गूजर भारत के गडरिया कबीले के लोग हैं. गुजर नाम संस्कृत के गूजर से निकला है, जो आज के गुजरात का मूल नाम था. कहा जाता है कि गूजर मूलतः गो-पालक थे, उन्हें गोचर कहा जाता था. उनका आदि स्थान गुजरात का कठियाबाड़ माना जाता है. (Gujars of Uttarakhand Tarai)
बाद में इन्हीं गौचरों को गुज्जर या गुज्जर कहा जाने लगा. इनकी आजीविका का साधन पशुपालन ही था. गायों का दूध कम होने के कारण कालांतर में इन्होंने भैंसे पालना शुरू कर दिया.
गूजर खुद को महाभारत काल के राजा नन्द का वंशज मानते हैं.
आज भी गूजर देश के विभिन्न हिस्सों में घुमंतू जीवन बिता रहे हैं. ये हिन्दू, इस्लाम और सिख धर्म के अनुयायी हैं. मुसलमान गूजर मुख्यतः जम्मू, हिमाचल और उत्तर प्रदेश में मिला करते हैं.
गूजरों के इतिहास के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं मिलती. इतिहासकार स्मिथ का मानना है संभवतः उनका वोल्गा और ओक्सास नदी की घाटियों से आने वाले श्वेत हूणों से खून का रिश्ता था. हूण पांचवीं सदी में भारत आये. बाद के समय में हूण हिन्दू हो गए और उनका अलग अस्तित्व समाप्त हो गया.
गूजरों के पुराने राज्य के रूप में राजस्थान में उनके शासन का उल्लेख मिलता है, इस राज्य की राजधानी श्रीमल हुआ करती थी.
शुरू में गूजर पश्चिमी भारत के निवासी रहे और बाद में उत्तर-पश्चिमी भारत में फ़ैल गए.
उत्तराखण्ड की तराई में बसे गूजर हिमाचल प्रदेश से आये हैं. घुमंतू होने के कारण गूजर अपने पशुओं के लिए लम्बे-चौड़े चरागाहों की खोज में उत्तराखण्ड के तराई में पहुंचे और उन्होंने इसे अपना जाड़ों का घर बना लिया. गर्मियों के दिनों में वे उत्तराखण्ड के हिमालयी बुग्यालों में पहुँच जाते. 1962 के चीन आक्रमण ने उनका बुग्यालों में जाना बंद करवा दिया. यहां भी उनका घुमंतू जीवन जारी रहा. इस समय तराई के जंगलों में 600 गूजर परिवार रहा करते हैं. जंगलों के निवासी होने की वजह से उन्हें वन गूजर भी कहा जाता है.
तराई के गूजर स्वभाव से सीधे-साढ़े और सरल हुआ करते हैं. अपने वनवासी जीवन के कारण वे खुद में ही मगन रहते हैं और किसी से ज्यादा सरोकार नहीं रखते. तराई-भाबर के खत्तों में रहने वाले घमतप्पू पशुपालक
घुमंतू गूजर प्रकृति के बेहद करीब हुआ करते हैं. वे बहुत सादगीपूर्ण जीवन बिताते हैं. उनके दुधारू पशु और कच्चे डेरे ही उनकी संपत्ति हुआ करते हैं. घने जंगलों में खुली जगह पर किसी पानी के स्रोत के नजदीक वे अपना डेरा बना लिया करते हैं. वन विभाग इन्हें पक्के निर्माण की इजाजत नहीं देता.
इनके डेरे बहुदा झुण्ड में होते हैं. एक डेरे में 5-6 से ज्यादा परिवार नहीं हुआ करते. डेरों का निर्माण सामूहिक रूप से किया जाता है जिसमें 10-15 दिन का समय लगता है. ये बहुत सफाईपसंद होते हैं तो उनकी झोपड़ियाँ पुती हुई और साफ़-सुथरी हुआ करती हैं.
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उत्तराखण्ड का समग्र राजनैतिक इतिहास (पाषाण युग से 1949 तक) – डॉ. अजय सिंह रावत, के आधार पर
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1 Comments
Saurabh
साम्राट मिहिर भोज यह एक गुर्जर प्रतिहार वंश से है यह मैंने इतिहास में पढ़ा था और अब तक पढ़ता रहा हूं मैं जहां तक जानता हूं राजपूत अलग है और गुर्जर अलग है चौहान या प्रतिहार सोलंकी आदि यह वंश मूल से गुर्जर वंश कहलाते हैं जहां तक मैंने पढ़ा है प्रतिहार मिहिर भोज एक गुर्जर वंश से संबंध रखते हैं प्रतिहार मिहिर भोज को गुर्जर प्रतिहार मिहिर भोज इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनके पूर्वज लक्ष्मण जी के वंशज कहलाए जाते हैं और लक्ष्मण जी भगवान श्री राम के प्रतिहार थे अथवा रक्षक थे इसलिए इन्हें प्रतिहार कहा जाता है गुर्जरों की शाखा होने के कारण इन्हें गुर्जर प्रतिहार कहा जाता है इनका शासन आज के समय के अफगानिस्तान राजस्थान गुजरात पंजाब हरियाणा मध्य प्रदेश महाराष्ट्र बंगाल अखंड भारत पर इनका शासन था इसलिए ने चक्रवर्ती सम्राट भी कहते थे मेरी बात मानने की कोई ज्यादा आवश्यकता नहीं है इंडियन हिस्ट्री पढ़ सकते हैं उसमें गुर्जर प्रतिहार कॉल पढ़ सकते है बहुत सी परीक्षा में पूछा जाता है की सम्राट मिहिर भोज किस वंश से ताल्लुक रखते थे गुर्जर प्रतिहार वंश से जो जैसा पड़ेगा वैसा ही उत्तर देगा विकिपीडिया पर स्पष्ट लिखा है गुर्जर प्रतिहार वंश है कृपया इसमें सुधार करें यदि यह सही है तो कृपया मार्गदर्शन करें धन्यवाद