कला साहित्य

हल्द्वानी के गट्टू भाई का बाघ से सामना

नई-नई शादी के पंद्रह दिन बाद उस रात गट्टू भाई की अपनी बीवी से पहली लड़ाई हुई. बीवी का लिहाज करने के उद्देश्य से उन्होंने दोस्तों की संगत में नित्य की जाने वाली शराब पार्टियों पर संयमपूर्ण रोक लगाई हुई थी लेकिन उस शाम वे फंस ही गए. शादी की बैंड पार्टी का इंतजाम संतोष ने कराया था और बस उसी का पेमेंट करना बाकी रह गया था. बीवी से जल्दी आने का वादा कर गट्टू भाई संतोष के घर पहुंचे. वह घर पर नहीं था. गट्टू भाई जानते थे अड्डे पर होगा. गूलरभोज के खत्ते से जैपरकास जंगली मुर्गी मार कर लाया था और जग्गा गुरु की ऑटो वर्कशॉप के पिछवाड़े पत्थरों के चूल्हे पर हांडी चढ़ी हुई थी. बोतल खुल चुकी थी. कार्यक्रम चल रहा था. गट्टू भाई को देखते ही संतोष ने “ईद का चांद होरिया आजकल गट्टू बेटे!” कह कर पहले थोड़ा सा उलाहना दिया फिर उनका गिलास बनाना शुरू किया. 
(Gattu Bhai)

काफी ना-नुकुर करते हुए गट्टू भई ने झेंपते हुए दोस्तों को सूचित किया कि पत्नी ने डिनर में लौकी के कोफ्तों का प्रोग्राम रखा है. इस पर उनकी खूब खिल्ली उड़ाई गयी और उनके पौरुष को ललकारते हुए अश्लील किस्म के कुछ कमेंट्स किये गए. इस बीच एक पखवाड़े बाद गट्टू भाई के नथुनों में प्रवेश करने के उपरान्त परिचित गंधें अपना काम कर चुकी थीं. फिर वही हुआ जो होना था.

रात बारह बजे नवेली पत्नी ने दरवाजा खोला. भीतर घुसते ही उन्हें समझ में आ गया कि कोई चीज गड़बड़ हो गयी है. खाना मेज पर लगा हुआ था जिससे जाहिर होता था अर्द्धांगिनी भूखी थी. जिस अंदाज में अर्द्धांगिनी ने दरवाजे को पटक कर बंद किया उससे यह अलावा जाहिर होता था कि वह नाराज होकर उखड़ी पड़ी है. इतने लम्बे समय बाद बना गट्टू भाई का मूड हवा हो गया. शास्त्रों में लिखा है कि ऐसे अवसरों पर पुरुष ने संयम बरतते हुए सोने के सबसे नजदीकी अड्डे पर पहुँचने की जुगत और सुबह के आने की प्रतीक्षा करनी चाहिए. इन सनातन सलाहों के हिसाब से गट्टू भाई ने घुघुता बन कर क्षमा याचना करते हुए अपनी रूठी बीवी को मनाने का प्रयास करना चाहिए था लेकिन उन्होंने किया इसका ठीक उल्टा. वे बीवी से भी ज्यादा उखड़ गए और उसे अपनी सीमा में रहने की हिदायत दे डाली. पत्नी पढ़ी-लिखी और रईस घर की थी सो उसने तबीयत से गट्टू भाई के खानदान के उन सारे औरतों-मर्दों को याद किया जिनसे पिछले पंद्रह दिनों में उसका सामना हुआ था. संक्षेप में उसकी बातों का मतलब यह निकला कि शादी के बाद उसकी जिन्दगी तबाह हो गयी है और गट्टू भाई राक्षस हैं.

इस मूड में रात के डेढ़ बजे गट्टू भाई ने अपने ड्राइवर दशरथ को जगाया और नाराज होकर अपने लालकुआं वाले फ़ार्महाउस चले गए.

इसके बाद का किस्सा गट्टू भाई के शब्दों में:

“तो असोक भाई दसरथ ने गाड़ी निकाली और मैंने अलमारी से बोतल. रास्ते भर नीट खैंचता जाता और हर घूँट पे तुमारी भाबी को बुरा-भला कैता जाता. एक-दो बार दसरथ ने मुस्से कई बी कि ठाकुर साब बस कर लो आज के लिए भौत हो गयी पर मैंने दसरथ को डपट के चुप करा दिया. आधे-पौने घंटे में पौंच गए फारम पे. तो फारम पे काम करने वाला जो लौंडा है ना क्या नाम है उसका. पैले तो उसी को नींद से जगाने में आधा घंटा लग गया. उसने आँख मींचते हुए गेट खोला तो मैंने पैले एक तो दिया साले के मूं पे रैपट और फिर उस्से कई कि बेटे आज से तेरी नौकरी ख़तम. सुबे दसरथ से अपना हिसाब कल्लेना और खबरदार दुबारा अपनी सकल दिखाई तो.”
(Gattu Bhai)

