क्या मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत श्रीनगर ( गढ़वाल ) स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान ( एनआईटी ) के स्थाई परिसर के निर्माण के बारे में जनता के साथ छल कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि एनआईटी के छात्र संस्थान के स्थाई परिसर निर्माण की मॉग को लेकर पिछले एक महीने से अपनी कक्षाओं का न केवल बहिष्कार कर रहे हैं बल्कि अधिकांश छात्र परिसर छोड़कर अपने घरों को चले गए हैं. छात्रों द्वारा संस्थान का बहिष्कार किए जाने के बाद गत 14 नवम्बर को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने कहा था इस समय निकाय चुनावों को लेकर चुनाव आचार संहिता लगी है तो सरकार परिसर के स्थाई निर्माण को लेकर कोई निर्णय नहीं कर सकती. चुनाव आचार संहिता खत्म होने के बाद मंत्रीमण्डल की जो पहली बैठक होगी उसमें स्थाई परिसर के निर्माण के बारे में निर्णय किया जाएगा. पर जब गत 24 नवम्बर 2018 को मन्त्रिमण्डल की बैठक हुई तो एनआईटी के परिसर निर्माण को लेकर कोई भी निर्णय नहीं हुआ. न इस बारे में कोई प्रस्ताव ही मन्त्रिमण्डल की बैठक में आया.
ऐसा प्रदेश सरकार ने तब किया जब संस्थान के स्थाई परिसर निर्माण की मांग का मामला उच्च न्यायालय पहुँच गया है. स्थाई परिसर को लेकर संस्थान के पूर्व छात्र की जनहित याचिका पर उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार, उत्तराखण्ड सरकार और संस्थान के निदेशक को नोटिस जारी कर, स्थाई परिसर के निर्माण को लेकर तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है. यह नोटिस मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायाधीश आलोक सिंह की दो सदस्यीय खण्डपीठ ने संस्थान के पूर्व छात्र जसवीर सिंह की याचिका पर गत 16 नवम्बर 2018 को जारी किया.
पूर्व छात्र ने अपनी याचिका में कहा कि संस्थान को बने हुए नौ साल हो गए हैं लेकिन इतने सालों बाद भी संस्थान का स्थाई परिसर नहीं बन पाया है. छात्रों को पॉलिटैक्निक के खस्ताहाल परिसर में बिना किसी सुविधा के पढ़ाई करनी पड़ रही है. यह छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने की तरह है. छात्र ने संस्थान के परिसर का जल्द निर्माण किए जाने और पिछले दिनों सड़क दुर्घटना में घायल छात्रा का इलाज प्रदेश सरकार द्वारा करवाए जाने की मांग की है. याचिका को सुनने के बाद ही न्यायालय ने तीनों पक्षों को नोटिस जारी किया.
उल्लेखनीय है कि एक ओर प्रदेश की भाजपा सरकार प्रदेश में तथाकथित विकास के नए – नए दावे कर रही है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश के एक उच्च शिक्षा संस्थान ” एनआईटी ” के बारे में इतनी लापरवाही और गैरजिम्मेदारी दिखा रही है कि संस्थान की बदहाली से तंग आकर लगभग 900 छात्रों ने गत 23 अक्टूबर 2018 को अपनी कक्षाओं का बहिष्कार कर अपने – अपने घरों को चले जाना ही उचित समझा. लभगभ सभी छात्रों के श्रीनगर ( गढ़वाल ) में स्थित संस्थान के अस्थाई परिसर को छोड़ देने के बाद भी प्रदेश का उच्च शिक्षा विभाग इस बारे में गम्भीरता से आगे की कार्यवाही करता नहीं दिखाई दे रहा है. प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा इस बारे में की जा रही बयानबाजी केवल रस्म अदायगी भर दिखाई दे रही है क्योंकि छात्रों द्वारा संस्थान छोड़ने के लगभग एक माह बाद भी छात्रों व संस्थान प्रबंधन के बीच कोई समझौता नहीं हो पाया था.
