पहाड़ों में खिलते फ्यूंली और बुरांश को देखने जैसा सुकून देने वाली एक खबर हल्द्वानी से है. हल्द्वानी में एक निजी स्कूल ने अपने स्कूली पाठ्यक्रम में पहाड़ी बोली के बालगीतों शामिल किया गया है. हल्द्वानी स्थित सिंथिया सीनियर सेकंडरी स्कूल संभवतः पहला निजी स्कूल है जिसने अपने पाठ्यक्रम में अपनी बोली को शामिल कर उसे सहेजने का प्रयास किया है.
(Ghughuti Basuti Book Cynthia School)
काफल ट्री की टीम से बातचीत के दौरान सिंथिया स्कूल के प्रधानाचार्य प्रवीन्द्र रौतेला ने बताया कि हमें यह बताते हुए बेहद ख़ुशी हो रही है कि हमारे स्कूल के बच्चे अगले सत्र से अपनी बोली में बालगीत गुनगुनाने लगेंगे. हेम पन्त द्वारा संकलित किताब ‘घुघूति बासूती’ को हम अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहे हैं.
उत्तराखंड के बालगीत एवं क्रीडागीतों की किताब ‘घुघूति बासूती’ पिछले लम्बे अरसे से राज्यभर में चर्चा का विषय रही है. इस किताब को राज्यभर में ख़ूब सराहा जा रहा हैं. सिंथिया स्कूल द्वारा उठाये गये इस प्रयास पर हेम पन्त ने भी बेहद ख़ुशी जाहिर कर स्कूल के प्रधानाध्यापक प्रवीन्द्र रौतेला की इस पहल का स्वागत किया है. हेम पन्त ने कहा कि सिंथिया स्कूल की तरह अन्य स्कूलों ने भी अपनी बोली को बढ़ाने के लिए ऐसे प्रयास करने चाहिये.
(Ghughuti Basuti Book Cynthia School)
सिंथिया स्कूल के प्रधानाचार्य प्रवीन्द्र रौतेला अल्मोड़ा के पिठौनी गांव के मूल निवासी हैं. हल्द्वानी के काठगोदाम स्थित सरकारी स्कूल से अपनी शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रवीन्द्र पहाड़ का दर्द खूब जानते हैं. सिंथिया स्कूल की इस पहल पर वह कहते हैं कि हमारा स्कूल बच्चों में अपनी संस्कृति के पहले बीज रोप रहा है. मैं भी पहाड़ का रहने वाला हूँ इस दर्द को खूब जानता हूँ अपनी बोली को ऐसे ही तो नहीं छोड़ सकते न.
फारेस्ट में नौकरी करने वाले अपने पिता के साथ रहते हुए प्रवीन्द्र रौतेला ने अलग-अलग जगह से अपनी शिक्षा पूरी की है. अपनी शिक्षा के दौरान प्रवीन्द्र ने अपनी बोली के महत्त्व को खूब जाना होगा. सिंथिया स्कूल की पहल का स्वागत इस उम्मीद के साथ किया जाना चाहिये कि अन्य स्कूल भी इस पहल में उनके साथ कदम मिलायेंगे.
(Ghughuti Basuti Book Cynthia School)
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