पंचायतें
इन दिनों उत्तराखंड में ग्राम पंचायत चुनाव की चर्चा जोरों पर है. ऐसे में ग्रामीण भारत के विषय में महात्मा गांधी के देखे स्वप्न और उसकी जमीनी हकीकत पर चर्चा करना प्रासंगिक होगा. महात्मा गांधी का यह दृढ़ विश्वास था कि भारत की आत्मा गांव में निवास करती है. जब तक विकास और सरकार का आखिरी पायदान वास्तविक रूप से गांव तक नहीं पहुंच जाता तब तक भारत की आजादी वास्तविक अर्थों में सार्थक नहीं होगी. वह 15 अगस्त 1947 को सत्ता के हस्तांतरण के रूप में देखते थे. उनका मत था भारत को असली आजादी तभी मिलेगी जब गांव में “ग्राम स्वराज’ स्थापित होगा और गांव की सरकार गांव के लोगों के साथ बैठकर आमने-सामने की बातचीत कर गांव की बेहतरी की योजना बना सकेगी.
इससे पहले महात्मा गांधी ग्राम स्वराज की दिशा में सरकार द्वारा काम किए जाने के लिए दबाव बनाते 30 जनवरी 1948 को काल के क्रूर हाथों ने महात्मा गांधी को हमसे जुदा कर दिया.
लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू को महात्मा गांधी के स्वप्न “ग्राम स्वराज” का भान था. नेहरू ने बलवंत राय मेहता कमेटी 1957 की सिफारिशों के आधार पर 2 अक्टूबर 1959 को एक मॉडल ग्राम सभा के रूप में ग्राम बागदारी जिला नागौर राजस्थान में ग्राम सभा के साथ ही पंचायत सरकार का शुभारंभ किया और भारत में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की मजबूती को बल दिया. एक नए स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत के समक्ष पड़ोसी राष्ट्र से युद्ध ,अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां तथा अर्थव्यवस्था का आंतरिक दबाव कुछ ऐसे कारण थे. जिससे ग्राम स्वराज्य का गांधी का सपना एक औपचारिकता बनकर रह गया और ग्राम पंचायत तथा मध्य की सरकार (ब्लाक) और जिला पंचायत सब कुत्सित राजनीति के अखाड़े बन गए. गांव के विकास का कोई स्थानीय मॉडल इन पंचायतों में विकसित नहीं हो पाया, यह सब अफसरशाही की भेंट चढा और पंचायतें नौकरशाही की कठपुतली भर रह गई.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : गांव की सरकार का विचार भारत में नया नहीं है, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य वंश में साफ दिखाई देती हैं जहां इसे ग्रामिक कहा जाता था. गुप्त वंश में भी ग्राम सभाएं बहुत ताकतवर थी. लेकिन सर्वाधिक व्यवस्थित ग्राम प्रशासन दक्षिण भारत में चोल वंश में देखा जाता है. ग्राम पंचायतों का शासन हमारी परंपरा में रहा है इसी कारण ब्रिटिश साम्राज्य में जब प्रशासन की पहुंच दूरस्थ क्षेत्रों तक नहीं थी तब वहां की व्यवस्थाएं ग्राम पंचायतों के द्वारा जारी रखीं गई, पंचायतों की मजबूती के लिए ब्रिटिश लॉर्ड रिपन का कार्यकाल भी याद किया जाएगा.
नया पंचायती राज अधिनियम
वर्ष 1984 में स्वर्गीय राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पंचायतों को स्वायत्तता की बात फिर जोर पकड़ गई ग्राम पंचायतों की स्वायत्तता तथा एक आदर्श त्रिस्तरीय पंचायत सरकार की स्थापना के लिए वर्ष 1986 में लक्ष्मीमल सिंघवी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया इस कमेटी की जो अधिकांश सिफारिश हैं, कमेटी को जो महत्वपूर्ण व्यावहारिक सुझाव दिए गए वह मध्य प्रदेश कैडर के एक समर्पित, आदिवासियों के बीच चर्चित आई ए एस अधिकारी ब्रह्मदेव शर्मा द्वारा दिए गए. परिणाम स्वरूप लक्ष्मीमल सिंघवी की रिपोर्ट में न केवल पंचायतों के विषयों का स्पष्ट वितरण किया गया बल्कि पंचायतों के आर्थिक स्वावलंबन का भी जतन किया गया. लक्ष्मीमल सिंघवी की सिफारिशों के आधार पर 73 वां संविधान संशोधन विधायक जो कि ग्राम स्वराज की कल्पना को साकार करता है पारित किया गया.
इस विधेयक के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि इसके लिए संविधान में अलग से भाग 9 व अनुसूची 11 को जोड़ा गया. इसकी ताकत को संविधान के अनुच्छेद 243 से संवैधानिक रूप से प्राप्त किया गया. इस विधेयक में दो प्रकार से अनुपालन सुनिश्चित किया गया एक केंद्र के स्तर से अनिवार्य अनुपालन तो दूसरा राज्य सरकार के स्तर से राज्य की भौगोलिक परिस्थितियां और सामाजिक संरचना को देखते हुए ऐच्छिक अनुपालन. ऐच्छिक अनुपालन का उद्देश्य भारत की संघीय व्यवस्था की भावनाओं का सम्मान करना था. इसी प्रावधान को राज्य सरकार ने इस संशोधन विधेयक की कमजोरी बना दिया और पूरे भारतवर्ष में इसे इस प्रकार लचर तरीके से लागू किया गया कि आज पंचायतें मौजूद तो है लेकिन उसके हाथ राज्य सरकारों द्वारा पूर्व की भांति बांध ही रखे हैं हैं. केरल वह राज्य है जिसने अपनी पंचायतों को सीमित मात्रा में आर्थिक संसाधन एकत्रित करने की ताकत दी है.
जबकि 73वें संविधान संशोधन में पंचायतों के लिए 29 अलग विषयों का चयन किया गया जिसमें नियम कानून बनाने का अधिकार पंचायतों को प्राप्त होना था. ग्राम पंचायत स्तर पर जिन विभागों का संचालन होना था उनमें सबसे महत्वपूर्ण लोक निर्माण विभाग, ग्राम स्वास्थ्य, शिक्षा, लघु सिंचाई, महिला, प्रौढ शिक्षा, समाज कल्याण तथा स्थानीय कर महत्वपूर्ण थे अनुच्छेद 243 (ग) के तहत राज्य वित्त आयोग का गठन कर आर्थिक संसाधनों का भी स्पष्ट विवरण किया जाना था. लेकिन संशोधन अधिनियम में जिन ऐच्छिक प्रावधानों का राज्य सरकारों द्वारा पालन किया जाना था उनमें से अधिकांश का भारत की राज्य सरकारों ने पालन नहीं किया है विशेष रुप से आर्थिक स्वायत्तता की दृष्टि से पंचायतें आज भी पूरी तरह राज्य सरकारों पर निर्भर है जिस कारण यह ग्राम स्वराज के वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं. यह शक्तिहीन राजनीतिक केन्द्र भर ,बनकर रह गई है .
गांधी की 150 वीं जयंती पर यह गांधी को हमारी बड़ी श्रद्धांजलि होगी कि हम उनके स्वप्न के ग्राम स्वराज्य की स्थापना की दिशा में 73 वें संविधान संशोधन को पूरी तरह लागू कर ग्राम स्वराज के सपने को सच कर दें.
प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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