“भौत जोर की नींद आ रई थी तो मैंने दसरथ से कई कि यार दसरथ यहीं बाहर खुले में खटिया लगवा दे मेरी और पानी का बड़ा वाला लोटा नीचे रखना मती भूल जइयो. खटिया पे लेटा असोक भाई तो आप समल्लें खोपड़ी जो है सीधी टकराई आसमान से. एक तो अगल-बगल की हर चीज घूम रई और खाली पेट में गुड़गुड़ पैन्चो अलग से हो रई! मैंने सोची बेटे गट्टू आत्तो तेरी जिन्दगी भोले बाबाई बचा सकें. दसरथ सई कैरा था कि ठाकुर साब बस कल्लो.”

“ऐसी हालत में किसी तरे मैंने एक साइड कू करवट लेके सोने की कोसिस करी तो तुमारी भाबी की सकल याद आ गयी यार. बिचारी ने कित्ते तो मुस्किल से लौकी के कोपते बनाए होंगे मेरे लिए और साले गट्टू तैने क्या किया. पौंच गया दारू सूत के. लड़ाई कल्ली अलग से. अब असोक भाई जो है भौत पछतावा होने लगग्या मुझ को. जैसे-तैसे मैंने खुद को समजाया कि कल सुबे-सुबे हल्द्वानी जाके माफी मांग लूंगा तुमारी भाबी से.”

“अब नींद में सपना आया तो सपने में बी तुमारी भाबी. क्या देख रा हूँ कि मैं लेटा हूँ और  तुमरी भाबी अपनी उँगलियों से मेरी दाढ़ी को सहला रई. तुम तो जाना ही करो हो दाढ़ी सहलाने से मुझे कैसी गुदगुदी मच जाया करे है. तो सपने में मैं उससे कैरा हूँ कि अब बस कर गुड्डी और वो तो हँसे जा रई और उसी हंसी में कबी-कबी मेरे गालों पे अपने नाखून गड़ा दे रई. ऐसे में आँख खुल गयी. भोर का टैम और सब कुछ जो है एकदम सुनसान-चुपचाप. मुझे अपने गाल पे तुमारी भाबी का नाखून बी मैसूस हुआ. एक बार को तो मुझे लगा कि हो ना हो तुमारी भाबी बी मेरे पीछे-पीछे दूसरी गाड़ी लेके फारम पे ई आ गयी लेकिन दसरथ तो मेरे साथ आया है. गाड़ी चलाएगा कौन. तो मैंने खट से पूरी आंख खोल दी.”

“आंख खोली तो जैसे एक पिक्चर में दिखाया था ना मुझको अपने ठीक सामने तीन-चार-छै इंची की दूरी पे एक भौत बड़ी आँख दिखाई दी. गाल पे हाथ लगाया तो बालों से ढंका अपने कुत्ते शेरू का पंजा जैसा मैसूस हुआ. फिर ख़याल आया कि गट्टू बेटे शेरू को तो पिछले हप्ते बाघ उठा के ले गया था फारम से. बाघ का ख्याल आते ही मैं समझ गया कि मेरे ऊपर बाघ झुका हुआ है और मेरी दाढ़ी को अपने पंजे से सहला रिया है. अब साली घिग्गी बंधनी चालू हो गयी. आप समल्लें असोक भाई ये सारी बातें समझ में आने में ऐसे ही तीन-चार सेकेण्ड लगे होंगे.”
(Gattu Bhai)

“तो जैसेई मैंने पंजे पे हाथ लगाया उसने अपना नाखून गाल पे हल्का सा गड़ा दिया. बड़ी जोर से चुभा साला. और वो जो उसकी इत्ती बड़ी-बड़ी आँख दिख रई थी वो मेरे चेहरे की तरफ आने लग गयी. अब बाघ ने अपनी नाक से मेरी नाक को छुआ. गीली-चिपचिपी नाक साले की और गंदी बास. मैं समज गया कि सिबजी गुड्डी के साथ करे गए अन्याय की सजा दे रहे हैं मुझ को. यार असोक भाई सोचो एक आदमी की सादी को पन्द्रा दिन बी पूरे नी हुए और उसको बाघ खाने जा रहा हो. तो मुजको सबसे पैले तो ख़याल आया तुमारी भाबी का कि बिचारी मेरे बिना कैसे ज़िंदा रएगी और फिर ये कि जब ये बाघ मुझे खा रहा होगा तो कितना भैंकर दर्द होगा. मैंने चिल्लाना सुरु करा – दसरथ दसरथ! लेकिन साली हलक से बाहर आवाजी ना निकली.”

