उत्तराखण्ड के सर्वाधिक पूज्य देवता गोलू के साथ जटिया मर्दन की गाथा भी जुड़ी हुई है.
जनश्रुति के अनुसार उस समय चम्पावत गढ़ी में अत्यंत न्यायप्रिय राजा नागनाथ का शासन हुआ करता था. वृद्ध हो जाने तक भी नागनाथ की कोई संतान न थी. उन दिनों सैमाण के जलाशय में एक मसान रहा करता था, जिसका नाम जटिया था. वह लोगों को मारकर खा जाया करता था अतः इलाके में उसका बड़ा आतंक था.
जटिया के आतंक से त्रस्त होकर जनता ने राजा नागनाथ से गुहार लगायी. वृद्ध होने के कारण नागनाथ खुद मसाण का वध करने में अक्षम था. एक मंत्री ने सलाह दी कि इस काम के लिए लोककल्याणकारी वीर गोलू की सहायता ली जाए.
एक दूत के हाथों स्थिति का विवरण देते हुए एक पत्र गोलू देवता के पास धूमाकोट भिजवाया गया. गोलू ने यह आमंत्रण स्वीकार कर लिया.
गोरिया ने अपनी माता कालिका से आशीर्वाद लिया और चम्पावत गढ़ी के लिए रवाना हो गए. पिथौरागढ़, रामेश्वर होते हुए वे लोहाघाट में गुरु गोरखनाथ के आश्रम पहुंचे. सभी जगह उनका खूब आदर सत्कार हुए.
अंत में चम्पावत पहुँचने पर नागनाथ और राज्य की पीड़ित जनता ने उनका भव्य स्वागत किया. जटिया के आतंक और उत्पीड़न की बातें सुनकर गोलू बड़े दुखी हुए. उन्होंने तत्काल जटिया का दमन करने के लिए सैमाण जाने का फैसला किया.
जटिया सैमाण के एक जलाशय में रहता था. गोलू ने उस जलाशय के किनारे पहुंचकर उसे युद्ध के लिए ललकारा. ललकार सुन वह अट्टहास करता हुआ बाहर आया. दोनों के बीच 3 दिन और 3 रात तक घमासान युद्ध हुआ. अंत में गोलू ने उसे पराजित किया. उसे जिंदा पकड़कर गोलू चम्पावत गढ़ी में नागनाथ के समक्ष ले आए.
जनता के हर्सोल्लास का ठिकाना न रहा. गोलू की जयजयकार होने लगी. संतानहीन नागराज गोलू के इस कार्य से इतना प्रसन्न हुए कि उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया. वे गोलू को सिंहासन पर बिठाकर स्वयं तपस्या करने वन में चले गए. बाद में गोलू ने अपनी मां कलिका को भी अपने पास बुला लिया. अब गोलू चम्पावत गढ़ी से समस्त कुमाऊँ का शासन प्रबंध देखने लगे.
गोलू स्वयं सारे राज्य में घूम-घूमकर जनता की व्यथा सुनते और उनके कष्ट का निवारण करते. अन्यायी को दण्डित कर पीड़ित को न्याय दिलवाते. इसी कारण न्याय के देवता के रूप में उन्हें पूजा जाता है.
-काफल ट्री डेस्क
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