प्रदेश में अब तक जो भी सरकारें रही हैं सभी ने एनआईटी के बारे में कोई भी गम्भीरता नहीं दिखाई. यही कारण है कि श्रीनगर ( गढ़वाल ) में 2009 में एनआईटी की स्वीकृति भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ” निशंक ” के कार्यकाल के दौरान केन्द्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली डॉ. मनमोहन सिंह सरकार ने दी थी. वहां 2010 से पढ़ाई शुरु होने के बाद भी उसके स्थाई परिसर के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है. एनआईटी का अस्थाई परिसर श्रीनगर ( गढ़वाल ) के राजकीय पॉलिटैक्निक संस्थान में बनाया गया है. इसी वजह से वहां पढ़ने वाले लगभग 1,000 छात्र पूरी तरह से अस्थाई व्यवस्था के भरोसे वहां पर रह कर पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें से लगभग 600 छात्र छात्रावास में रह रहे हैं तो अन्य छात्र परिसर से बाहर किराए में रहते हैं. पिछले कुछ वर्षों में एनआईटी के छात्र वहां स्थाई व्यवस्था किए जाने की मांग को लेकर कई बार धरना, प्रदर्शन व अनशन तक कर चुके हैं. इस बार भी छात्रों ने गत 4 अक्टूबर 2018 से अपनी मॉगों को लेकर कक्षाओं का बहिष्कार शुरु कर दिया था. छात्रों की मांग है कि स्थाई परिसर का निर्माण यथाशीघ्र शुरु किया जाय और जब तक स्थाई परिसर नहीं बन जाता तब तक उन्हें किसी सुविधाजनक व सुरक्षित जगह पर रखा जाय. जब 19 दिन बाद भी कोई हल नहीं निकला तो उन्होंने विरोध स्वरुप 23 अक्टूबर को छात्रावास छोड़ दिया और अपने घरों को चले गए.
छात्रों द्वारा एनआईटी परिसर छोड़े जाने के दिन ही संस्थान प्रबंधन ने छात्रों को ई मेल भेजकर कक्षाओं में वापस लौटने की अपील की पर छात्रों ने बिना सुरक्षा आश्वासन के वापस लौटने से इंकार कर दिया. एनआईटी के सहायक कुलसचिव जयदीप सिंह कहते हैं, “जिस दिन छात्र परिसर छोड़कर गए, उसी दिन उन्हें कक्षाओं में लौटने का नोटिस ईमेल से भेज दिया था. बिना बताए लगातार अनुपस्थित रहने पर संस्थान के नियमानुसार छात्रों पर कार्यवाही की जाएगी”. दूसरी ओर छात्र संगठन एसएफआई से जुड़े राजीव कान्त व अतुल कान्त का कहना है कि “छात्र बिना आवश्यक सुविधाओं के पढ़ाई कर रहे हैं. बिना प्रयोगशाला के उनकी पढ़ाई किसी काम की नहीं है, इसी वजह से कोई भी कम्पनी कैम्पस चयन के लिए यहां नहीं आ रही है और छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद भी रोजगार के लिए भटकना पड़ रहा है.”
इसी वजह से अधिकांश छात्रों ने बिना पर्याप्त सुविधा के एनआईटी में वापस लौटने से इंकार कर दिया है. छात्रों के अभिभावकों ने भी उनके आन्दोलन को पूरा समर्थन देने की बात कही. अनेक अभिभावकों ने संस्थान के ई – मेल के जवाब में कहा कि जब तक संस्थान छात्रों को पूर्ण सुविधा देने की घोषणा नहीं करता तब तक वे अपने बच्चों को वापस नहीं भेजेंगे. छात्रों व अभिभावकों के इस रुख के बाद एनआईटी के कार्यवाहक निदेशक प्रो. आरबी पटेल का कहना था कि “छात्रों से दो बार परिसर में वापस लौटने की अपील ई – मेल के माध्यम से की जा चुकी है. पर छात्र वापस लौटने को तैयार नहीं हैं, उनके इस रुख से सीनेट को अवगत करा दिया गया है. वही इस बारे में आगे कोई निर्णय करेगी.”
