प्रथम विश्व युद्ध का समय था. गढ़वाल रायफल्स की एक टुकड़ी को अफगानिस्तान में विद्रोह दबाने को भेजा गया इससे पहले ब्रिटिश सेना के 1700 सिपाही मारे गये थे. अब बारी थी गढ़वाल रायफल्स के सैनिकों के शौर्य की. अफगानिस्तान के चित्राल के आस-पास सेना भटक गयी और दिनों तक भूखे रह गयी.
(Goat in Garhwal Rifles)
एक रात भूख और प्यास से लड़ रही टुकड़ी बैठी थी कि सामने से झाड़ियों में कुछ हल-चल हुई. सैनिकों ने झाड़ियों की ओर बंदूक तान ली. सैनिकों ने देखा झाड़ी से एक लम्बी दाड़ी वाला तगड़ा बकरा निकल रहा है. बकरा सैनिकों की ओर देर तक निहारने लगा मानों सैनिकों के हालात समझ रहा हो. इधर सैनिकों के मन में बकरे को हलाल करने का ख्याल आने लगा और उसकी ओर बढ़ने लगे.
बकरे ने अपने कदम तेजी से पीछे की ओर बढ़ाए और भागने लगा. सैनिक तुरंत बकरे के पीछे भागने लगे. बड़ी दूर तक बकरा आगे आगे और सैनिक पीछे-पीछे भागे. एक खुले मैदान में जाकर बकरा रुक गया. सैनिक खुले मैदान में बकरे को खड़ा देख चौंक गये. तभी बकरा जमीन खोदने लगा. सैनिक कुछ समझ न पाए बकरा मैदान खोदता रहा.
सैनिकों ने नजदीक जाकर देखा तो मैदान में आलू निकले. सैनिकों ने पूरा मैदान खोदना शुरु किया तो अगले कई दिन के लिये आलू निकल आये. युद्ध के बीच सैनिकों की जान बच गयी. सैनिकों ने भी जान बचाने के लिये बकरे का एहसान माना और अपने साथ उसे लैंसडाउन ले आये.
(Goat in Garhwal Rifles)
कहा जाता है कि लैंसडाउन में बकरे को न केवल जनरल का पद दिया गया बल्कि उसके लिये अलग से कमरे की व्यवस्था भी की गयी. लैंसडाउन के लोग कहते हैं कि एक समय ऐसा था जब जनरल बैजू बकरे को पूरे लैंसडाउन में कहीं भी घुमने का अधिकार प्राप्त था उसे पूरी आज़ादी थी. जनरल बैजू बकरा जब बाज़ार से गुजरता तो उसे किसी भी दुकान से कुछ भी खाने की अनुमति थी. क्सिकी भी दुकान से जनरल बैजू बकरा कुछ खाता उसका बिल सेना को भेज दिया जाता. सेना उसके बिल का भुगतान करती थी.
जनरल बैजू बकरे का जिक्र डॉक्टर रणवीर सिंह ने अपनी किताब लैंसडाउन: सभ्यता और संस्कृति में किया है.
(Goat in Garhwal Rifles)
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