बरेली व रामपुर रोड के बीच में स्थित है हल्द्वानी की बड़ी मंडी. जिसका नाम लेते ही आमतौर पर थोक की बड़ी सब्जी मंडी की तस्वीर ही ऑखों के सामने तैरती है. पहले यह मंडी हल्द्वानी बाजार में ही स्थित थी. लगभग तीन दशक पहले इसे वर्तमान जगह पर नवीन मंडी के नाम से स्थानान्तरित किया गया. यहां फल, सब्जी, अनाज की अलग-अलग मंडियां हैं. बात केवल सब्जी मंडी की ही करें तो यह सवेरे चार बजे से सवेरे 10 बजे तक गुलजार रहती है. सुबह 4 बजे से यहां विभिन्न जगहों मसलन पहाड़ के विभिन्न स्थानों, हल्द्वानी के आस-पास के क्षेत्रों चोरगलिया, गौलापार, हल्दूचौड़, मोटाहल्दू, कोटाबाग, कालाढ़ूँगी, बिन्दुखत्ता, नयागॉव, चकलुआ, लालकुँआ आदि अनेक स्थानों के अलावा, बरेली, बहेड़ी, किच्छा, सितारगंज आदि जगह से विभिन्न तरह की सब्जियां पहुँचती हैं. Haldwani Mandi
यहां से इन सब्जियों को सब्जियों का कारोबार करने वाले स्थानीय दुकानदार व बाहरी आढ़ती भी खरीदते हैं. थोक में सब्जियां खरीदने वाले दुकानदारों के अलावा हल्द्वानी मंडी के नजदीक रहने वाले लोग भी घर के उपयोग के लिए सब्जी फुटकर व थोक के भाव ले जाते हैं. पहले थोक के भाव सब्जी खरीदकर उसके बाद मंडी में ही स्थानीय दुकानदारों व लोगों को सब्जी बेचने वाले दुकानदार भी अपने-अपने हिसाब से अलग-अलग सब्जियां बेचते हुए इस मंडी में मिलेंगे. कोई नींबू, मिर्च, अदरक ही बेचता है तो कोई केवल लहसून ही बेचता हुआ दिखाई देगा. कोई हरी सब्जियां पालक, धनिया, बथुआ, राई, मैथी ही लेकर बैठा रहता है. किसी के पास केवल मूलियां ही होती हैं तो कोई केवल टमाटर से भरी हुई ठैली लेकर मंडी में घुमता नजर आ जाएगा। कोई केवल पहाड़ की सब्जी गडेरी, मूला, गैठी और चूख वाले नींबू की दुकानदारी करता है. कोई केवल आलू, प्याज लेकर ही बैठा हुआ दिखाई देगा.
ऐसा नहीं है कि सवेरे केवल सब्जी का ही व्यापार होता है. सब्जी खरीदते हुए आप नजर दौड़ायेंगे तो आपको दस रुपए दर्जन में केले बिकते हुए भी मिल जाएँगे. ठेले में ही सेव, सन्तरा, अनार भी आपको बाजार से लगभग आधे दाम पर यहां मिल सकते हैं. इस सब के अलावा और भी बहुत से लोगों को अलग-अलग तरह का रोजगार यहां मिल जाता है. गरमा-गरम राजमा-चावल, कढ़ी-चावल भी यहां सूरज उगने के साथ ही बिकने लगता है. इसके अलावा चाय, समोसा, नमकीन, उबले हुए चने व मटर की चटपटी चाट भी आपको यहां मिल जाएगी. फुटपाथ पर टिन व पट्टे के सहारे लकड़ी की कुर्सी डाले कुछ नाई भी यहां पर हैं. जिनका काम सूरज की लालिमा के साथ ही शुरु होकर दस – ग्यारह बजे तक निर्बाध गति से चलता रहता है. जिनसे बाल-दाढ़ी कटवाने वालों में लाखों में खेलने वाले आढ़तियों के साथ ही सब्जी का ढुलान करने वाले मजदूर तक शामिल रहते हैं. इसके अलावा कुछ ठेलियों में आपको रोजमर्रा की वस्तुएँ बेचने वाले भी मिल जायेंगे तो कुछ ठेलों में आपको जूते-चप्पल भी मिल जाएँगे.
कुछ लोग पटरी पर बैठ कर गाड़ियों के श्रृंगार का सामान लगाए बैठे रहते हैं. कुछ गाड़ी के चालक ऐसे होते हैं, जो अपनी गाड़ियों की बहुत अच्छी तरह से देखभाल करते हैं. ऐसे ही चालकों के दम पर इन लोगों के परिवार को दो वक्त की रोटी मिल पाती है. कुछ गाड़ियां हल्द्वानी मंडी में थोक की सब्जी लाती हैं तो कुछ गाड़ियां यहां से सब्जी भरकर दूसरे स्थानों को ले जाती हैं. स्थानीय दुकानदारों के सब्जियों से भरे टैम्पों दिखाई देंगे तो कुछ स्थानीय छोटे दुकानदार साइकिल, स्कूटर से सब्जी ले जाते हुए भी दिखाई दे जाते हैं.
मतलब ये कि हल्द्वानी की नवीन बड़ी सब्जी मंडी में थोक के भाव पर सब्जियों का ही लेन-देन नहीं होता, बल्कि इसके साथ सैकड़ों उन लोगों को भी रोजगार मिलता है, जिनका सब्जी के व्यापार से कोई सम्बंध नहीं होता है. उनका कारोबार, व्यापार व धंधा दूसरा होता है, पर उसकी डोर सब्जी के थोक बाजार से ही जुड़ी रहती है. सब्जी के थोक का व्यापार चलेगा तो उनका भी धंधा चलेगा. वह ठप्प तो उनका धंधा भी ठप्प. शनिवार के दिन सब्जी मंडी में साप्ताहिक अवकाश रहता है तो दूसरे धंधे वालों का भी अवकाश अपने आप हो जाता है.
सब्जी के थोक व्यापार व उसके सहारे चलने वाले विभिन्न तरह के धंधों के एक – दूसरे से अप्रत्यक्ष तरह के जुड़ाव पर अगर गम्भीरता से ध्यान दें तो यह पता चलता है कि एक ही तरह का व्यापार कैसे दूसरे कई धंधों व व्यापारों को जन्म दे देता है. जिससे सैकड़ों, हजारों हाथों को काम मिलता है और कामगार हाथों के बल पर ही कई परिवारों में सेवेरे-शाम का चूल्हा जलता है और उस जलते चूल्हे से पेट की आग ठंडी होती है. Haldwani Mandi
सभी तस्वीरें जगमोहन रौतेला और रीता खनका रौतेला द्वारा ली गई हैं.
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काफल ट्री के नियमित सहयोगी जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं. अपने धारदार लेखन और पैनी सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि के लिए जाने जाते हैं.
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