इस सब के बाद भी प्रदेश सरकार इस बारे में बहुत गम्भीर दिखाई नहीं देती. मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत कहते हैं “राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान ( एनआईटी ) के स्थाई परिसर का निर्माण हर हाल में श्रीनगर ( गढ़वाल ) के पास ही होगा. इसे किसी भी स्थिति में पहाड़ से बाहर नहीं जाने दिया जाएगा. कुछ लोग एनआईटी को पहाड़ से बाहर ले जाने का कुचक्र रच रहे हैं. उनका यह कुचक्र किसी भी दशा में पूरा नहीं होगा. ऐसे लोगों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी.” सरकार के मुखिया के मुँह से कुछ लोगों द्वारा इस बारे में कुचक्र रचे जाने की बात कहना क्या दर्शाता है? क्या प्रदेश सरकार इतनी कमजोर है कि “कोई भी” उनकी कार्यवाही के रास्ते में अड़ंगा लगाने की ताकत रखता है? क्या प्रदेश सरकार की इच्छा के विपरीत कोई भी एनआईटी को कहीं भी ले जा सकता है? अगर ऐसा है तो प्रदेश सरकार को सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है और अगर प्रदेश सरकार कमजोर नहीं है तो क्यों नहीं श्रीनगर के पास जलेथा की 112 एकड़ उस नाप भूमि पर एनआईटी का परिसर बनाने का निर्णय किया जा रहा है , जिसे गांव वाले कानूनी तौर पर गत 26 जून 2018 को प्रशासन को हस्तान्तरित कर चुके हैं. वे कौन लोग हैं जो गांव वालों द्वारा एकमुश्त जमीन दिए जाने के बाद भी एनआईटी के परिसर निर्माण में बाधा पहुँचा रहे हैं?
उल्लेखनीय है कि एनआईटी के परिसर व भवन निर्माण के लिए 2013 में भी सुमाड़ी, नयालगढ़, खालू, चमराड़ा व दांदड़ी में जमीन का चयन किया गया. गांव वालों ने संस्थान के परिसर के लिए लगभग 8,000 नाली जमीन स्वेच्छा से दान में भी दे दी. सरकार की ओर से इसे स्वीकृति भी मिल गई. पर पहाड़ में किसी भी तरह के उच्च शिक्षण संस्थान न बनने देने वाली ताकतों ने अपना खेल दिखाना शुरु किया और सत्ता में बैठे लोगों को चपेट में ले लिया. जिसका परिणाम यह हुआ कि सुमाड़ी क्षेत्र में पॉच साल तक एनआईटी के परिसर का निर्माण कार्य अधर में लटक रहा. सुमाड़ी में परिसर के निर्माण पर लगभग 1,500 करोड़ रुपए खर्च होने थे. जिसके लिए बकायदा पूरा खाका भी तैयार कर लिया गया था लेकिन निर्माण कार्य इसके बाद भी लगातार लटकाया जाता रहा. क्षेत्र की जनता इसके लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और हरीश रावत से लगातार गुहार लगाती रही कि संस्थान के परिसर का निर्माण तत्काल कराया जाय. पर पहाड़ के विकास की रट लगाने वाले इन दोनों ही मुख्यमंत्रीयों ने लोगों को आश्वासन की घुट्टी पिलाने के अलावा और कुछ नहीं किया. इस बीच संस्थान के सुमाड़ी से अन्यत्र जाने की चर्चाएँ भी जोरों पर रही.
बताया जाता है कि एनआईटी के परिसर निर्माण का जो खाका तैयार किया गया था उसके अनुसार संस्थान के साइट डेवलपमेंट में ही लगभग 1,100 करोड़ खर्च किए जाने थे. जिसको आधार बनाकर ही संस्थान का परिसर निर्माण अघोषित रुप से रोक दिया गया क्योंकि शेष बची 400 करोड़ की रकम से संस्थान के पूरे परिसर का निर्माण सम्भव नहीं था. इसी अघोषित रोक के आधार पर पांच साल तक परिसर निर्माण न होने और परिसर को मैदानी क्षेत्र में ले जाने की चाहत रखने वाले लोगों ने गत वर्ष भी संस्थान के छात्रों को अपना मोहरा बनाया था. जिनके प्रभाव में आकर एनआईटी के छात्रों ने पिछले वर्ष अगस्त में भी आन्दोलन की राह पकड़ी थी. श्रीनगर ( पौड़ी गढ़वाल ) में गत वर्ष 20 अगस्त 2017 से एनआईटी के छात्र अपनी कुछ मांगों को लेकर आन्दोलन की राह पर चले गए. आन्दोलन कर रहे छात्रों की प्रमुख मांग थी कि संस्थान का स्थाई परिसर बनाया जाय. यहां तक तो मॉग सही थी क्योंकि एनआईटी पिछले सात सालों से श्रीनगर के राजकीय पॉलिटैक्निक में अस्थाई रुप से चल रहा था. पर तब छात्रों की यह मांग भी थी कि संस्थान को मैदानी क्षेत्र हरिद्वार, ऋषिकेश या देहरादून स्थानान्तरित किया जाय. जिसने तब भी कई तरह के सवाल खड़े किए थे.
