इस वर्ष गंगा दशहरा 30 मई के दिन पड़ रहा है. पहाड़ों में इसे दसार या दसौर भी कहते हैं. इस दिन कुमाऊं क्षेत्र के हिस्सों में घरों के मुख्य दरवाजों के ऊपर और मंदिरों में गंगा दशहरा पत्र लगाया जाता है. कुमाऊं क्षेत्र में गंगा दशहरा मनाने की काफी पुरानी रीत है. माना जाता है कि इस पत्र के कारण प्राकृतिक आपदाओं और आसमान से गिरने वाली बिजली से घर की सुरक्षा होती है.
(Ganga Dashahara Festival Uttarakhand)
दशहरा पत्र में जो श्लोक/मंत्र लिखा जाता है वह इस तरह है –
अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च
सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका:
मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात्
विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डले
यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर:
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा
ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी स्कंदपुराण में गंगावतरण की तिथि कही गयी जिसे गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है. ऋग्वेद के नदी सूक्त में गंगा के अनुपम स्वरुप का वर्णन है. तदन्तर महाभारत के अनुशासन पर्व, विष्णु पुराण, मतस्य पुराण, वराह पुराण, मार्कण्डेय पुराण और केदार खंड में गंगा की उत्पत्ति व इसके अवतरण की कथा कही गई.
(Ganga Dashahara Festival Uttarakhand)
गंगा दशहरा पत्र पहले हाथ से ही बनाये जाते थे. पुरोहित अपने यजमानों के घर जाकर गंगा दशहरा पत्र देते जिसे वह अपने घर के मुख्य द्वार पर लगाते. यजमान इसके बदले अपने पुरोहित को दक्षिणा एवं चावल दान करता. यह विश्वाश है कि द्वार पर गंगा दशहरा पत्र वज्रपात से सुरक्षा तो होती ही है साथ में चोरी, अग्नि आदि का भी भी नहीं रहता.
पहले गंगा दशहरा द्वार पुरोहितों द्वारा अपने हाथ से ही बनाया जाता था. गंगा दशहरा पत्र में बनी ज्यामिती आकृति में रंग भरने के लिए पुरोहित दाड़िम, बुरांश, अखरोट आदि से प्राकृतिक रंग बनाया करते थे.
(Ganga Dashahara Festival Uttarakhand)
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