मसूरी शहर से महज 5-6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जॉर्ज एवरेस्ट वर्तमान में पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय गंतव्य बना हुआ है. माउंट एवरेस्ट का नाम हम सबने सुना है. दुनिया की सबसे ऊँची इस पर्वत शृंखला का नाम जिसके नाम पर रखा गया वह थे इंग्लैंड के सर जॉर्ज एवरेस्ट. सर जॉर्ज एक भू-विशेषज्ञ, सर्वेक्षणकर्ता व भारत के महा-सर्वेयर थे. भारत का त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण सर जॉर्ज ने ही किया था. वह 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर-जनरल रहे.
(George Everest House Mussoorie)
अपने मसूरी प्रवास के दौरान उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में भारत की तमाम पर्वत चोटियों की खोज की और उन्हें मानचित्र में उकेर कर चिन्हित करने का काम किया. सर जॉर्ज ने ही माउंट एवरेस्ट की सटीक ऊँचाई व स्थिति के विषय में दुनिया को जानकारी उपलब्ध करवाई थी जिसके बाद उन्हीं के नाम पर इसे माउंट एवरेस्ट के नाम से जाना गया.
सर जॉर्ज ने मसूरी से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित पार्क हाउस में 1832 में अपनी प्रयोगशाला स्थापित की थी. इस प्रयोगशाला को सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस एंड लेबोरेटरी के नाम से भी जाना जाता है. लंबे समय से वीरान पड़े इस गंतव्य को उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने 2019 में हैरिटेज टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने का महत्वपूर्ण कदम उठाया तथा एशियन डेवलपमेंट बैंक की मदद से पर्यटन संरचना विकास निवेश के तहत लगभग 24 करोड़ रूपये की लागत से पुनर्निर्मित करने का सफल प्रयास किया.
सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस एंड लेबोरेटरी के बेस तक पहुँचने का खूबसूरत ट्रैक लगभग एक किलोमीटर लंबा है जो अपने दोनों तरफ देवदार के घने जंगलों से घिरा हुआ है. ट्रैक के ख़त्म होते ही पर्यटक एक बड़े से ओपन एयर थियेटर व प्रदर्शन मैदान तक पहुँचते हैं जहाँ से जॉर्ज एवरेस्ट पीक साफ नजर आती है. ओपन एयर थियेटर के पास ही सर जॉर्ज का घर, प्रयोगशाला व म्यूजियम दिखाई पड़ते हैं जिनका जीर्णोद्धार अपने अंतिम चरण पर है. वर्तमान में जॉर्ज एवरेस्ट का यह घर ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की देख-रेख में है. प्रदर्शन मैदान पर पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था के साथ ही खाने पीने की दुकानों की भी उचित व्यवस्था की गई है. ओपन एयर थियेटर में कुछ देर आराम करने के बाद लगभग 500-600 मीटर का ट्रैक कर जॉर्ज एवरेस्ट पीक तक पहुँचा जा सकता है. इस चोटी से जहाँ एक ओर दून घाटी व अगलाड़ नदी का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है वहीं दूसरी ओर मौसम साफ होने पर बर्फ से ढकी हिमालय की मनमोहक चोटियाँ भी नजर आती हैं.
(George Everest House Mussoorie)
जॉर्ज एवरेस्ट हाउस के आस-पास ही ज्वाला मंदिर व हाथीपाँव जैसे गंतव्य भी हैं जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य की वजह से पर्यटकों के बीच लगातार लोकप्रिय हो रहे हैं. जॉर्ज एवरेस्ट एक गंतव्य के रूप में मसूरी के लिए सेटेलाइट डेस्टिनेशन का काम कर रहा है जिसने मसूरी पर पड़ने वाले भार को कुछ हद तक कम किया है. किसी भी लोकप्रिय गंतव्य से यदि पर्यटकों का भार कम करना हो तो उसके लिए आवश्यक है कि गंतव्य के आस-पास ही जॉर्ज एवरेस्ट जैसे सेटेलाइट डेस्टिनेशन बनाएँ जाएँ.
वर्तमान में मसूरी जाने वाले हजारों पर्यटक जॉर्ज एवरेस्ट आते हैं जिससे एक तरफ मसूरी में होने वाली भीड़ कुछ हद तक नियंत्रित रहती है व दूसरी तरफ मसूरी को अपनी वहन क्षमता (जो पहले ही बहुत ज़्यादा है) पर पड़ने वाले बोझ से थोड़ा राहत जरूर मिलती है. जॉर्ज एवरेस्ट में फिलहाल पर्यटकों के रात्रि विश्राम की कोई खास व्यवस्था नहीं है. सिर्फ एक-दो रिजॉर्ट व टेंट हाउस हैं जिस वजह से यह डे-टूर डेस्टिनेशन बना हुआ है. भविष्य में यदि यहाँ सीमित रूप में पर्यावरण के अनुरूप टेंट हाउस या रिजॉर्ट की व्यवस्था की गई तो निश्चित ही मसूरी पर पड़ने वाले पर्यटकों के भार में कमी आएगी.
वैसे तो जॉर्ज एवरेस्ट बारह महीने जाया जा सकता है लेकिन सबसे सुखद मौसम अप्रैल से सितंबर तक रहता है. जॉर्ज एवरेस्ट तक जाने के लिए फिलहाल कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं है. पर्यटकों को खुद अपनी व्यवस्था कर गंतव्य तक पहुँचना होता है. अगली बार जब भी मसूरी जाने का प्लान बनाएँ तो जॉर्ज एवरेस्ट ज़रूर जाएँ.
(George Everest House Mussoorie)
–कमलेश जोशी
नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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