आन्दोलन कर रहे छात्रों से बात करने के लिए तब 24 अगस्त 2017 को केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मन्त्रालय के अपर सचिव के. राजन श्रीनगर पहुँचे थे. तब उन्होंने कहा कि सुमाड़ी की जमीन निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं पाई गई लिहाजा वहां संस्थान के परिसर का निर्माण नहीं होगा. प्रदेश सरकार जहां भी जमीन उपलब्ध करा देगी, वहीं परिसर का निर्माण किया जाएगा. उन्होंने तब परिसर के स्थानान्तरण की सम्भावना को खारिज तो किया पर इस बात पर कोई टिप्पणी नहीं की कि संस्थान को मैदानी क्षेत्र में ले जाने की कोई योजना है क्या? तब इस बात पर सवाल उठा कि सुमाड़ी की जमीन परिसर निर्माण के लिए पांच साल बाद अनुपयुक्त कैसे हो गई? क्या पांच साल पहले जब वहां परिसर निर्माण की स्वीकृति दी गई और निर्माण कार्य शुरु भी करवा दिया गया, तब जमीन की जांच सही तरीके से नहीं की गई थी? अगर नहीं तो फिर अचानक से किसके इशारे पर सुमाड़ी की जमीन को अनुपयुक्त करार दिया गया?
वही सवाल एक बार फिर से खड़ा हो रहा है. एक ओर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत मंत्रिमंडल की आगामी बैठक में एनआईटी के परिसर निर्माण के लिए जमीन संबंधी मामला हल कर लिए जाने की बात कह रहे थे, वहीं दूसरी ओर एनआईटी प्रबंधन द्वारा ऋषिकेश में कुछ निजी संस्थानों के परिसरों का निरीक्षण एनआईटी के अस्थाई परिसर के लिए पिछले दिनों 12 नवम्बर 2018 को किया गया था. यह निरीक्षण संस्थान की एक कमेटी द्वारा किया. जिसका गठन संस्थान के अस्थाई परिसर के चयन के लिए किया गया. इस बात को संस्थान के प्रबंधन ने स्वीकार भी किया. एनआईटी के सहायक कुलसचिव जयदीप कहते हैं कि “अस्थाई परिसर चयन समिति ने ऋषिकेश का दौर किया था, लेकिन अभी संस्थान के परिसर के स्थानान्तरण का निर्णय नहीं हुआ है.”
क्या मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को इस बारे में पूरी सच्चाई जनता के सामने नहीं रखनी चाहिए? वे कौन लोग हैं जो प्रदेश सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी श्रीनगर में एनआईटी का निर्माण नहीं होने देना चाहते हैं और किसके कहने पर संस्थान के प्रबंधन ने अस्थाई परिसर के चयन के लिए ऋषिकेश का दौरा किया? प्रदेश सरकार इस बारे में इतनी लाचार क्यों है? वह क्यों नहीं परिसर के निर्माण के बारे में अंतिम फैसला कर पा रही है? मुख्यमंत्री के वायदे के बाद भी मन्त्रिमण्डल की गत 24 नवम्बर को हुई बैठक में इस बारे में कोई निर्णय क्यों नहीं किया गया? वह भी तब जब पहले सुमाड़ी गांव वाले और अब जलेथा गांव के लोगों द्वारा अपनी भूमि का दाननामा सरकार के पक्ष में कर दिया है.
जगमोहन रौतेला
जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.
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