छठवीं कक्षा में पढ़ता था. गुरूजी शब्दों के हिज्जे पूछ रहे थे. एक छात्र ने हिज्जे बताते हुए शब्द उच्चरित किया – फरेंड. आठ-दस बार गुरूजी के साथ अभ्यास के बाद फरेंड, फ्रेंड बन सका. दूसरे छात्रों से भी फ्रेंड का उच्चारण कराया गया. गुरूजी अब भी संतुष्ट नहीं थे. दूसरे छात्रों के साथ मैं भी झुंझला रहा था कि फरेंड का फ्रेंड बन गया, फिर भी क्यों इनकी सुई यहीं अटकी हुई है. बाकी के हथियारों को निष्फल जान गुरूजी ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया. फकमफोड़ वाला फ नहीं गधो फ़.
(Hindi Diwas 2023)
जो फकमफोड़ शब्द गुरूजी से सत्तर के दशक में सुना था, वह इस सदी के तेईसवें साल तक भी किसी भी गढ़वाली शब्दकोश में शामिल नहीं हो सका है. फकमफोड़ शब्द व्याकरण के हिसाब से संज्ञा कोटि का है. फकम फोड़ना इसकी क्रिया है. फकमफोड़ का अंग्रेजी पर्याय मेरे हिसाब से Pop है. Popcorn भी Pop और Corn दो शब्दों से मिल कर बना है. Corn का मतलब तो सर्वविदित है और Pop का अर्थ उपरवर्णित. अचानक से फटना या तड़कना. बहुत प्रयास किया कि हिंदी दिवस पर Popcorn के लिए सटीक हिंदी शब्द तलाश सकूं या गढ़ सकूं, पर असफल रहा. अंग्रेजी से सख़्त परहेज़ होने पर मक्के का लावा, शब्द-समूह प्रयोग किया जा सकता है. इस पर भी मुझे पूरा विश्वास है कि एक पोटली मक्के का लावा देना जैसी विशुद्ध हिंदी का प्रयोग करने वाले को दुकान से खाली हाथ लौटना पड़ेगा, जबकि एक पैकेट पॉपकॉर्न देना जैसी हिंदी के प्रयोग से ताज़ा और करारा पॉपकॉर्न का पैकेट, तत्काल बोलने वाले के हाथ में आयेगा. सिर्फ़ हिंदीभाषी राज्यों में ही नहीं, पूरे देश में कहीं भी, किसी भी वक्त.
लिखने में फ और फ़ का अंतर उतना स्पष्ट नहीं हो पा रहा है, जितना गुरूजी की मुखाकृति से हो गया था. बावजूद इसके ये दावा नहीं कर सकता कि फ और फ़ का उच्चारण-भेद छठवीं कक्षा में ही सीख गया था. मातृभाषा के प्रभाव के चलते अब भी कई बार फकमफोड़ हो ही जाता है. बहुत मुश्किल होता है, ये मानना और समझाना कि बेचारी गरीब अंग्रेजी में फ ध्वनि है ही नहीं. हिंदुस्तानियों ने जब इस पर ऐतराज़ किया तो Ph वाला बीच का रास्ता निकाला गया और ये तय किया गया कि जहाँ फकमफोड़ वाली ध्वनि की जरूरत हो, वहाँ Ph का प्रयोग किया जाए.
(Hindi Diwas 2023)
आगे चल कर जब फ़नेटिक्स से परिचय हुआ तो बेहतर समझ आया कि एफ का उच्चारण करने में अपर टीथ लोअर लिप को स्पर्श करते हैं. ऐसा स्पर्श, जिसमें अधर को दंतक्षत नहीं होता. अर्थात् लोअर लिप को दाँतों का नुकीलापन महसूस नहीं होता. व्याकरण की दृष्टि से फ, पवर्ग या औष्ट्य वर्ग में आता है. इस वर्ग के व्यंजनों का उच्चारण करने में ओठों का मिलन अनिवार्य होता है. किंचित् गोलाकार मुद्रा में. अंग्रेजी के एफ के उच्चारण में न ही ओंठों का मिलन होता है और न ही उन्हें गोलाकार करने का ही प्रयास किया जाता है.
