एक स्कूल हो ऐसा जिसका हर कोना इतना सुंदर हो कि उससे बाहर जाने का मन ही न हो. ये सपना हर अभिभावक का होता है. इसके लिए वो अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा लगाने के लिए भी तैयार रहता है. फिर भी ऐसे स्कूल की तलाश अधिकतर अधूरी ही रहती है. नामी पब्लिक स्कूल भी अभिभावकों की ये साध पूरी करने में अक्सर असफल ही रहते हैं.
(Government Inter College Garh Khet)
ऐसे सुंदर स्कूल किसी सरकारी योजना से बने हों या किसी संस्था के सहयोग से ऐसा कभी देखने को नहीं मिल पाता. ऐसे सुंदर स्कूल व्यक्तिगत पहल और इच्छाशक्ति से ही बन पाए हैं, संवर पाए हैं.
कोरोनाकाल के रूप में अभिशप्त साल 2020 में बहुत कुछ अच्छा भी हुआ है. टिहरी के एक सामान्य से विद्यालय का सौंदर्यीकरण – कायाकल्प भी उन अच्छे परिणामों में से एक है. गौरतलब ये कि ये स्कूल सरकारी है और 6 से 12 तक शिक्षा प्रदान करने वाला इंटर कॉलेज है. स्कूल का नाम है, राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज गरखेत. टिहरी के पश्चिमी भाग में, जौनपुर ब्लाक में स्थित.
कोरोनाकाल में विद्यालय के कक्षा 9 और 11 के छात्र-छात्राओं ने अपने विद्यालय को किसी परीलोक सा सुंदर बना दिया है. ऐसा उन्होंने अपने शिक्षक आशीष डंगवाल के मार्गदर्शन में किया है. संरक्षण, प्रधानाचार्य सहित पूरे विद्यालय परिवार का रहा है. आशीष पेशेवर कलाकार नहीं हैं पर सौंदर्यबोध उनकी रग-रग में समाया है. इस काम के लिए उन्होंने कुछ क्रिएटिव कलाकार साथियों का सहयोग लिया जिन्होंने स्कूल के बच्चों को चित्रकारी-पेंटिंग के गुर भी सिखाए और अपने हाथों कुछ सुंदर रचने का मौका भी दिया.
सौंदर्यीकरण के नाम पर कई बार विद्यालयों में जो लीपापोती होती है उसे देखकर लगता है कि सुंदरता कराह रही है. कई जगह उच्च स्तर के आदेश की लम्बाई के बराबर ही खानापूर्ति दिखती है तो कई जगह चूना लगाया के दोनों अर्थों तक ही सौंदर्यीकरण का कर्मकांड चलता है. इन सबसे अलग, गरखेत स्कूल में, आशीष डंगवाल ने सुरुचिपूर्ण सौंदर्यबोध का परिचय दिया है. इस सौंदर्यीकरण में बाल-मनोविज्ञान और ज्ञानवर्द्धन दोनों समाहित हैं.
एक दीवार है जिस पर कलात्मक पंख बने हैं और जिसके सामने बैठ कर बच्चे को लगता है कि उसके सपनों को पंख मिल गए हैं और उसकी कल्पना आसमान की ऊंचाई को छू रही है. इसके साथ ही स्कूल की दीवार पर देहरादून स्थित आईएमए बिल्डिंग का भी चित्र बना हुआ है. परिसर में ही टिहरी झील का डोबरा-चांठी पुल भी है, गैरसैंण का विधानभवन भी और केदारनाथ मंदिर भी. फुटबॉल मैदान भी है, तितलियाँ भी और उड़ता हुआ बच्चा भी. विद्यालय परिसर में घूमते हुए ही अच्छा-खासा एक्सपोज़र विजिट हो जाता है बच्चों का.
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आशीष डंगवाल बताते हैं कि शिक्षक बनने से पहले ही उनका सपना था कि समुदाय को और कार्पोरेट सेक्टर को स्कूल से जोड़ा जाए. स्कूल प्रवेशद्वारों पर लिखे वाक्य, सेवार्थ जाइए की एक धारा वो सेवार्थ लौट आइए के रूप में भी प्रवाहित करना चाहते थे. ये राह कुछ कठिन जरूर थी पर चाह के सम्मुख असंभव नहीं. चुनौती नज़र आती है तो आशीष उसे प्रोजेक्ट नाम दे देते हैं और फिर प्रोजेक्ट के ही तरीके से उसे अंजाम तक भी ले जाते हैं. उनके सच्चे मन से पवित्र उद्देश्य के प्रोजेक्ट के साथ आर्थिक सहयोगी खुद ही जुड़ जाते हैं और जुड़ कर स्वयं को धन्य भी समझते हैं.
आशीष, गरखेत से पहले उत्तरकाशी के सीमांत-अति दुर्गम विद्यालय, हाईस्कूल भंकोली में कार्यरत थे. वहाँ से विदाई के अवसर पर समुदाय और बच्चों ने जिस भावुक और आत्मीय तरीके से उन्हें विदा किया था उसे देख कर लोगों को सरकारी शिक्षकों के प्रति अपनी धारणा को बदलने के लिए मजबूर कर दिया था. पिछले साल आशीष ने प्रोजेक्ट घराट के माध्यम से एक और अभिनव प्रयोग किया था. पूर्व विद्यालय से विदाई के अवसर के फोटो-वीडियो से आशीष को इतनी लोकप्रियता मिली कि जिसके लिए उत्तराखण्ड के सिलेब्रिटी भी तरसते रह जाएं.
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इसके बाद शिक्षामंत्री उत्तराखण्ड, अरविंद पाण्डेय व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने भी आशीष को अपने आवास पर बुला कर सम्मानित किया था. आशीष की मंज़िल कोई सरकारी या गैर-सरकारी पुरस्कार नहीं है. वे ये सब स्वांत: सुखाय कर रहे हैं. अभी उनके मन-मस्तिष्क में ढेरों प्रोजेक्ट्स हैं. प्रोजेक्ट्स सौंदर्य के, बदलाव के और विश्वास की पुनर्स्थापना के.
रुद्रप्रयाग की भरदार पट्टी के श्रीकोट के मूल निवासी आशीष डंगवाल, गरखेत इंटर काॅलेज में, राजनीति विज्ञान के प्रवक्ता हैं पर राजनीति से कोसों दूर. बस इतनी अपेक्षा रखते हैं कि माई भिक्षा भले ही न दे पर अपने कटखने कुत्ते को तो संभाल कर रख ले. सौंदर्यीकरण के इस प्रोजेक्ट को आशीष ने नाम दिया है प्रोजेक्ट स्माइलिंग स्कूल. प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या. उनका स्कूल न सिर्फ़ स्वयं मुस्करा रहा है बल्कि हजारों-लाखों देखने वालों के चेहरे पर भी मुस्कुराहट ला रहा है.
शिक्षा विभाग को चाहिए कि वे आशीष डंगवाल के विद्यालय में एक्सपोज़र विजिट कराएं. कलाध्यापकों का कला के लिए, संस्थाध्यक्षों का संसाधनों के अर्जन व सदुपयोग के लिए और प्रशासनिक अधिकारियों का सकारात्मक ज़मीनी बदलाव के मैकेनिज़्म को समझने के लिए.
आशीष डंगवाल एक ऐसा स्वप्नदर्शी शिक्षक है जो न सिर्फ़ सकारात्मक बदलाव के सपने देखता है बल्कि सपनों में सौदर्य के रंग भी भरता है.
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–देवेश जोशी
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1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं.
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