेकर अपने स्टोव पर आमलेट बनाने का आयोजन किया. वेनिस में खुले स्थान पर ऐसे आमलेट बनाना, शायद वेनिस के इतिहास में प्रथम घटना रही हो, इसीलिए हमने देखा थोड़ी देर में आसपास के घरों की खिडकियां खुल गयीं, एवं बड़े-बूढ़े तथा बच्चे सभी हमें झांकने लगे. हमारे सूखे चेहरे देखकर कुछ महिलाओं को हम पर तरस आ गया और उन्होंने हमें खाने की वस्तुएं दी, जिसे हमने सहर्ष स्वीकार किया.
रात हो चुकी थी. प्रेमी युगल अपने आप में खोये हुए, दुनिया की सुध-बुध भूले हुए दिखाई दे रहे थे. पानी में पड़ती बिजली की रोशनी से वेनिस शहर जगमगा रहा था. चारों ओर एक खामोशी का वातावरण था, कभी-कभी बीच-बीच में मोटरबोट में आवाज अवश्य सुनाई देती थी. ऐसे शान्त एवं मनमोह लेने वाले वातावरण में वेनिस की असीम सुन्दरता का अवलोकन करते हुए रात काफी देर तक घूमते रहे. रात थके हुए काफी देर में हम रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां पर हम जैसे हजारों घुमक्कड सोये हुए थे.
वेनिस शहर में विश्व भर के युवक एवं युवतियों का जमघट लगा रहता है. चाहे सिने कलाकार हो या नाट्य कलाकार, लेखकर हो या कवि, चित्रकार हो या मूर्तिकार, क्रांतिकारी हो या आतंकवाद का समर्थक-सभी के लिए यहां का वातावरण अनुकूल है. हॉलीवुड के प्रसिद्ध हीरो टानी कार्टिम के साक्षात दर्शन हमने यही किए. अतीत से ही वेनिस विश्व के महान लोगों को आकर्षित करता रहा है. अपने-अपने युग के जो भी महान व्यक्तित्व वेनिस आये, उन्होंने ही इसकी प्रशंसा की है.
व्यापार की दृष्टि से भी वेनिस का बहुत महत्व था. कहते हैं कि आज जो नाम योरोप में लन्दन का है वही कभी वेनिस का भी था. स्वेज नहर बनने के कारण इसका वह महत्व नहीं रहा. यहां के निवासी अतीत से पश्चिम और पूर्व के सम्पर्क में आते और रहते रहे हैं. यही कारण है कि यहां की कला कौशल का भी अनोखा रूप है जो कि शेष इटली से भिन्न है. वेनिस में बनी कांच की वस्तुएं अपनी नक्काशी एवं तराश में दुनिया में अद्वितीय है. सजावट के लिहाज से यहां के झाड़ फानूस विश्व के कई देशों में लोकप्रिय हैं. यहां के इन कुटीर उद्योगों से वेनिस के लाखों लोगों को रोजी-रोटी मिली हुई है.
एक शाम हम वेनिस के यूथ हास्टल घूमने गये. चारों और एक अजीब सी हलचल थी. थोड़ी ही देर में कई मित्र भी बन गये. सभी की अलग-अलग राष्ट्रीयता थी, पर सभी खानाबदोश जीवन के हामी थे. मैं आसपास देख रहा था कि अलग-अलग समूहों में युवक एवं युवतियां बैठकर अपने-अपने में मस्त थे. कहीं गिटार सुनाई दे रहा था, तो कोई अपनी अप्रीकी यात्रा के रोमांचक क्षणों की कहानी सुनाने में व्यस्त था, कहीं इटेलियन वाइन पीकर समूह गान चल रहा था, तो कहीं चरस पीकर बिन्दास बैठे हुए थे. यहीं हमारी मुलाकात एक 25 वर्षीय सिख युवक मनमीत से हुई. वह अपने खुले बालों तथा मस्ती भरे व्यक्तित्व के कारण आकर्षण का केन्द्र बना हुआ था. यही मनमीत जब दुबारा हमें भारतीय दूतावास तेहरान में मिला, तब वह पगड़ी एवं सूट पहन कर सरकारि मनमीत सिंह बन चुका था, और अमेरिका जाने के लिए दौड़ धूप कर रहा था. भारत लौटने की इच्छा रखने वाले मनमीत सिंह को शायद उसके भाई ने जो कि ईरान में ही कुछ काम करता था, बतला दिया होगा कि भारत वापस लौटना पागलपन होगा. मनमीत ब्रिटेन में एशियानों के रात दिन होने वाले अपमान से ही भारत लौटना चाहता था.
(जारी)
पिछली क़िस्त का लिंक: नैनीताल के तीन नौजवानों की फाकामस्त विश्वयात्रा – 6
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