दरअसल अधिकांश भारतीय भाषाओं के मूल रूप में फ़ ध्वनि थी ही नहीं. दूसरी तरफ अरबी, फारसी भाषा में फ ध्वनि नहीं थी. हिंदी, पंजाबी जब अरबी, फारसी के सम्पर्क-प्रभाव में आयीं तो इन दोनों ध्वनियों को चारों भाषाओं ने ग्रहण कर लिया. भारत में फ और फ़ के उच्चारण में सबसे सुविधाजनक स्थिति उर्दू की है. वहाँ इन दोनों के लिए क्रमश: दोचश्मी हे के साथ पे और फ़े का प्रयोग होता है. सर्वाधिक मुश्किल पंजाबी बोलने वालों को होती है. वो भूर्भुव: को भी फूर्फुव: कर देते हैं. उर्दू के फ़े और अंग्रेजी के एफ के उच्चारण में एक नफ़ासत होती है, जिसका मूल हिंदी-संस्कृत ध्वनियों में अभाव है. गढ़वाली जैसी लोकभाषाओं में तो ये फ विस्फोटकारी हो जाता है. लगभग गुब्बारे के फूटने की आवाज़ जैसा. इसी विस्फोटक उच्चारण को रोकने की ग़रज़ से गुरूजी को कहना पड़ा था – फकमफोड़ वाला फ नहीं सॉफ्ट फ़. अपर टीथ और लोअर लिप का क्षणिक स्पर्श.
(Hindi Diwas 2023)
अंग्रेजी के एफ और उर्दू फ़े का उच्चारण ओठों की स्थिति सामान्य रखते हुए किया जाता है, जबकि हिंदी फ का उच्चारण करते हुए ये किंचित गोलाकार हो जाते हैं. ओंठों पर नियंत्रण रखना इतना भी आसान नहीं है. लाख बार लग-लग कहो, ये लगते ही नहीं और एक बार मत लग कहो, तो तुरंत लग जाते हैं.
पूछा तो ये भी जा सकता है कि अंग्रेजी के Phone शब्द के हिज्जे में जब फकमफोड़ वाले फ का समकक्ष Ph है तो इसका उच्चारण F(फ़) जैसा क्यों ? उत्तर ये कि ग्रीक भाषा के फाइ अक्षर का उच्चारण पहले-पहल P की तरह किया जाता था. लैटिन शिलालेखों में इस ध्वनि को PH लिखा गया. ये जाहिर करने के लिए कि फाइ का सही उच्चारण, अतिरिक्त हवा (H) के साथ P है. ग्रीक भाषा का हिज्जों का ये परिवर्तन अंग्रेजी ने भी अपना लिया.
गुरूजी न किसी डाइट में थे और न एससीईआरटी जैसे अकादमिक संस्थान में. उनको टीएलएम अनुदान भी नहीं मिलता था और न तब सेवारत शिक्षक प्रशिक्षण का ही प्रावधान था. फिर भी उन्होंने सिद्ध कर दिया था, कर दिया है कि जो वो फकमफोड़ से सिखा सकते हैं, वो बाकी के शिक्षक और शैक्षिक प्रशासक कागज़ी, फ़ाइली और दफ़तरी माथापच्ची से भी नही सिखा सकते. हैट्स ऑफ टु गुरूजी एंड हिंदी दिवस की आप सबको शुभकामनाएँ. फकमफोड़, फ़नेटिक्स, फ्रेंड और पॉपकॉर्न के हिंदी कनेक्शन का निर्वचन आप पर छोड़ता हूँ. निर्वाचन नहीं निर्वचन, दैट इज़ इंटरप्रटेशन. टाइमपास के लिए पॉपकॉर्न खाते हुए विचार कीजिएगा. मुझे बाडुलि लगेगी तो समझ जाऊंगा कि कोई मेरी इस पोस्ट की चर्चा अपने साथी से कर रहा है.
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1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित), शोध-पुस्तिका कैप्टन धूम सिंह चौहान और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं.
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