“अब बाघ ने भी हौले हौले गुर्र-गुर्र करना शुरू कर दिया. अब एक बात है. भगवान ने आदमी को दिमाग नाम की जो पैन्चो चीज दी है ना उसके आगे सब फेल ठैरा. आप ज़रा सीन देखो असोक भाई. दारू पी के गट्टू खाट में लेटा हुआ है. गट्टू के ठीक ऊपर बाघ झुका हुआ है और अपने पंजे से उसकी दाढ़ी सहला रिया है. मैंने सोची बेटे गट्टू भौत बड़े सिकारी बनते थे अपने को. हैं! आज दिखाओ बहादुरी तब तो कोई बात है. फिर क्या था. मैंने दो सेकेण्ड को सिबजी का धियान लगाया और वो वाली पिक्चर को याद करना सुरु किया वो जो आती नईं है डिस्कवरी में. उसमें बताया गया था कि जब बाघ आपको घूर रहा हो तो आपने बी उसे तब तक घूरते रैना चाइये जब तक कि वो थक के अपना रास्ता ना बदल ले. यहाँ तो कोई रस्ता थाई नईं. बस एक खाट थी और उस पे गट्टू और गट्टू पे बाघ.”

“जैसेई बाघ ने अपनी मुंडी थोड़ी ऊपर उठाई मैंने उसे घूरना सुरु कद्दिया और दिमाग लगाना चालू किया. रात को सोने से पैले मैंने दसरथ से खाट के नीचे पानी का लोटा धरने की बात कई थी. मैंने अपने से कई कि गट्टू बेटा अगर दसरथ ने अपना कम ढंग से करा होगा तो तेरे पास बचने का एक चांस तो सिबजी ने भेजी दिया समझ. एक तरफ तो मैं सांस रोक के बाघ की आँख में आँख डाल के उसे घूर रहा था उधर दूसरी तरफ मैंने क्या किया असोक भाई कि बांया हाथ हौले-हौले सरकाते हुए खाट के नीचे करना सुरु किया. ऐसे में कोई बी हरकत इतने हौले से करनी हुआ करे कि एक बार को मुरदा बी सरमा जाए. नईं तो बाघ चौकन्ना हो सके है और आपका काम लग गया समझो.”
(Gattu Bhai)

“करीब आधे मिनट में मेरा हाथ टकराया पानी से भरे लोटे से. हमारे फारम पे दादाजी के टाइम का लोटा धरा है एक पीतल का. पूरे ढाई लीटर पानी आता है साले में. दसरथ उसी को रख के गया था. पीने के बाद प्यास भौत लगा करे ना इसी लिए.”

“अब मैंने बाएँ हाथ में पूरी ताकत इकठ्ठा करी और लोटे को कस के थाम लिया. बाघ बिचारा क्या जाने कि गट्टू के दिमाग में क्या चल रिया. वो तो बस मेरी आँखों में आँख डाल के झुका हुआ सोच रिया होगा कि बढ़िया मोटा-ताजा ठाकुर हाथ लग गया आज और वो बी निहत्था. अब मैं बाघ के पलक झपकने का इन्तजार करने लगा. मैंने किसी किताब में पढ़ रखा था कि बाघ एक मिनट में दो बात पलक झपकाता है बस. तो असोक भाई उसने पलक झपकाई और मैंने तीस तक गिनना शुरू किया.”

“मेरी तीस की गिनती पूरी हुई, बाघ की पलक झपकी और मेरा बाँयां हाथ बिजली की रफ़्तार से खाट के नीचे से बाहर आया और उसने पानी से भरा लोटा पूरी ताकत से बाघ की दोनों आँखों के बीचोबीच दे मारा. बम भोले! उसकी गुद्दी होती है वहां पर. वो फट गयी और ढेर होकर बाघ धाड़ से मेरे ऊपर. बड़ी मुश्किल से साले को अपने ऊपर से हटाया और दसरथ को आवाज लगाई.”

“दसरथ आया तो मरा हुआ बाघ देख के बिचारे की हवा निकल गई. मैंने डांटते हुए कई कि ऐसे डर क्यों रिया कबी मरा हुआ बाघ ना देखा तैने. तब जाके दसरथ की जान में जान आई. तो फिर मैंने उससे कई कि गाड़ी लेके जाए और हल्द्वानी से किसी खाल निकालने वाले को बुलवा लाये तब तक मैं ज़रा नींद पूरी कल्लूं.”

“दसरथ जाने लगा तो मैंने कई कि बेटे दसरथ लोटे में पानी तो भर जा. बाघ के चक्कर में ढाई लीटर फ़िल्टर वाला पानी जमीन पे गिर के बर्बाद हो गया साला.”
(Gattu Bhai)

अशोक पाण्डे

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