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उत्तराखंड के पहाड़ों में रहने वाले लोग कुदरत से मोहब्बत और सम्मान को दर्शाने वाले अनेक लोकपर्व मनाते हैं. हरेला इन्हीं लोकपर्वों में एक ख़ास लोकपर्व में है. सावन की पहली तारीख के दिन हर ठेठ पहाड़ी के कान के पीछे हरेला ख़ूब सजेगा.
(Harela Festival Uttarakhand 2024)
चली आ रही परम्परा के अनुसार पहाड़ के लोग अपने-अपने घरों में हरेला बोया करते हैं. हरेला बुआई का मतलब है टोकरी भर मिट्टी में पांच या सात तरह के अनाजों के बीज बोना. जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट जैसे अनाजों के बीच रिंगाल की टोकरी में बोना हरेला बोना है.
रिंगाल की यह टोकरी अगले कुछ दिन घर के भीतर अपने ईष्ट के थान यानी मंदिर के सामने रखी जाती है. नित्य ईष्ट वन्दना के समय के यह इसमें पानी भी डाला जाता है. सावन महीने की पहली तारीख को टोकरी में उपजी अनाज की हरी पत्तियों को काटा जाता है और अपने ईष्ट को चढ़ाने के बाद प्रत्येक पहाड़ी अपने कान के पीछे इन्हें सजाता है.
(Harela Festival Uttarakhand 2024)
उत्तराखंड के अलग-अगल इलाकों में हरेला मनाये जाने का समय भी अलग है. यह वर्ष में कुल तीन बार मनाया जाने वाला त्यौहार है. अधिकांश स्थानों में हरेला सावन महीने की पहली तारीख को ही मनाया जाता है. इसी प्रकार हरेला किस दिन बोया जाता है इस पर भी अलग-अलग मत हैं. कुछ जगल हरेला सावन की पहली तारीख से 11 दिन पहले, कुछ दिन 10 तो कुछ जगह 9 दिन पहले हरेला बोया जाता है.
हरेला पहाड़ियों का एक परम्परिक पर्व है. इस दिन पहाड़ियों के घर पकवानों की खुशबू से महकते हैं. हरेला काटने के बाद इसे घर के दरवाजों पर गोबर के बीच डालकर सजाया जाता है. घर की बुजुर्ग महिला घर के सभी सदस्यों के सिर पर हरेला रख उन्हें शुभाशीष देती हैं. ऐसा कोई सदस्य जो अपने घर से दूर रहता हो उसके पास किसी तरह हरेला पहुंचाने की पूरी कोशिश रहती. हो भी क्यों न शुभाशीष से कोई महज घर से दूरी की वजह से थोड़े ना महरूम छोड़ा जा सकता है.
(Harela Festival Uttarakhand 2024)
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