जब कभी भारत में भुतहा या हॉन्टेड गांव की बात आती है तो देश के पहले दस गावों की सूची में आने वाला एक गांव उत्तराखंड का भी है. यहां हॉन्टेड का अर्थ किसी गांव के खाली होने से नहीं है बल्कि गांव में भूत आदि दिखने से है.
उत्तराखंड के चम्पावत जिले में एक गांव है स्वाला. इस गांव के बारे में माना जाता है कि यहां आठ पीएसी के जवानों की आत्मा आज भी घुमती हैं. इन आत्माओं से बचने के लिये लोगों ने गांव छोड़ दिया.
आज पूरी तरह से खाली स्वाला गांव 1952 से पहले एक भरा-पूरा गांव था. इस गांव में तब बीस से पच्चीस परिवार रहते थे. तब यह गांव आस-पास के सामान्य गावों के समान ही था.
चम्पावत जिले के मुख्यालय से तीस किमी की दूरी पर स्थित इस गांव में आज भूत के डर से कोई नहीं रहता है. स्थानीय स्तर पर यहां के भूतों के विषय में एक कहानी बताई जाती है.
कहा जाता है कि सन 1952 में गांव के पास पीएसी की एक मिनी बस खाई में गिर गई थी. इस मिनी बस में पीएसी के जवान भी मौजूद थे. गाड़ी के अंदर फसे जवान लोग मदद के लिये चीखते चिल्लाते रहे लेकिन गांव वालों से उनकी कोई मदद नहीं की. लोगों का कहना है कि गांव वालों ने उनकी मदद करने की बजाय उनका सामान लूट लिया. जवान वहीं तड़प-तड़प कर मर गये.
इस घटना के बाद गांव के लोगों ने महसूस किया कि गांव में कुछ अजीब-अजीब घटनायें घट रही हैं. खौफ़जदा गांव वालों ने एक-एककर गांव खाली करना शुरू कर दिया. और एक समय ऐसा आया जब पूरा गांव खाली हो गया.
आज जिस स्थान से पीएसी की गाड़ी गिरी उस स्थान पर एक मंदिर बना हुआ है. इसके साथ ही यहां पर मार्बल के पत्थर पर लिखा गया है कि 1952 में यहां पीएसी के जवानों की गाड़ी खाई में गिरी थी जिसमें आठ पीएसी के जवानों की मृत्यु हुई थी.
इस कहानी से हट कर स्वाला गांव के मूल निवासियों का कहना है कि बस गिरने की घटना सही है लेकिन गांव के खाली होने का कारण कोई भूत न होकर गांव का विकास न होना है. मूलरुप से इस गांव के लोग भूत वाली सभी बातों को सिरे से ख़ारिज हैं.
-काफल ट्री डेस्क
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भुतहा गांव पढ़ा।ऐसा ही कुछ बाकया मेरे साथ भी वर्ष 1976 मेंं ,जब मैं बैजरो क्षेत्र में इंजीनियर था ,हुआ था।उस समय मेरे साथ के जे.ई.को सांप ने काट लिया था और गांव वालों ने कोई मदद नहीं की.अंत में तीन दिन बाद उसकी मौत हो गई।